मुझे सुनिए! मैं मर रहा हूं..!
खूबसूरत नैनीताल शहर की खुद की बनावट एक ओपन एयर थिएटर की है। जैसे चारों तरफ की पहाड़ियाँ ‘दर्शक दीर्घा’ की तरह नैनी झील के थिएटर स्टेज को निहार रही हों, जहाँ लहरों, रंग-बिरंगी नावों, आस-पास बिखरे हरे-पीले पेड़ों, मॉल रोड पर टहलते लोग, ढालूदार छतों की खूबसूरत इमारतों, पर्यटकों और स्थानीय लोगों का अंतहीन नाटक चल रहा हो। इस नाटक की अलिखित स्क्रिप्ट में जैसे हर एक के लिए किरदार तय है। लेकिन विडम्बना यह है कि थिएटर की एक लंबी परंपरा होने के बावजूद भी नैनीताल शहर के पास ऐसा ऑडिटोरियम-प्रेक्षागृह नहीं है जहां कलाकार रिहर्सल या नाटक कर सकें।

नैनी झील के किनारे एक सीलन भरे तंग कमरे का जर्जर फर्नीचर दीवार से सटा दिया गया है और इससे बीच में उभर आई जगह में कुछ थिएटर कलाकार रूसी कहानीकार निकोलाई गोगोल की कहानी ‘तस्वीर’ पर आधारित एक नाटक की रिहर्सल कर रहे हैं।
इन्हीं में से शहर के एक वरिष्ठ थिएटर कर्मी राजेश आर्य कहते हैं, “हम पहले बाहर झील के किनारे बैठे रिहर्सल कर रहे थे। उत्तराखंड परिवहन मजदूर संघ के एक सदस्य ने हमें देखा और हमसे कहा कि हम चाहें तो उनके ऑफिस में रिहर्सल कर सकते हैं। नैनीताल में रिहर्सल या नाटक करने के लिए जगह की वाकई बड़ी तंगी है। हमेशा ही जगह तलाशना चुनौती बन जाता है।”
खूबसूरत नैनीताल शहर की खुद की बनावट एक ओपन एयर थिएटर की है। जैसे चारों तरफ की पहाड़ियाँ ‘दर्शक दीर्घा’ की तरह नैनी झील के थिएटर स्टेज को निहार रही हों, जहाँ लहरों, रंग-बिरंगी नावों, आस-पास बिखरे हरे-पीले पेड़ों, मॉल रोड पर टहलते लोग, ढालूदार छतों की खूबसूरत इमारतों, पर्यटकों और स्थानीय लोगों का अंतहीन नाटक चल रहा हो। इस नाटक की अलिखित स्क्रिप्ट में जैसे हर एक के लिए किरदार तय है। लेकिन विडम्बना यह है कि थिएटर की एक लंबी परंपरा होने के बावजूद भी नैनीताल शहर के पास ऐसा ऑडिटोरियम-प्रेक्षागृह नहीं है जहां कलाकार रिहर्सल या नाटक कर सकें।
शहर के सबसे पुराने थिएटर ग्रुप ‘युगमंच’ के निर्देशक जहूर आलम कहते हैं, ‘‘हम तब से लगातार एक ऑडिटोरियम की माँग कर रहे हैं जब एनडी तिवारी उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री हुआ करते थे। लेकिन किसी भी सरकार ने कभी कोई गंभीर कोशिशें नहीं कीं। वे किसी भी तरह इसे टालते रहे। कभी किसी सरकार ने थोड़ी रुचि दिखाई और प्रशासन से जगह आदि के बारे में पूछा तो प्रशासन ने कभी जवाब नहीं दिया और बात फिर टल गई।’’
नैनीताल शहर में ही रहने वाले इतिहासकार और समाजशास्त्री शेखर पाठक का भी नैनीताल की थिएटर परंपरा से जुड़ाव रहा है। वे बताते हैं, ‘‘नैनीताल में थिएटर की लंबी परंपरा रही है। शुरुआत में यह रामलीला जैसे धार्मिक नाटकों की शक्ल में था। क्योंकि नैनीताल शहर ब्रिटिशर्स ने बसाया था तो ब्रिटिश हुकूमत के दौर में यहाँ ब्रिटिश थिएटर भी पनपा, जिसे स्थानीय तौर पर ‘शेक्सपिएराना थिएटर’ के नाम से जाना गया और उसके अलावा ‘हिंदुस्तानी थिएटर’ भी यहाँ होता रहा। आज भी शैले हॉल जैसे जिन सभागारों में यहाँ थिएटर होता है वो ब्रिटिश दौर के ही हैं। लेकिन यह सभागार मूलतः थिएटर को समर्पित नहीं हैं।’’
विश्वम्भर नाथ साह ‘सखा’ शहर के सबसे वरिष्ठ रंगकर्मियों में एक हैं। वे अपने दिनों को याद करते हुए कहते हैं, ‘‘हमारे समय में हमने नैनीताल शहर के पारंपरिक थिएटर को समकालीन मुद्दों और थिएटर के नए तरीकों से परिचित कराने की कोशिश की। बीएम साह, जगदंबा प्रसाद, बिपिन उप्रेती, रमेश चैधरी, प्यारे लाल साह और बाद के समय में गिर्दा जैसे महत्वपूर्ण कलाकारों ने नैनीताल के थिएटर को विश्व थिएटर की महान परंपराओं से वाकिफ कराया।’’
नैनीताल शहर के थिएटर ने कई कलाकारों की प्रतिभाओं को तराशा और उन्होंने थिएटर और सिनेमा की दुनिया में अपना नाम रौशन किया। कई प्रतिभाएँ नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा, फिल्म ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया जैसी देश की महत्वपूर्ण संस्थाओं और बॉलिवुड में भी पहुँचीं। इनमें बीएम साह, निर्मल पांडे, इशान त्रिवेदी, ज्ञान प्रकाश, गोपाल तिवारी, सुदर्शन जुयाल, जीतेंद्र बिष्ट, इद्रीश मलिक, सुमन वैद्य आदि प्रमुख हैं जिन्होंने जानदार अभियनय से दर्शकों का दिल जीता।
एनएसडी से निकले और मशहूर बॉलीवुड कलाकार ललित तिवारी भी नैनीताल शहर से ही हैं। इन्होंने अपने अभिनय जीवन के शुरूआती सबक यहीं अलग-अलग थिएटर ग्रुप्स के साथ काम करके सीखे। वे याद करते हुए कहते हैं, ‘‘मैंने अपने शुरुआती नाटक यहीं किए। इस शहर और यहां के थिएटर के साथ मेरा लगाव है। लेकिन एक ऑडिटोरियम बनाना बेहद खर्चीला मामला है। थिएटर कलाकार इसे खुद से वहन नहीं कर सकते। केवल सरकार ही यह कर सकती है लेकिन यह उसकी इच्छा और प्राथमिकताओं पर निर्भर है।’’
नैनीताल में थिएटरकर्मियों की इस बड़ी समस्या को लेकर जिला प्रशासन का कहना है कि उसे शहर के थिएटर की चिंता है। जिलाधिकारी दीपेंद्र चैधरी कहते हैं, ‘‘हमें शहर की थिएटर गतिविधियों का ख्याल है लेकिन शहर में ऑडिटोरियम बनाना काफी कठिन है, क्योंकि यहाँ जगह का अभाव है। हालाँकि हम कोशिश कर रहे हैं कि शहर से कुछ दूर, जैसे कि खुर्पाताल जैसी जगह पर एक ऑडिटोरियम बनाया जाए। हम सरकार को इस संदर्भ में एक प्रपोजल भेजने की तैयारी कर रहे हैं।’’
हालांकि जहूर आलम का कहना है, ‘‘शहर से दूर ऑडिटोरियम बनाने का कोई औचित्य नहीं है। शहर से दूर थिएटर देखने कौन जाएगा ? वे सुझाव देते हैं, ‘‘शहर के बीचों बीच ‘रिंक हॉल’ वीरान पड़ा है। शासन- प्रशासन को अगर वाकई शहर के थिएटर की चिंता है तो उसे एक शानदार थिएटर में बदलने की जरूरत है।’’
युवा रंगकर्मी अनिल कार्की का कहना है, ‘‘नैनीताल पर्यटन पर आधारित शहर है। अगर थिएटर गतिविधियाँ यहां ठीक से संचालित होती हैं तो बेशक कलाप्रेमी पर्यटकों को यह आकर्षित करेंगी। इससे शहर और खूबसूरत होगा और औचित्यपूर्ण पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा।’’
नैनी झील किनारे पसरी सड़क से सटे सीलन भरे कमरे से जर्जर आवाज आ रही है, ‘‘सुनिए! क्या आप पेंटर हैं ?.. मैं बूढ़ा हो चुका हूँ.. मैं मर रहा हूं..! .. लेकिन अगर आप मेरा पोर्टेट बना दें तो शायद मैं मरने से बच जाऊँ.. मैं अमर हो जाऊँ..!’’
रिहर्सल के दौरान इस जर्जर आवाज में नाटक का मुख्य किरदार अपने सह कलाकार को संबोधित कर रहा है। लेकिन ऐसा लगता है यह जैसे नैनीताल की थिएटर परंपरा सरकार से गुहार लगा रही है, ‘‘लेकिन अगर आप मेरे लिए एक ऑडिटोरियम बना दें, तो शायद मैं बच जाऊँ.. मैं अमर हो जाऊँ.!’’