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एक NRI का अपने देशवासियों के नाम ख़त

आप लोगों को हम बहुत बड़े देशभक्त नजर आते होंगे क्योंकि हम तिरंगे, तीज-त्योहार और तमन्नाओं में अपना प्रेम खूब जाहिर करते हैं. पर यकीन मत कीजिए. ये तीनों 'त' दरअसल हमारे लिए एक ही शब्द के पर्यायवाची हैं - तमाशा. और यह तमाशा हम इसलिए करते हैं क्योंकि पहचान के संकट से निजात का हमारे पास और कोई रास्ता नहीं है.

-विवेक आसरी




(कहने भर को) प्यारे भारतीयो,


हम विदेशी भारतीय, जिन्हें आप NRIs कहते हैं, सबसे बड़े वाले होते हैं. कुल मिलाकर विदेश में हम इसलिए हैं क्योंकि हमें भारत का रहन-सहन, (अ)सुविधाएं. कानून, यंत्र-तंत्र... एक शब्द में, 'कुछ भी' बर्दाश्त नहीं है. हम अपने बच्चों को भारत नहीं लाते क्योंकि उनके पेट खराब हो जाएंगे. हमारे बच्चे जब हमसे बेहतर अंग्रेजी में अंग्रेज बच्चों से बात करते हैं तो हमारा सीना फूलता है. जब हमारे रिश्तेदार हमसे मिलने विदेश आते हैं तो हम उन्हें जगह-जगह ये दिखाते फिरते हैं कि कैसे विदेश भारत से बेहतर है. यहां का ट्रैफिक, यहां का सिस्टम, यहां के बच्चे, यहां के बूढ़े. और जो रिश्तेदारों को नहीं बताते हैं, लेकिन दोस्तों को बताना नहीं भूलते हैं, यहां की लड़कियां, यहां की औरतें...


हम आपको जब भी नजर आते होंगे, भीड़ के रूप में नजर आते होंगे. तो आपको लगता होगा कि हमारे बीच जोर का एका है. आपको अंदाजा नहीं है कि हम जबानों पर कुदालें लिए चलते हैं. जहां जब जैसे मौका मिला, दूसरे के लिए गड्ढा खोद देते हैं. आप हमारी भीड़ में आकर देखिए, हम सिर्फ एक दूसरे की बुराई करते सुनाई देंगे.


आप लोगों को हम बहुत बड़े देशभक्त नजर आते होंगे क्योंकि हम तिरंगे, तीज-त्योहार और तमन्नाओं में अपना प्रेम खूब जाहिर करते हैं. पर यकीन मत कीजिए. ये तीनों 'त' दरअसल हमारे लिए एक ही शब्द के पर्यायवाची हैं - तमाशा. और यह तमाशा हम इसलिए करते हैं क्योंकि पहचान के संकट से निजात का हमारे पास और कोई रास्ता नहीं है. विदेशों में विदेशियों जैसे नहीं हो सकते. ना हम उन जैसा खा सकते हैं, ना पहन सकते हैं. पर पहचान का संकट हमारे सामने हमेशा खड़ा रहता है. हम हर वक्त उस 'पूछ' की तलाश में रहते हैं जो यहां हमें नहीं मिलती. तब हम अपने तमाशों से वह पहचान पाने की कोशिश करते हैं. इस तरह हम दूसरों से अलग नजर आने लगते हैं. विदेशी हमारा रंग-बिरंगा तमाशा देखकर खूब प्रभावित होते हैं. तारीफ करते हैं. और हम खुश हो जाते हैं.


पर आप भारतीयों को ये तमाशा कभी समझ नहीं आता. आपको तो एनआरआई अद्भुत लगते हैं. क्योंकि आप भी तो एनआरआई हुए जाना चाहते हैं. ये तमाशा देश से ही विदेश लाए हैं हम. तो कुल मिलाकर आप हम सब एक ही थाली के हैं...


लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.

सिडनी (ऑस्ट्रेलिया) में रहते हैं.

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