आख़िर ग्रह हैं कितने?
Updated: Jun 12, 2020
प्रश्न उठता है कि प्लूटो को आखिर ग्रहों के दर्जे से बाहर क्यों किया गया? तो इसके लिए ग्रह होने के लिए की तय की गई शर्तों को देखना पड़ेगा.
- कमलेश उप्रेती

इस प्रश्न का उत्तर ज्ञान की भिन्न शाखाओं के लिए भिन्न है. मसलन फलित ज्योतिष (एस्ट्रोलॉजी) में नौ ग्रह माने गए हैं जो कि इस प्रकार हैं सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहू और केतु कुल मिलाकर नौ ग्रह, जो कुंडली में विभिन्न राशियों में स्थित होते हैं.
आश्चर्य की बात है कि फलित ज्योतिष में सूर्य को ग्रह माना गया है जबकि यह एक तारा है चंद्रमा उपग्रह है और राहु व केतु का कोई भौतिक अस्तित्व नहीं है. इससे भी बड़ी आश्चर्य की बात कि हमारे खुद के ग्रह पृथ्वी को ज्योतिष में स्थान नहीं दिया गया है.
अभी हाल के कुछ वर्षों तक खगोल विज्ञान (एस्ट्रोनॉमी) में भी सौरमंडल के कुल नौ ही ग्रह माने गए थे. सूर्य की ओर से क्रमशः कक्षाओं में परिक्रमा करते बुध(मर्करी), शुक्र (वीनस), पृथ्वी(अर्थ), मंगल(मार्स), बृहस्पति (जुपिटर), शनि (सैटर्न), अरुण (युरेनस), वरुण (नेपच्यून) और यम (प्लूटो) हैं. यह हम हिंदी में लिखी विज्ञान की पाठ्य पुस्तकों में पढ़ते आए हैं. अब ये ग्रह भी धरती से देखने पर आकाश में विभिन्न राशियों में विचरण करते हैं, जो कि फलित ज्योतिष में भी माना गया है. वैसे प्लेनेट का शाब्दिक अर्थ ही होता है भ्रमण या विचरण करने वाला अथवा घुमक्कड़.
मगर अगस्त 2006 में कुछ ऐसा होता है कि इंटरनेशनल एस्टॉनोमिकल यूनियन यह निर्णय लेती है कि प्लूटो अब सौरमंडल का ग्रहण नहीं माना जाएगा बल्कि इसे एक बौना ग्रह या डवार्फ प्लेनेट कहा जाएगा. तो अब कुल मिलाकर सौरमंडल के आठ ही ग्रह रह गए हैं.
प्रश्न उठता है कि प्लूटो को आखिर ग्रहों के दर्जे से बाहर क्यों किया गया? तो इसके लिए ग्रह होने के लिए की तय की गई शर्तों को देखना पड़ेगा.
जिसमें से पहली शर्त है की किसी भी ग्रह को सूर्य के चारों ओर घूमना चाहिए.
दूसरी शर्त की इसमें स्वयं का इतना गुरुत्वाकर्षण होना चाहिए कि वह अपने आकार को बहुत हद तक गोलाकार बनाए रख सके.
तीसरी और आखिरी शर्त यह है कि इसके गुरुत्वाकर्षण को लगभग हर चीज को आकर्षित करे जो अंतरिक्ष में इसके बगल में है जिससे सूर्य की परिक्रमा करते हुए इसका रास्ता साफ रहे यानी इसके भ्रमण पथ पर कोई अवरोध न हों.
प्लूटो इनमें से पहली दो शर्तें पूरी करता है मगर तीसरी शर्त पर वह खरा नहीं उतरता. क्योंकि इसका परिक्रमण पथ साफ नहीं है उसमें कई चट्टानें तैरती रहती हैं.
इस कारण से इसे ग्रह के दर्जे से हटा कर बौना ग्रह कहा जाना तय हुआ.
तो आगे से हम नई पीढ़ी को बताएंगे तो ग्रहों की संख्या कितनी कहेंगे, और कौन से ग्रह कहलाएंगे, क्या फिर कभी इनकी परिभाषा में बदलाव होगा, यह विज्ञान की तात्कालिक जरूरतें तय करेंगी.
फलित ज्योतिष में नव ग्रहों के गुण धर्म इस प्रकार तय किए गए हैं जिनकी स्तुति उन्हें प्रसन्न करने के लिए की जाती है
जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महाद्युतिम ।
तमोSरिं सर्वपापघ्नं प्रणतोSस्मि दिवाकरम ।।
दधिशंखतुषाराभं क्षीरोदार्णव सम्भवम ।
नमामि शशिनं सोमं शंभोर्मुकुट भूषणं ।।
धरणी गर्भ संभूतं विद्युत्कान्ति समप्रभम ।
कुमारं शक्ति हस्तं तं मंगलं प्रणमाम्यहम ।।
प्रियंगुकलिकाश्यामं रूपेणाप्रतिमं बुधम ।
सौम्यं सौम्य गुणोपेतं तं बुधं प्रणमाम्यहम ।।
देवानां च ऋषीणां च गुरुं कांचनसन्निभम ।
बुद्धि भूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पितम ।।
हिम कुन्दमृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम ।
सर्वशास्त्रप्रवक्तारं भार्गवं प्रणमाम्यहम ।।
नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम ।
छायामार्तण्डसंभूतं तं नमामि शनैश्चरम ।।
अर्धकायं महावीर्य चन्द्रादित्यविमर्दनम ।
सिंहिकागर्भ संभूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम ।।
पलाशपुष्पसंकाशं तारकाग्रह मस्तकम ।
रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम ।।
आधुनिक खगोल शास्त्र इनसे वास्ता नहीं रखता है. इन ग्रहों के पूजन वंदन से क्या लाभ होगा यह विज्ञान का चिंतन क्षेत्र नहीं है. आज मनुष्य ने सौर मंडल के लगभग सभी ग्रहों और उनके अनेक उपग्रहों पर अपनी प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष या मशीनी किसी न किसी रूप में उपस्थिति दर्ज करा दी है और इनमें जीवन की संभावना तलाशी जा रही है.