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पुरखा पेड़... देवदार

उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल के बालचा टौंस वन क्षेत्र में देवदार के इस पेड़ ने अपना जीवन जिया था. इस पेड़ का जन्म 1215 में यानी कुतुबमीनार के निर्माण काल में हुआ रहा होगा. जबकि, इसकी मौत 1919 में यानी जलियांवाला बाग के समय हुई होगी.

- Kabir Sanjay


अगर कभी आप देहरादून के फारेस्ट रिसर्च म्यूजियम (एफआरआई) में जाएं तो पेड़ के तने की यह फांक आपका ध्यान जरूर खींचेगी. मैं पहली बार कोई 1996 में गया था. तभी मैंने इसे देखा था. अभी हाल ही में ट्विटर पर किसी ने यह तस्वीर साझा कि तो याद तुरंत ताजा हो गई.

उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल के बालचा टौंस वन क्षेत्र में देवदार के इस पेड़ ने अपना जीवन जिया था. इस पेड़ का जन्म 1215 में यानी कुतुबमीनार के निर्माण काल में हुआ रहा होगा. जबकि, इसकी मौत 1919 में यानी जलियांवाला बाग के समय हुई होगी.


इस पेड़ की उम्र 704 साल आंकी गई है. इसकी मोटाई का अंदाजा आप इससे लगा सकते हैं कि इसके अर्धव्यास की लंबाई 140 सेंटी मीटर है. सात सौ साल का जीवन जीने वाले इस पेड़ ने अपने जीवनकाल में बहुत सारी ऐतिहासिक घटनाओं का सामना किया होगा. मुगलों के आगमन से लेकर देश के अंग्रेजों का गुलाम बनने जैसी तमाम घटनाएं इसके जीवनकाल में हुई थीं.

म्यूजियम में रखी गई पेड़ के तने की इस फांक में बड़ी ही खूबसूरती से उन घटनाओं को दर्शाया गया है जो उस पेड़ के जीवनकाल में घटी रही होंगी. आप जानते ही हैं कि पेड़ों के तने में पड़ने वाले वार्षिक वलय या एनुअल रिंग से किसी भी पेड़ की आयु की गणना की जाती है. इन्हीं वलयों के आधार पर उस समय घटनाओं का संकेत लगाया गया है.

लेकिन, सबसे महत्वपूर्ण बात. सात सौ सालों के इस जीवन में इस पेड़ ने न जाने कितने टन कार्बन डाई आक्साइड का अवशोषण किया होगा. जो आज भी इसके तने में जमा है. आज जब हम लाखों तरीके से कार्बन पैदा कर रहे हैं। तब ऐसे पेड़ों की अहमियत कितनी बढ़ जाती है.

क्या आज हम ऐसे वृक्षों-दरख्तों की कल्पना कर सकते हैं जो अपनी पूरी जिंदगी जीने के बाद मरें. उन्हें वक्त से पहले ही मार न दिया जाता हो.

अपने आस-पास देखिए. शायद ही कोई ऐसा दरख्त दिखाई पड़े....


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