आख़िर ये कम्युनिस्ट कहां छिपे बैठे हैं, जब मोदी घंटा बजवा रहे हैं?
''इन्होंने गुजरात में अरबों रुपये ख़र्च कर 'कार्ल मार्क्स' की विशाल मूर्ति बनाई। हर ज़िले में करोड़ों रुपये ख़र्च कर अपने आलीशान दफ़्तर बनाए। दिल्ली में बाराख़म्बा में अरबों रुपए का फ़ाइव स्टार मुख्यालय का निर्माण किया. इसके बज़ाय अगर ये स्वास्थ्य और शिक्षा का बजट बढ़ा देते तो दो फ़ायदे होते। पहला, स्वास्थ्य बजट बढ़ने से कोरोना के मरीज़ों को मुक़म्मल इलाज़ मिलता और शिक्षा बजट बढ़ने से देश में भक्त तैयार नही होते.''
- मनमीत

अभी-अभी ज्ञात हुआ कि एक निक्कर पहनने वाले भाई ने हुंकार भरी, ''ये कम्युनिस्ट आख़िर कहां मर गए इस वक़्त। देश मे कोरोना-कोरोना हो रहा है। और ये पाखंडी कम्युनिस्ट छिपे बैठे हैं।'' मुझे ज्यादा नहीं कहना। क्योंकि कहने की जरूरत भी नही है। फिर भी अपना प्रतिदिन कुछ न कुछ लिखने का कोटा तो पूरा करना ही है। तो खैर...! मुझे बड़ा ग़ुस्सा आता है। जब सोचता हूँ कि देश मे इस वक़्त कम्युनिस्टों की सरकार है और फिर भी ये कुछ नहीं कर पा रहे हैं। देश मे इस समय किसी भी विकासशील देश की तुलना में जनसंख्या अनुपात के मुताबिक़ बेहद कम कोविड-19 की टेस्टिंग हो रही है। जिसका मुख्य कारण हमारे देश की जीडीपी में स्वास्थ्य बजट महज 1.7 % है। इसके लिए कम्युनिस्ट ही ज़िम्मेदार हैं। इन्होंने गुजरात में अरबों रुपये ख़र्च कर कार्ल मार्क्स की विशाल मूर्ति बनाई। हर ज़िले में करोड़ों रुपये ख़र्च कर अपने आलीशान दफ़्तर बनाए। दिल्ली में बाराख़म्बा में अरबों रुपए का फ़ाइव स्टार मुख्यालय का निर्माण किया। इसके बज़ाय अगर ये स्वास्थ्य और शिक्षा का बजट बढ़ा देते तो दो फ़ायदे होते। पहला स्वास्थ्य बजट बढ़ने से कोरोना के मरीज़ों को मुक़म्मल इलाज़ मिलता और शिक्षा बजट बढ़ने से देश में भक्त तैयार नही होते। डॉक्टरों के पास ज़रूरी उपकरण नहीं है। अस्पतालों में वेंटिलेटर नहीं हैं। बिहार, उत्तरप्रदेश, उत्तराखण्ड, मध्य प्रदेश, राजस्थान जैसे छोटे बड़े राज्यों में कोई हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर ही नहीं है। इन सबके लिए कम्युनिस्ट ही तो ज़िम्मेदार है। क्योंकि मौजूदा वक़्त में उनकी ही सरकार देश मे है और प्रकाश करात प्रधानमंत्री हैं। अब क्योंकि केरल में बीजेपी की सरकार है तो उसने लगभग कोरोना में विजय पा ही ली है। केरल शिक्षा और स्वास्थ्य में भारत में क्या स्थान रखता है, यह कम्युनिस्टों को क्या पता। सब बीजेपी ने ही तो किया है।
इस समय कम्युनिस्टों को इसलिए भी गाली देनी चाहिए कि वो हिन्दू-मुसलमान फ़साद के ख़ोखले विवाद को ग़ैर ज़रूरी बताने में तुले हुए हैं। बेवक़ूफ़ जो ठहरे। अरे, कोरोना से लड़ने से भी ज़्यादा ज़रूरी है कि धार्मिक सिर फुटव्वल कर लिया जाय। दिल्ली में जो नफ़रत बची रह गयी, उसे थोड़ा सा सुलगा लिया जाए। ये 22 करोड़ मुसलमान आख़िर कर क्या रहे हैं यहां। इन करोड़ो मुसलमानों में सैयद शाहनवाज़ हुसैन और मुख़्तार अब्बास नक़वी नहीं आते ना। ख़ैर! हम कम्युनिस्टों को गाली दे रहे थे कि ये नामुराद आख़िर कर क्या रहे हैं? क्यों नहीं ये कम्युनिस्ट हर दिन देश मे 150 हज़ार Covid-19 test करते, क्यों नही ये जाहिल वेंटिलेटर का निर्माण करते, क्यों नही ये अस्पतालों का निर्माण करते, मेडिकल कॉलेज खोलते और धार्मिक संस्थानों को बंद कर यूनिवर्सिटी खोलते। आख़िर सरकार ये ही तो चला रहे हैं। कुछ बुद्धिमान भक्त टाइप लोग अक्सर पूछते थे कि दुनिया मे कहीं कम्युनिस्ट पाए भी जाते हैं। उन्हें क्या पता था कि क्यूबा के आतंकवादी कम्युनिस्ट डॉक्टर दुनिया भर में अपनी सेवाएं देने आ जाएंगे। वो भी फ्री में। ये अमीर, दौलतमंद कम्युनिस्ट क्यों नहीं, अम्बानी और अडानी की तरह करोड़ो रूपये का चंदा नहीं देते? त्रिपुरा को वो अमीर कम्युनिस्ट नेता माणिक सरकार क्यों अरबों रुपये को छुपाये बैठा है? क्यों वो देशद्रोही कन्हैया कुमार बिहार में लाखों रुपये दान नहीं देता? सब बुड़बक हैं!