'आई कॉंट ब्रीद' से गूंज उठा अमेरिका
अमेरिका में जॉर्ज फ्लॉयड की हत्या के विरोध में हो रहे हिंसक प्रदर्शनों की आग दर्जनभर से ज़्यादा शहरों में फ़ैल चुकी है. शनिवार को न्यूयॉर्क से लेकर टुल्सा और लॉस एंजिलिस तक हिंसक प्रदर्शन शुरू हो गए और प्रदर्शनकारियों ने कर्फ्यू का उल्लंघन किया.
- प्रीती नाहर

''I CAN’T BREATHE.. I CAN’T BREATHE..''
अमेरिका के शहरों गलियों, चौराहों, सड़कों पर इस वक्त ये आवाजें गूंज रही है.. ये ठीक उसी आवज़ का ईको है, जो एक गोरे पुलिस कर्मी के घुटनों के बीच दबे काले व्यक्ति जॉर्ज फ्लॉयड की ज़ुबान से अपने आख़िरी वक़्त में निकली. फ्लॉइड की हत्या के विरोध में अब पूरे देश में यह आवाज़ गूंज रही है..
''I CAN’T BREATHE.. I CAN’T BREATHE..''
अमेरिका में जॉर्ज फ्लॉयड की हत्या के विरोध में हो रहे हिंसक प्रदर्शनों की आग दर्जनभर से ज़्यादा शहरों में फ़ैल चुकी है. शनिवार को न्यूयॉर्क से लेकर टुल्सा और लॉस एंजिलिस तक हिंसक प्रदर्शन शुरू हो गए और प्रदर्शनकारियों ने कर्फ्यू का उल्लंघन किया.
फ्लॉयड की मौत के बाद मिनेपोलिस में शुरू हुए प्रदर्शन ने शहर के कई हिस्सों में जनजीवन अस्त व्यस्त कर दिया. कई इमारतों में आग लगा दी गई और दुकानों में लूटपाट की. पुलिस की गोलीबारी में एक प्रदर्शनकारी की मौत हो गई. जबकि छह राज्यों में हालात क़ाबू करने के लिए नेशनल सिक्योरिटी गार्ड को तैनात किया गया है.
वाशिंग्टन में बड़ी संख्या में लोगों ने व्हाइट हाउस के बाहर जमा होकर नारेबाजी की. फिलाडेल्फिया में शांतिपूर्ण प्रदर्शन ने हिंसक रूप ले लिया. यहां कम से कम 13 पुलिसकर्मी घायल हो गए, जबकि चार पुलिस वाहनों में आग लगा दी गई. लॉस एंजिलिस में पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर रबड़ की गोलियां दागी और लाठीचार्ज किया.
पुलिस ने 17 शहरों में करीब 1400 लोगों को गिरफ्तार किया है. NEWS AGENCY AP के मुताबिक, बृहस्पतिवार से अब तक 1383 लोगों को पुलिस गिरफ्तार कर चुकी है. हालांकि, प्रदर्शन को देखते हुए यह आंकड़ा इससे कहीं ज्यादा हो सकता है.
असल में हालात इसलिए भड़के क्योंकि आरोप लगाए गए थे कि जॉर्ज फ्लॉयड नाम के एक काले व्यक्ति को पुलिस ने हिरासत में मार डाला. गोरे पुलिस अधिकारी डेरेक शाउविन पर आरोप था कि उन्होंने नस्लवादी नफ़रत के कारण जॉर्ज फ्लॉयड की गर्दन अपने घुटने से दबाकर उसकी हत्या की है. हत्या का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ जिसमें फ्लॉयड कहते नज़र आ रहे थे कि ''I CAN’T BREATH.'' यानि "मैं सांस नहीं ले पा रहा हूँ".. अब यही वाक्य इस विरोधप्रदर्शन का नारा बन गया है.
I CAN’T BREATHE… I CAN’T BREATH…
इसी वीडियो के सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद नस्लवादी हत्या के ख़िलाफ़ शहर में प्रदर्शन शुरू हो गए थे.
रविवार को अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ट्वीट करते हुए कहा कि- अमेरिकी सरकार फ़ासीवाद विरोधी समूह एंटीफा (antifa) को आतंकवादी संगठन करार देगी. ट्रम्प ने कहा है कि फ़ासीवाद के विरोध और आंतकवाद में फ़र्क है.
साथ ही अमेरिकी अटॉर्नी जनरल विलियम बर ने शनिवार को कहा- 'अमेरिका में George के लिए शुरू हुए आंदोलन को कट्टरपंथी और आंदोलनकारियों ने हाइजैक कर लिया है. बाहरी कट्टरपंथी और आंदोलनकारी स्थिति को और बिगाड़ रहे हैं. वो इसे अपने निजी फायदे के लिए इस्तेाल कर रहे हैं...
डेमोक्रेटिक पार्टी से राष्ट्रपति पद के संभावित उम्मीदवार जो बिडेन ने प्रदर्शनों के दौरान हो रही हिंसा की निंदा की. बिडेन ने कहा, प्रदर्शन इस तरह होना चाहिए, जिससे इसका महत्व कम न हो.
नेशनल एसोसिएशन फ़ॉर द एडवांमेन्ट ऑफ़ कलर्ड पीपल ने एक बयान जारी कर कहा है कि, "ये हरक़तें हमारे समाज में काले लोगों के ख़िलाफ़ एक ख़तरनाक मिसाल बनाती हैं जो नस्लीय भेदभाव, ज़ेनोफ़ोबिया और पूर्वाग्रह से प्रेरित है." "हम अब और मरना नहीं चाहते."
इस घटना के बाद अब अमरीका में नस्लीय हिंसा के इतिहास पर चर्चा छिड़ गई है. काले लोगों के ख़िलाफ़ पुलिस की बर्बरता के मामलों को लेकर लोगों का गुस्सा बढ़ रहा है...मिनेपॉलिस के मेयर जेकब फ्रे ने एक ट्वीट कर कहा है, "अमरीका में काले समुदाय से होने का मतलब मौत की सज़ा के समान नहीं होना चाहिए."
पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति बराक़ ओबामा ने अपने बयान में एक अधेड़ उम्र के अफ्रीकी अमरीकी व्यवसायी की बात दोहराई है. उन्होंने लिखा,
"मैं आपको बताना चाहता हूं कि मिनेसोटा में जॉर्ज फ़्लॉयड के साथ हुई घटना दुखद थी. मैंने वो वीडियो देखा और मैं रोया. इस वीडियो ने एक तरह से मुझे तोड़ कर रख दिया. 2020 के अमरीका में ये सामान्य नहीं होना चाहिए. ये किसी सूरत में सामान्य नहीं हो सकता."
इस घटना ने अमरीकी समाज और क़ानूनी एजेंसियों में नस्लीय भेदभाव की गहरी जड़ों पर एक बार फिर चर्चा छेड़ दी है. ये घटना ऐसे वक्त में हुई है जब अमेरिका में कोरोना के कारण लाखों जानें जा चुकी हैं साथ ही 4 करोड़ लोगों की नौकरियां जा चुकी हैं. कोराना महामारी से देश में सबसे बुरी तरह से प्रभावित लोगों में अल्पसंख्यक काले समुदाय के लोग शामिल हैं और अब आने वाले राष्ट्रपति चुनावों के मद्देनज़र पुलिस हिंसा और नस्लीय भेदभाव को ये मुद्दा एक अहम चुनावी मु्द्दा बन गया है.