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मुख्यमंत्री पुष्कर धामी : कैसा रहेगा बीजेपी का नया दाँव

अब तक किसी भी क़िस्म का मंत्रालय सम्हालने का अनुभव ना रखने वाले पुष्कर धामी पर जब सीधे मुख्यमंत्री पद का भार आ गया है, उनकी व्यक्तिगत् नेतृत्व क्षमताएँ अब अचानक से उत्तराखंड भाजपा के भविष्य के लिए निर्णायक हो गई हैं.

- Rohit Joshi

PC : BJP Uttarakhand

उत्तराखंड में मुख्यमंत्री बदलाव के ताज़ा घटनाक्रम से अगर कोई एक बात निचोड़ के तौर पर सामने आई है तो वह है बीजेपी के भीतर दमदार नेताओं के बीच जबरदस्त खींचातान. हालॉंकि अब तक बीजेपी ख़ुद के अनुशासित पार्टी ​होने का दावा करते हुए कॉंग्रेस को उसके भीतरी घमासान के लिए घेरती आई है.


पार्टी आला कमान ने एक समझदार रणनीति से इस बार इस संकट को एक हद तक टाला लिया है लेकिन सिर पर आ पहुॅंचे चुनावों में इस फ़ैसले का असल परिणाम आना अभी बाक़ी है.


संवैधानिक संकट के बहाने मुख्यमंत्री तीरथ रावत को महज़ 114 दिनों में हटाए दिए जाने के बाद, कद्दावर नेता सतपाल महाराज, हरक सिंह रावत, धन सिंह रावत जैसे और भी जिन दूसरे नामों के बारे में अगले मुख्यमंत्री के तौर पर कयास लगाए जा रहे थे, उन सब को गच्चा देकर आख़िरकार एक अनुभवहीन नए चेहरे को आगे कर बीजेपी नेतृत्व ने एक अप्रत्याशित रणनीतिक क़दम उठाया है.


उधम सिंह नगर की खटीमा सीट से दूसरी बार विधायक चुन कर आए पुष्कर सिंह धामी को आगे कर देने से इस रेस में शामिल कद्दावर नेताओं के अहम की टकरार से जो संकट बीजेपी में खड़ा हो सकता था, बीजेपी उसे टालने में एक हद तक क़ामयाब रही है.


लेकिन यहॉं एक जोखिम सामने है, जिसका ख़ामियाज़ा बीजेपी तीर​थ रावत को मुख्यमंत्री बनाकर पहले ही भुगत चुकी है. आसन्न चुनावों के जिस नाज़ुक समय में पुष्कर धामी को मुख्यमंत्री के तौर पर आगे किया गया है, यहॉं यह सिर्फ़ शेष बची सीमित अवधि के लिए मुख्यमंत्री का चेहरा पेश कर देना भर नहीं है, बल्कि आगामी चुनावों के नेतृत्व का भार भी इस पद के साथ नत्थी है.


ऐसे में अब तक किसी भी क़िस्म का मंत्रालय सम्हालने का अनुभव ना रखने वाले पुष्कर धामी पर जब सीधे मुख्यमंत्री पद का भार आ गया है, उनकी व्यक्तिगत् नेतृत्व क्षमताएँ अब अचानक से उत्तराखंड भाजपा के भविष्य के लिए निर्णायक हो गई हैं. हालॉंकि नए मुख्यमंत्री में अनुभव की कमी के चलते अगर यह माना जाए कि इतनी कम अवधि में असल में उन्हें एक कठपुतली की तरह ही काम करना होगा, तो यह ग़लत ना होगा. बावजूद इसके मुख्यमंत्री पद जितना अहम है, उस पर आसीन व्यक्ति की क्षमताओं को ज़ाहिर होने से नहीं रोका जा सकता. भाजपा इसे तीरथ रावत के ताज़ा अनुभव से बख़ूबी जानती है.


तीरथ रावत को भी जब मुख्यमंत्री पद सौंपा गया था तो उसके पीछे इसी तरह की सोच थी. लेकिन तीरथ रावत के लगातार आए विवादित बयानों और मीडिया में हुई उसकी किरकिरी ने बीजेपी को जल्द ही उसके इस ब्लंडर का अभास करा दिया था.

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