सबसे ऊँचे बांध में डूबेगा गांव और सपना
रस्यूना गाँव और उसकी 1 मेगावाट की परियोजना का सपना, ‘विकास’ के नाम पर भारत और नेपाल की सीमा पर महाकाली नदी में बनाई जा रही 5040 मेगावाट की पंचेश्वर बाँध परियोजना की 116 वर्ग किमी की झील की चपेट में आ कर डूब जाना है.

1962 में हुए भारत चीन युद्ध के बाद, चीन से लगती भारतीय सीमा की ओर जो सड़क बनाई गई उसी सड़क से, अल्मोड़ा और पिथौरागढ़ जिलों की सीमा पर बसे रस्यूना गांव की पैदल दूरी तकरीबन 7 किलोमीटर है। तकरीबन आधी सदी से अधिक समय बीत जाने के बाद भी रस्यूना गांव में अब तक यह 7 किमी सड़क नहीं बन पाई है। इसी तरह, सड़क के रास्ते पहुँचने वाला ‘विकास’ भी इतने सालों में इस गाँव में नहीं पहुँच पाया।
लेकिन पिछले कुछ सालों में गाँव के लोगों ने अपने विकास का रास्ता खुद चुना और गाँव के पास ही बहने वाली सरयू नदी पर, गाँव के लोगों के रोजगार के लिए 1 मेगावाट जल विद्युत परियोजना बनाने की ठानी। इसके लिए गाँव वालों ने मिलकर ‘सरयू हाइड्रोइलैक्ट्रिक पावर प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड’ नाम की एक प्रोड्यूसर्स कंपनी रजिस्टर कराई। इसके पीछे सपना था कि गाँव के प्राकृतिक संसाधनों से गाँव का स्वावलंबी विकास हो सके।
लेकिन अब रस्यूना गाँव और उसकी 1 मेगावाट की परियोजना का सपना, ‘विकास’ के नाम पर भारत और नेपाल की सीमा पर महाकाली नदी में बनाई जा रही 5040 मेगावाट की पंचेश्वर बाँध परियोजना की 116 वर्ग किमी की झील की चपेट में आ कर डूब जाना है।
‘सरयू हाइड्रोइलैक्ट्रिक पावर प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड’ परियोजना के निदेशक राम सिंह रोष के साथ कहते हैं, “हम लोग परियोजना बनाने के लिए औपचारिकताएं पूरी कर रहे हैं। इसी बीच हमें खबर मिली है कि रसयुना गाँव और हमारी परियोजना का प्रस्तावित क्षेत्र पञ्चेश्वर में बनने वाले 5040 मेगावाट की बांध परियोजयना की 116 वर्ग किमी की चपेट में आ जाएगा। अगर पञ्चेश्वर बांध बनता है तो हमारे गाँव के स्वावलंबी विकास का सपना भी इसी के साथ डूब जाएगा।”
रस्यूना गाँव के पास ही बजेली गाँव के बसंत सिंह खनी भी इस परियोजना से जुड़े हैं। वे कहते हैं, “हमारी कंपनी के मालिक रस्यूना और आस पास के गांवों के तीस परिवार हैं, और परिवारों को भी इससे जोड़ा जाना है।” वे आगे बताते हैं, “हमारी परियोजना का मकसद था कि अपने प्राकृतिक संसाधनों के दम पर गांव वालों को गांव में ही बढ़िया रोजगार मुहैया कराया जा सके और गांव से पलायन रुक सके। लेकिन अब यह परियोजना पंचेश्वर बांध की चपेट में आ जाएगी। और हमारी सारी मेहनत बेकार चली जाएगी।”
रस्यूना गाँव की इस परियोजना को तकनीकी तौर पर मदद कर रहे गांधीवादी ‘आज़ादी बचाओ आंदोलन’ से जुड़े इंजीनियर स्वप्निल श्रीवास्तव कहते हैं, ”हमने आईआईटी रुड़की और कई अन्य संस्थानों से जुड़े इंजीनियरों के साथ मिलकर इस परियोजना के लिए जो सर्वे कराया था उसके मुताबिक इसकी लागत 6 करोड़ रूपया होनी है। जिसे कंपनी कर्ज लेकर जुटाएगी।” श्रीवास्तव परियोजना के बारे में विस्तार से बताते हुए कहते हैं, ”इस परियोजना का जो बजट मॉडल बनाया गया है उसके अनुसार कर्ज और मेंटिनेंस के खर्चे निपटाने के बाद जो राशि मुनाफे के तौर पर बचेगी उससे परियोजना से जुड़े 100 परिवारों को 12 हज़ार रूपया प्रतिमाह मिलेगा। इस तरह की परियोजनाएं पहाड़ी गांवों से पलायन रोकने और स्थाई विकास की एक बड़ी पहल हो सकती हैं।”
इस परियोजना के लिए बनाए गए बजट के अनुसार 1 मेगावाट की विद्युत इकाई से यदि सिर्फ 800 किलोवाट विद्युत का उत्पादन भी होता है तो र्वतमान बिजली के रेट 3.90 रूपया प्रति यूनिट के हिसाब से एक घण्टे में 3120.00 रूपये, 24 घण्टे में 74,880.00 रूपये और एक माह में 22,46,400.00 रूपये की इन्कम होगी। इसी तरह यह आंकडा, सालाना 2,69,56,800.00 रूपये हो जाएगा। ढाई करोड़ से ऊपर की इस सालाना कमाई से इन गाँवों की आर्थिकी सुदृढ़ हो सकती है। ये गांव स्वावलम्बी बन सकते हैं। बजट के अनुसार लोन की 4 लाख प्रतिमाह की किस्त को भरने के अलावा, परियोजना के 10 से 15 लोगों के स्टाफ की 3.25 लाख प्रति माह तन्ख्वाह, मेंटेनेंस के 2.50 लाख के साथ ही 100 शेयर धारकों (ग्रामीण परिवारों) को 10000 से 12000 रूपया प्रतिमाह शुद्ध लाभ भी होगा। एक बार हाइड्रो पावर परियोजनाओं का र्निमाण र्काय पूरा हो जाय तो उसके बाद इससे ऊजा प्राप्त कर लेना बेहद सस्ता होता है। नदियों में बहता पानी इसके लिए सहज प्राप्य कच्चा माल होता है।
उत्तराखंड आंदोलन में मुख्य भूमिका निभाने वाली उत्तराखंड लोक वाहिनी भी इस परियोजना को मदद कर रही है। उत्तराखंड लोक वाहिनी के अध्यक्ष शमशेर सिंह बिष्ट ने बताया, ”हमने अलग राज्य के तौर पर अपने प्राकृतिक संसाधनों पर आत्मनिर्भर उत्तराखंड का सपना देखा था लेकिन उत्तराखंड बनने के बाद यहां के प्राकृतिक संसाधनों से लोगों के हक़ों को छीन कर उन्हें बाहरी लूट खसोट के लिए सौंपा जा रहा है।” वह रस्युना में ग्रामीणों के प्रयोग के बारे में कहते हैं, “रस्यूना में जिस तरह का प्रयोग ग्रामीण कर रहे हैं वह उत्तराखंड के ग्रामीण समाज के स्थाई विकास का प्रयोग है। यही पृथक उत्तराखंड राज्य का सपना भी था। लेकिन पंचेश्वर बांध जैसी विशाल परियोजनाएं जहां एक ओर पर्यावरणीय दृष्टि से खतरनाक हैं वहीं यह स्थानीय समुदाय को डुबोने वाली परियोजनाएं हैं। यह प्रतीकात्मक ही है कि यह पंचेश्वर बांध, रस्यूना की परियोजना के साथ ही सतत विकास के सपने को डुबो रहा है ।”
"सरकार को 5040 मेगावॉट विद्युत चाहिए तो वह पंचेश्वर में एक विशाल बांध बनाने के बजाय 1 मेगावॉट 5040 छोटी-छोटी परियोजनाएं बनाए और उसका मालिकाना हक स्थानीय समुदाय को सौंपे। इससे ना कोई गांव डूबेगा और लोगों को उनके अपने गांवों में स्थाई रोजगार मिल पाएगा।” रस्यूना गांव में लोगों के बीच काम कर रहे उत्तराखंड लोक वाहिनी से जुड़े कार्यकर्ता पूरन चंद्र तिवारी।
सरयू नदी में रस्यूना गाँव और और इसी तरह गढ़वाल के चिम्याला में बाल गंगा नदी पर भी स्थानीय लोगों की मिल्कियत वाली 1 मेगावॉट की परियोजना बनाई जा रही है। इन परियोजनाओं के पीछे, पलायन को रोक कर, उत्तराखंड के स्वावलंबी और स्थाई विकास का सपना है। लेकिन सरकार की पहल से पञ्चेश्वर में बनाई जा रही 5040 मेगावाट की परियोजना पहाड़ के 134 गाँवों के साथ ही स्वावलंबी विकास के इस को भी डुबोने जा रही है। बांध में डूब रहे अपने गाँव और सपने को लेकर रस्यूना गाँव के लोग चिंतित हैं।