क्या नया क़ानून, 'हॉंगकॉंग का अंत'?
जहां एक तरफ़ लोकतंत्र समर्थक कार्यकर्ता इस क़ानून को हॉंगकॉंग की स्वायत्ता को ख़त्म करने और यहां तक कि हॉंगकॉंग को ख़त्म करने वाला कह रहे हैं वहीं चीन की संसद के नेश्नल पीपल्स कॉंफ्रेंस के प्रवक्ता जांग येसुई ने कहा है कि यह क़ानून 'एक देश दो प्रणाली' वाली मौजूदा स्थिति में और सुधार लेकर आएगा.
- भारती जोशी

बृहस्पतिवार को चीन की सरकारी न्यूज़ ऐजेंसी ज़िन्हुआ न्यूज़ के ज़रिए चीन की नेश्नल पीपल्स कॉंग्रेस के प्रवक्ता ज़ांग येसुई ने बताया कि चीन एक ऐसा क़ानून लेकर आ रहा है जो कि हॉंगकॉंग में विरोध करने वाले लोगों की गतिविधियों को सीमित कर देगा.
येसुई के मुताबिक़ इस राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून को लेकर आने का मक़सद, राष्ट्रीय सुरक्षा को सुनिश्चित करना है.
उन्होंने कहा कि इस क़ानून के ज़रिए हॉंगकॉंग की ''क़ानून व्यवस्था को सुधारा जाएगा और उसे लागू किया जाएगा.''
इस क़ानन के बारे में चीन की संसद के सालाना सत्र नेश्नल पीपल्स कॉंग्रेस में चर्चा होनी है.
इस बयान ने पिछले कुछ दिनों से लगाए जा रहे क़यासों को पुष्ट कर दिया है जिसमें कहा जा रहा था कि चीन हॉंगकॉंग की ख़ुद की विधायिका पर नकेल कसने वाला है.
चीन के इस क़दम को हॉंगकॉंग में लोकतंत्र समर्थक कार्यकर्ता एक ख़तरनाक़ क़दम बता रहे हैं. उन्होंने कहा है कि यह सीधे हॉंगकॉंग के अस्तित्व पर हमला है. हॉंगकॉंग के लेजिस्लेचर और वक़ील डेनिस क्वॉक ने एक प्रेस कॉंफ्रेंस के दौरान कहा -
मैं अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को यह कहना चाहुंगा कि यह हॉंगकॉंग का अंत है. यह एक देश का अंत है बस और कुछ नहीं. इसके बारे में सोचें. चीन की सरकार ने पूरी तरह से हॉंगकॉंग के नागरिकों के साथ किए गए वादे को तोड़ दिया है. उसने उस वादे को तोड़ा है जो कि चीन—ब्रिटेन साझा समझौते में किया गया है. जिसमें चीन ने ख़ुद हस्ताक्षर किए हैं. अब वे पूरी तरह से उस समझौते में अपनी जवाबदेही से पीछे हट रहे हैं. उन्होंने हॉंगकॉंग के लोगों को धोखा दिया है. इस बारे में आप किसी भी ग़लतफ़हमी में ना रहें, हॉंगकॉंग को जो एक अंतराष्ट्रीय शहर का स्टेटस मिला है यह जल्द ही ख़त्म हो जाएगा. ''
एक दूसरी लेजिस्लेचर तेनी चान ने कहा कि यह घोषणा हॉंगकॉंग के इतिहास का सबसे दु:ख भरा दिन है -
यह हमारी एक बड़ी हार है. चीन की सरकार इंतज़ार नहीं कर सकती, वह हॉंगकॉंग के नागरिकों की आज़ादी और उन अधिकारों को नहीं बरदाश्त कर सकती जो कि हमें यहां उपलब्ध हैं. तो वह इसलिए ही जितना जल्दी हो सके इस क़ानून को पास करना चाह रही है.''
चीनी सरकार के विरोध में हॉंगकॉंग में पिछले साल लगातार प्रदर्शन होते रहे. इस क़ानून के ज़रिए चीन की कोशिश है कि सरकार के ख़िलाफ़ इस तरह के प्रदर्शनों पर स्थाई तौर पर नकेल कसी जा सके.
जहां एक तरफ़ लोकतंत्र समर्थक कार्यकर्ता इस क़ानून को हॉंगकॉंग की स्वायत्ता को ख़त्म करने और यहां तक कि हॉंगकॉंग को ख़त्म करने वाला कह रहे हैं वहीं चीन की संसद के नेश्नल पीपल्स कॉंफ्रेंस के प्रवक्ता जांग येसुई ने कहा है कि यह क़ानून 'एक देश दो प्रणाली' वाली मौजूदा स्थिति में और सुधार लेकर आएगा. उन्होंने कहा-
''देश में स्थिरता स्थापित करने के लिए नेश्नल सिक्योरिटी एक मज़बूत आधार है. नेश्नल सिक्योरिटी की रक्षा करने से चीन के बुनियादी हित सधते हैं साथ ही हॉंगकॉंग के हमारे हमवतन लोगों के भी.''
हॉंगकॉंग के इस घटनाक्रम पर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की भी नज़र है. अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने भी इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है,
"हॉंगकॉंग के नागरिकों की इच्छा के ख़िलाफ़, राष्ट्रीय सुरक्षा कानून को लागू करने की कोई भी कोशिश हॉंगकॉंग में एक भयानक अस्थिरता ले आएगी. और इसकी निंदा की जानी चाहिए”
हॉंगकॉंग 150 से अधिक साल तक ब्रिटेन का उपनिवेश रहा है. 1997 में चीन और ब्रिटिश सरकार ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए जिसे, सिनो-ब्रिटिश जॉइंट डिक्लियरेशन के नाम से जाना जाता है. इसके तहत दोनों देश इस बात पर सहमत हुए कि हॉंग कॉंग को अगले पचास सालों तक ''विदेश और रक्षा मामलों के अलावा दूसरे क्षेत्रों में एक उच्च स्तर की स्वायत्ता होगी.''
इसके चलते हॉंगकॉंग में अपना ख़ुद की न्याय व्यवस्था है, सीमाएं हैं और हॉंगकॉंग के नागरिकों के पास प्रदर्शन करने सभाएं करने और अभिव्यक्ति की आज़ादी जैसे कई लोकतांत्रिक अधिकार हैं. इसी क़िस्म की व्यवस्था को 'एक देश दो प्रणाली' कहा जाता रहा है. लेकिन अगर इस प्रस्तावित क़ानून को चीनी संसद पास कर देती है तो आशंका जताई जा रही है कि यह व्यवस्था तक़रीबन भंग हो जाएगी.