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पृथ्वी दिवस: क्या कोरोना ने किया पृथ्वी का इलाज?

चीन में कार्बन उत्सर्जन पर नज़र रखने वाले सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर ने बताया है कि बीते मार्च महीने में चीन में पिछले साल हुए कार्बन उत्सर्जन में 25 फीसदी की गिरावट आई है। वहीं, कोलंबिया यूनिवर्सिटी के एक शोध के अनुसार, न्यूयॉर्क में मार्च-अप्रैल महीने में होने वाले औसत कार्बन उत्सर्जन में 50 फीसदी तक कमी आ गई है।

- अभिनव श्रीवास्तव



निस्संदेह, कोरोना वायरस का प्रसार दुनिया भर में मानव सभ्यता के लिए अस्तित्व का संकट बनकर आया है। लेकिन इस महामारी की रोकथाम के लिए अपनाए गए तरीकों के पर्यावरण के लिहाज़ से अप्रत्याशित सकारात्मक नतीजे दिखाई दिए हैं। अमेरिका, चीन, इटली और भारत समेत दुनिया के कई देशों में लगाए गए लॉकडाउन ने मानवीय और औद्योगिक गतिविधियों पर विराम लगा दिया। इसका पहला असर इन सभी देशों में जानलेवा स्तर तक पहुंचे हुए वायु प्रदूषण पर पड़ा है। चीन में कार्बन उत्सर्जन पर नज़र रखने वाले सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर ने बताया है कि बीते मार्च महीने में चीन में पिछले साल हुए कार्बन उत्सर्जन में 25 फीसदी की गिरावट आई है। वहीं, कोलंबिया यूनिवर्सिटी के एक शोध के अनुसार, न्यूयॉर्क में मार्च-अप्रैल महीने में होने वाले औसत कार्बन उत्सर्जन में 50 फीसदी तक कमी आ गई है। यूरोपियन स्पेस एजेंसी ने भी सैटेलाइट इमेज के आधार पर ये कहा है कि अमेरिका के भीड़भाड़ वाले इलाकों की वायु में नाइट्रोजन ऑक्साइड्स की मात्रा पिछले साल के मुक़ाबले काफी कम हो गई है। कुछ इसी तरह के निष्कर्ष भारत से भी आए हैं। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, देश की राजधानी दिल्ली में मार्च के तीसरे सप्ताह में हानिकारक 2.5 PM की वायु में औसत मात्रा 71 फीसदी कम हो गई। दिल्ली की वायु में नाइट्रोजन डाइ आक्साइड की मात्रा में भी इतनी ही गिरावट दर्ज की गई। हालांकि पर्यावरण को मिलने वाली राहत की यह गणित इतना सीधा नहीं है। दुनिया भर में जानकार ये मान रहे हैं कि ये सभी अस्थाई राहतें हैं और स्थितियां सामान्य होने के बाद प्रदूषण वापस उसी स्तर पर पहुंच जाएगा। इसके अलावा महामारी के दौरान कचरे के प्रबंधन की चुनौतियां बढ़ गई हैं। मत्स्य पालन आदि भोजन से जुड़ी बहुत सारी चीज़ें बरबाद होने से कचरा बन गई हैं और उनके प्रबंधन का कोई इंतज़ाम नहीं है. इन सबसे अलग United Nations Conference on Trade and Development (UNCTAD) ने पारिस्थितिक तंत्र के सामने लॉकडाउन के चलते एक गंभीर संकट पैदा होने की संभावना जताई है। UNCTAD की वेबसाइट पर Robert Hamwey ने एक लेख लिखकर यह बताया है कि कई देशों में राष्ट्रीय पार्कों, मरीन कंजर्वेशन ज़ोन्स या दूसरी जगहों में पर्यावरण संरक्षण कार्यकर्ता लॉकडाउन के चलते घरों पर ही रहने को मजबूर हैं। ऐसे में इन पार्कों और अन्य जगहों की देखरेख करने वाला कोई नहीं रह गया है. उनकी अनुपस्थिति के चलते इन इलाक़ों में अवैध वनों के कटान, और वन्यजीवों के शिकार का ख़तरा पैदा हो गया है। लेकिन पर्यावरण के सामने पैदा हुए इन ख़तरों और चिंताओं का एक राजनीतिक पक्ष भी है। दुनिया भर में कुछ हिस्सों से ऐसी आवाजें उठना शुरू हो गई हैं जो लॉकडाउन के चलते होने वाले आर्थिक नुकसान को मानवीय जान-माल से अधिक बड़ा मानती हैं। बीते दिनों इसी सोच की नुमाइंदगी करते हुए ब्राजील के राष्ट्रपति जैर बोलसोनारो लॉकडाउन का सड़कों पर विरोध कर रही भीड़ के साथ आ खड़े हुए थे। उन्होंने अपने स्वास्थ्य मंत्री को भी लोगों से दैहिक दूरी बनाए रखने की अपील करने के चलते बर्खास्त कर दिया था। बोलसोनारो का नाम अमेजन के जंगलों को बर्बाद करने की मुहीम से भी जुड़ा रहा है। कोरोना महामारी से पस्त पड़े हुए अमेरिका में भी राष्ट्रपति ट्रम्प अब लॉकडाउन के चलते हो रहे आर्थिक नुकसान को अपने बयानों में तरजीह देते नजर आ रहे हैं। असल में ये आर्थिक मुनाफे को मानवीय अस्तित्व के ऊपर प्राथमिकता देने वाली यह सोच ही बड़ी चुनौती है। कोरोना महामारी ने इस सोच पर सवाल खड़ा करने का अवसर दिया है।

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