पृथ्वी दिवस: पृथ्वी का संकट टला नहीं है
कुल मिला कर पिछले कई सालों से पर्यावरण चिंताओं के जो ढकोसले विश्व-शक्तियां कर रही थी और सड़कों से लेकर पर्यावरण सम्मेलनों में सिर पीट रहे पर्यावरण कार्यकर्ता जिसका आह्वान कर रहे थे, प्रकृति ने इनके परे पृथ्वी की सेहत सुधारने के लिए अपना ख़ुद एक रास्ता बना लिया. लेकिन संकट अभी टला नहीं है. जबकि ख़बरें तो बचैन करने वाली हैं.
- रोहित जोशी

सरपट भागती दुनिया के दृश्यों में कोरोनावायरस ने स्पेस बटन दबा दिया है और और मानव सभ्यता की बहुतायत चीज़ों को थमना पड़ा है. सड़कों पर सरपट भागती गाड़ियां अपने गैरेज़, सड़कों या गलियों के किनारे थमी पड़ी हैं. फ़ैक्ट्रियों की उन चिमनियों से भी धुंआ नहीं उठ पा रहा जो हवा में अनवरत धुंआ घोलती रहती हैं और भी दूसरी लगभग सभी चीज़ें ठप हैं. मानव सभ्यता के लिए चाहे कोरोना वायरस ने इस दौर में संकट खड़ा कर दिया हो लेकिन अगर बात समग्र पृथ्वी की करें तो इंसानों ने इसे जितने घाव दिए हैं उनमें से कुछ को हील करने का इसे मौका मिला है. दिल्ली से यमुना की ऐसी तस्वीरें आई हैं, जिनकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी. गंगा का 'कथित' पवित्र पानी पीने लायक हो सका. वीरान सड़कों, गलियों में शर्मीले जंगली जानवरों की ऐसी तस्वीरें खींची गई हैं जो कि सामान्य दिनों में दुर्लभ हैं. इटली में मची तबाही के बाद जब वहां सरकार ने लॉकडाउन के आदेश दिए और फिर यह सिलसिला दुनिया भर में अपनाना मजबूरी बन गई, तो इसके बाद पृथ्वी के श्वासतंत्र को, इसकी धमनियों को एतिहासिक मौका मिला ख़ुद को हील करने का. मार्च और अप्रैल के इन महीनों में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के कम होने से वायु प्रदूषण स्तर अकल्पनीय ढंग से कम हुआ. दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में हवा की गुणवत्ता में सुधार आया है. पृथ्वी भर में धमनियों की तरह फ़ैली नदियों और अन्य जलधाराओं में भी मानव उत्पादित औद्योगिक कचरे के ना गिरने से उनके जल का स्वास्थ भी सुधरा है. कुल मिला कर पिछले कई सालों से पर्यावरण चिंताओं के जो ढकोसले विश्व-शक्तियां कर रही थी और सड़कों से लेकर पर्यावरण सम्मेलनों में सिर पीट रहे पर्यावरण कार्यकर्ता जिसका आह्वान कर रहे थे, प्रकृति ने इनके परे पृथ्वी की सेहत सुधारने के लिए अपना ख़ुद एक रास्ता चुन लिया. लेकिन संकट अभी टला नहीं है, जबकि ख़बरें तो बचैन करने वाली हैं. हालांकि ऐसा नहीं है कि सारे प्रभाव सकारात्मक ही हैं. कचरे से होने वाला प्रदूषण अब भी चिंता का विषय बना हुआ है. सप्लाई चेन के बाधित होने से इसमें और अधिक इजाफ़ा हुआ है, क्योंकि कृषि, मत्स्य पालन आदि भोजन से जुड़ी बहुत सारी चीज़ें बरबाद होने से कचरा बन गई हैं और उनके प्रबंधन का कोई इंतज़ाम नहीं है.
इसके अलावा United Nations Conference on Trade and Development (UNCTAD) का कहना है कि कोरोनावायरस के चलते जो एहतियातन लॉकडाउन लगाया गया है उससे पारिस्थितिक तंत्र के सामने एक अलग तरह का ख़तरा पैदा हो गया है. UNCTAD की वेबसाइट पर Robert Hamwey ने एक आलेख लिखा है जिसमें उन्होंने कहा है, ''प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र और संरक्षित की गई प्रजातियों के सामने एक नए तरह का संकट उभरने का ख़तरा है. कई देशों में राष्ट्रीय पार्कों, मरीन कंजर्वेशन ज़ोन्स या दूसरी जगहों में जो पर्यावरण संरक्षण कार्यकर्ता हैं उन्हें लॉकडाउन के चलते घरों पर ही रहना पड़ रहा है. ऐसे में इन पार्कों और अन्य जगहों की देखरेख करने वाला कोई नहीं रह गया है. उनकी अनुपस्थिति के चलते इन इलाक़ों में अवैध वनों के कटान, और वन्यजीवों के शिकार का ख़तरा पैदा हो गया है.'' दुनिया भर में वन उपज और वन्य जीव तस्करी का बहुत बड़ा और संगठित बाज़ार मौजूद है जहां शक्तिशाली माफ़िया का राज है, ऐसे में यूएन की यह चिंता वाकई महत्वपूर्ण है.
लेकिन इन सबके परे एक और ख़तरा है जो नितांत राजनीतिक ख़तरा है. इसके सूत्र पकड़ने के लिए हमें ब्राज़ील चलना चाहिए जहां के राष्ट्रपति जैर बोलसोनारो पिछले दिनों अपने समर्थकों का हौसला बढ़ाने सड़कों पर उतर आए थे. ये समर्थक ब्राज़ील के राज्यों में गवर्नरों की ओर से लगाए गए लॉकडाउन का विरोध कर रहे थे. ब्राज़ील में बोलसोनारो लॉकडाउन का विरोध कर रहे हैं. उनकी राय में आर्थिक नुकसान लोगों की जान जाने से ज़्यादा ख़तरनाक है. राष्ट्रपति पहले ही अपने स्वास्थ मंत्री को पद से इसलिए बर्ख़ास्त कर चुके हैं क्योंकि वह दैहिक दूरी बनाने और एहतियात रखने की हिमायत कर रहे थे. बोलसोनारो वही हैं जिन्हें अमेजन के जंगलों को बर्बाद करने की मुहीम का आरोपी माना जा रहा है. बोलसोनारो का यह रवैया उनके अकेले का नहीं है बल्कि यह पृथ्वी के स्वास्थ से ऊपर मुनाफ़े को रखने की एक संगठित सोच है. यह अतीत में भी और वर्तमान में भी पृथ्वी के सामने सबसे बड़ी चुनौती है और संभव है कि भविष्य में भी रहेगी.
कोरोनावायरस के बाद की दुनिया के सामने एक मौक़ा है कि वह विकास की मौजूदा मुनाफ़ा खसोटने वाली सोच से उबर कर पृथ्वी की समूची प्रकृति को ध्यान में रखते हुए जीवन का एक रास्ता चुने. लेकिन पावरस्ट्रक्चर्स को ये कहां मंज़ूर हो सकता है?