Joshimath: दरारों से झांकता 'विकास मॉडल'
-रोहित जोशी
‘समयांतर’ के फ़रवरी अंक से साभार.

दिल्ली (एनसीआर) छोड़कर कर फिर वापस लौट आने के बीच, बीते 6 सालों में उत्तराखंड से, 'राष्ट्रीय स्तर' के मीडिया हाउसों के साथ फ्रीलांस रिपोर्टिंग का मेरा अनुभव बताता है कि उत्तराखंड महज़ एक वजह से राष्ट्रीय मीडिया का ध्यान खींच पाता है और वह वजह है यहां की प्राकृतिक आपदाएं. इसके अलावा कभी-कभार ही उत्तराखंड के कुछ राजनीतिक-सामाजिक घटनाक्रम राष्ट्रीय मीडिया में अपनी जगह बना पाते हैं, वरना महज़ प्राकृतिक आपदाएं ही राष्ट्रीय मीडिया के आइने में अपना रिफ़्लेक्शन पाती हैं. और यहां की आपदाएं तो यहीं नहीं ठहरती जबकि अंतर्राष्ट्रीय मीडिया को भी अपनी तरफ़ देखने पर मजबूर कर देती हैं.
मीडिया एकेडमिक संभवत: मीडिया की इस प्रवृत्ति की विस्तृत पड़ताल कर सकते हैं लेकिन जो मोटी बात समझ में आती है वह है कि मीडिया में या कहें कि हमारे समाज में 'सनसनी' के प्रति एक ख़ासा आकर्षण है और आपदाएं बखूबी ऐसी 'सनसनी' पैदा कर पाती हैं.
इस बार, लंबे समय से धीरे-धीरे दरक रहे जोशीमठ की ख़बरें, अचानक से राष्ट्रीय मीडिया में सुर्खियां बन गईं. अचानक, बेतरह और बेतहाशा कवरेज जोशीमठ के हिस्से आया. टीवी/मोबाइल स्क्रीन और अख़बार के पन्नों में आए घरों-इमारतों, सड़कों-रास्तों में पड़ी दरारों के विजुअल्स ने एकदम से देश भर को दहला दिया. मीडिया कैमरों और रिपोर्टरों के आगे जोशीमठ के वाशिंदों ने अपने अपने दु:ख रोए. दूर बैठे दर्शकों और पाठकों की स्मृतियों में केदारनाथ का भयावह मंज़र फिर तैर उठा. जोशीमठ अगले कुछ दिन एक मीडिया इवेंट की तरह छाया रहा. और हफ़्ता भी नहीं हुआ कि फिर धीरे-धीरे मीडिया की (ख़ासकर टीवी मीडिया की) सुर्खियों से ग़ायब होने लगा, मानो जोशीमठ का दरकना अब थमने लगा हो.
ख़ैर! इस अचानक फैली अफ़रा-तफ़री के पीछे जोशीमठ क़स्बे के बीचों बीच पिछले तक़रीबन 7 महीने से डेवलप हो रहे सब्सीडेंस ज़ोन/भूधंसाव क्षेत्र में अचानक से कुछ ही दिनों में -5 सेंटीमीटर का धंसाव आ जाना वजह बना. नैशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर यानी NRSC और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी ISRO ने सेटेलाइट-आधारित डाटा के अपने शुरुआती अध्ययन के कुछ परिणाम जारी करते हुए यह तथ्य बताया था.[1] इस प्रारंभिक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया था कि -5 सेंटीमीटर का यह भूधंसाव संभवत: 2 जनवरी को ही हुआ हो, जैसा कि प्रत्यक्षदर्शियों ने भी महसूस किया था. क़स्बे के इस ख़ास हिस्से में धीरे-धीरे आ रही दरारें अचानक से बढ़ गई और ठीक इसी तरह यहां के रहवासियों के दिलों में दहशत भी. NRSC और ISRO की शुरुआती अध्ययन रिपोर्ट में यह भी बताया गया था कि अप्रैल से लेकर नवम्बर 2022 तक के 7 महीनों में धीमे-धीमे जोशीमठ में -9 cm का भू-धंसाव हुआ था. ऐसा नहीं था कि इस धंसाव को लोगों ने महसूस नहीं किया था. ना सिर्फ इसे महसूस किया गया था जबकि इसे लेकर स्थानीय लोगों ने लगातार प्रशासन और सरकार को ज्ञापन देकर सूचित भी किया था. लेकिन उस समय ना ही शासन प्रशासन ने इस तरफ संजीदगी से ध्यान दिया और ना ही मीडिया ने ज़्यादा तवज्जो दी. बेशक स्थानीय मीडिया में और कुछ ‘राष्ट्रीय मीडिया’ में भी छिटपिट स्तर पर यह ख़बर ज़रूर मौजूद रही. समयांतर के जुलाई अंक में भी जोशीमठ के स्थानीय निवासी और एक्टिविस्ट अतुल सती ने इस मसले को तफ़सील से समझाता एक आलेख लिखा था. इधर, बीबीसी हिंदी के रिपोर्टर विनीत खरे और कैमरापर्सन दीपक जसरोटिया ने अक्टूबर महीने के आखिर में जोशीमठ का दौरा कर एक विस्तृत वीडियो और ऑनलाइन रिपोर्ट की थी.[2] उस रिपोर्ट के विजुअल्स दर्शाते हैं कि उस वक़्त भी घरों में काफ़ी बड़ी दरारें आ चुकी थीं. ठीक उसी तरह जैसी बाद में जनवरी के शुरुआती हफ़्ते में हमने मीडिया रिपोर्टों में देखी थी. लेकिन बीबीसी जैसे प्लैटफ़ॉर्म पर तफ़सील के साथ की गई यह रिपोर्ट ठीक उसी तरह ना ही 'सनसनी' पैदा कर सकी और ना ही किसी ज़िम्मेदार शासन-प्रशासन के अमले ने इस पर ध्यान दिया, जिस तरह वहां लंबे समय से आवाज़ उठा रहे लोगों पर ध्यान नहीं दिया गया था.
कब हुई शुरुआत :
असल में जोशीमठ में भूधँसाव की यह शुरुआत, और पहले नवंबर 2021 में ही हो गई थी. अतुल सती समयांतर के जुलाई, 2022 के अंक में अपने आलेख में लिखते हैं, “नवंबर 2021 अंतिम सप्ताह में लोगों ने अपने घर-मकानों पर दरारें देखीं जो धीरे-धीरे बढ़ने लगीं. यह पूरे जोशीमठ में ही हो रहा था. कुछ जगहों पर यह बहुत अधिक हुआ. लोगों को मजबूरन जान बचाने के लिए घर खाली करने पड़े. जोशीमठ की सड़कें टेढ़ी होने लगीं. जगह-जगह भूमि धंसने लगी.''[3]
इससे ठीक पहले 7 फरवरी को ऋषिगंगा में आई भीषण बाढ़ ने अपनी अग्रगामी धौलीगंगा के साथ मिलकर जोशीमठ के निचले पहाड़ पर मार की थी.[4] उसके विजुअल्स और ख़बरों ने भी मीडिया और सोशल मीडिया का काफी ध्यान खींचा था. एनटीपीसी की निर्माणाधीन तपोवन विष्णुगाड़ जल विद्युत परियोजना के बैराज को ध्वस्त करते हुए इस बाढ़ ने वहां काम कर रहे तकरीबन 140मज़दूरों को भी अपनी चपेट में ले लिया था. परियोजना की टनल बाढ़ के मलबे से भर गई और भीतर फंस गए मज़दूरों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा. इस दुर्घटना के बाद आए बारिश के मौसम हुई तेज़ बरसात के बाद ही जोशीमठ में स्थानीय लोगों ने पहले पहल भूधंसाव महसूस किया था इसलिए शुरुआत में ऐसी आशंकाएं जताई जा रही थीं कि घरों इमारतों में आ रही दरारों की एक वजह ऋषिगंगा में आई बाढ़ भी हो सकती है.
मुआवजे का गणित
इधर, (23) जनवरी 2023 तक जोशीमठ के घरों-मुहल्लों में लगातार बढ़ती जा रही दरारों ने क़स्बे के सारे ही 9 वार्डों के कम से कम 863 घरों को अपनी चपेट में ले लिया. कुछ इलाक़ों में दरार का प्रभाव ज़्यादा था और कुछ में कम. ज़िला प्रशासन ने 181 घरों को असुरक्षित घोषित किया है. सबसे ज़्यादा प्रभावित और ख़तरे की जद में मौजूद घरों के 145 परिवारों को शहर की ही दूसरी सुरक्षित जगहों पर विस्थापित कर दिया गया है. उत्तराखंड सरकार ने प्रभावितों को शुरुआत में 5000 रुपया प्रति परिवार देने की पेशकश की लेकिन स्थानीय लोगों ने इस मुआवजे को स्वीकार करने से इनकार कर दिया. जैसे जैसे इस ख़बर को मीडिया में ज़्यादा कवरेज़ मिलने लगा और सरकार से अब तक बरती गई लापरवाही और अनदेखी पर सवाल पूछे जाने लगे, तो सवालों को टालने के लिए उत्तराखंड सरकार ने मुआवजे की राशि को बढ़ाकर 3000 परिवारों के लिए कुल 45 करोड़ के राहत पैकेज की घोषणा करते हुए 1.5 लाख रुपये प्रति प्रभावित परिवार को देने की पेशकश की. जोशीमठ पहुंचे उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का कहना था कि ऐसी इमारतों के लिए जिन्हें सम्भावित ख़तरे के चलते ज़मींदोज़ करना होगा, उनका मुआवज़ा बाज़ार भाव के अनुरूप देने के बारे में सोचा जाएगा. ''यह कितना होना चाहिए इसके बारे में प्रभावितों से विचार विमर्श किया जाएगा.''[5]
सरकार के आश्वासनों के बाद भी स्थानीय लोगों में आशंकाएं बरक़रार हैं. कई लोगों ने अपनी क्षतिग्रस्त इमारतों को ढहाए जाने का विरोध किया है. वे मुआवजे की राशि से संतुष्ट नहीं हैं. जोशीमठ में भूधंसाव के बाद स्थानीय लोगों के सवालों को उठाने वाले संगठन 'जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति' ने इस मुआवजे को लेने से भी इनकार कर दिया. उनका कहना है कि बद्रीनाथ के रिडेवलेपमेंट को लेकर बने बद्रीनाथ मास्टर प्लान में प्रस्तावित आधार पर मुआवजा दिया जाना चाहिए जिसमें सर्किल रेट से 6 गुना ज़्यादा का प्रावधान है.
जोशीमठ का इतिहास-भूगोल और भूगर्भ:
जोशीमठ को अस्थिर कर देने वाले इस भूधंसाव की वजहों को जानने की कोशिश से पहले आइए जोशीमठ के इतिहास और भूगोल से थोड़ा परिचय करते चलें. ऊँचे बर्फ़ीले हिमालय की स्नो-लाइन, और हरे-भरे मध्यहिमालय की ट्री-लाइन जिन पर्वतों तक आते आते ख़त्म होती है, इसी प्राकृतिक सरहद के क़रीब ख़ूबसूरत नज़ारों के बीच 6,150 फुट (1,875 मीटर) की ऊँचाई पर बसा है जोशीमठ क़स्बा. सर्दियों में यह शहर बर्फ़ की चादर ओढ़ लेता है और यह सर्द मौसम यहां लम्बा चलता है.
इस क़स्बे में इंसानी बसासत का इतिहास काफ़ी पुराना है. यह नगर उत्तराखंड के पहाड़ी भूगोल पर राज करने वाले कत्यूरी राजवंश की पहली राजधानी रहा, जिसके बारे में माना जाता है कि इस राजवंश का पहला शासक, बासुदेव कत्यूरी बौद्ध था जिसने बाद में आदिगुरू शंकराचार्य के प्रभाव में ब्राह्मण धर्म और उसके आचार विचार को स्वीकार कर लिया. (बाद में कत्यूरी अपनी राजधानी कुमाऊँ और गढ़वाल के सीमाई संगम, बैजनाथ में ले गए. यहां फैले उपजाऊ सेरे कत्यूर घाटी कहलाए और उसके बीचों बीच कार्तिकेयपुर/बैजनाथ क़स्बे को कत्यूरियों ने अपनी राजधानी बनाया.)
आदिगुरू शंकराचार्य की इस भूगोल की यात्रा के बारे में मान्यता है कि यहाँ एक शहतूत के एक पेड़ के नीचे समाधिस्थ हो उन्हें दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हुई थी. फिर यहीं उन्होंने ज्योतिर्धाम की स्थापना की, जो ज्योतिर्मठ और बाद में प्रचलन में जोशीमठ कहलाया.बहरहाल शहतूत का वह एतिहासिक पेड़ भी अब भूधंसाव की जद में है और इससे लगे मंदिर में भी दरारें आ गई हैं.
बहरहाल, बावजूद कत्यूरी राजवंश की राजधानी होने के जोशीमठ क़स्बे की बसासत ज़्यादा नहीं रही होगी. बाद के समय में अंग्रेज़ अधिकारियों के लिखे दस्तावेज़ों में भी यहां एक मामूली बसासत का ज़िक्र मिलता है. नीती और माणा दर्रों के ज़रिए तिब्बत के साथ सदियों से हो रहे व्यापार के चलते अस्थाई चहल पहल रहा करती थी. 1872 में इस क़स्बे की जनसंख्या 455 और 1881 में 572बताई जाती है. 1900 में यह जनसंख्या घटकर 468 हो गई.[6] संभवत: अस्थाई बसासत वाले लोग जनगणना के वक़्त क़स्बे में मौजूद ना रहे हों.
अंग्रेज आईसीएस अधिकारी एचजी वॉल्टन के लिखे ‘ब्रिटिश गढ़वाल- अ गजेटियर’[7] में ज़िक्र मिलता है कि 1910 में यह थोड़े से मकानों, रैनबसेरों, मंदिरों और चौरस पत्थरों से बनाए गए नगरचौक वाला एक अधबसा सा क़स्बा था. बीते दशकों में जोशीमठ क़स्बे की आबादी तेज़ी से बढ़ी है. 2011 की जनगणना के मुताबिक़ यहां की जनसंख्या 16,709 दर्ज की गई थी और अब यह जनसंख्या 26 हज़ार के आस-पास जा पहुंची है.
बात अगर इस भूगोल की भूगर्भीय संरचना की जाय तो भूगर्भशास्त्री बताते हैं कि यह इलाक़ा दो भूगर्भीय थ्रस्ट के बीच पड़ता है, पहला मेन सेंट्रल थ्रस्ट (MCT) और दूसरा वैक्रिटा थ्रस्ट (VT). और इसके चलते भूगर्भीय हलचलों के लिहाज़ से ये इलाक़ा काफ़ी संवेदनशील है और इसे सबसे अधिक ख़तरे वाले ज़ोन 5 में डाला गया है। भूगर्भशास्त्रियों का मानना है कि असल में यह पहाड़, बीती शताब्दियों में सिकुड़ते गए ग्लेशियर्स से पिघल गई बर्फ के बाद शेष बचे बोल्डरों, कंकड़ों और मिट्टी का ढेर (मोरेन) है. भूगर्भशास्त्री बताते हैं कि पहाड़ी की जिस ढलान पर जोशीमठ बसा है वह अतीत में आए किसी बड़े भूस्खलन का अवशेष रही है. इसके चलते यह भूगोल अस्थिर माना जाता है और पहले भी इस क़स्बे का भूधंसाव और भूस्खलनों से वास्ता पड़ता रहा है.
भू-धंसाव की वजहों की पड़ताल :
हालांकि, जोशीमठ में हो रहे इस भूधंसाव को लेकर किसी भी वैज्ञानिक अध्ययन की अंतिम रिपोर्ट सामने नहीं आई है, लेकिन कई वरिष्ठ वैज्ञानिकों और भूगर्भशास्त्रियों ने अतीत में हुए अध्ययनों और उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर इस भूधंसाव की संभावित वजहों की ओर इशारा किया है. इन विशेषज्ञों की राय है कि ऊपरी तौर पर प्राकृतिक आपदा दिखता यह भूधंसाव असल में इस अति संवेदनशील क़स्बे में बीते दौर में हुई व्यापक मानवीय दखलअंदाज़ी का ही परिणाम है, जिसे लेकर दशकों पहले हुए अध्ययन में भी चेतावनी दे दी गई थी.
1960—70 के दशक में भी जोशीमठ में भूधंसाव नोटिस किया गया था. उत्तरप्रदेश के इस सुदूर सीमांत इलाक़े में भूगर्भीय हलचल के इन संकेतों पर ध्यान देते हुए तत्कालीन उत्तरप्रदेश सरकार ने गढ़वाल के तत्कालीन कमिश्नर एमसी मिश्रा की अध्यक्षता में एक 17 सदस्यीय कमेटी गठित की थी. 1976 में जारी हुई इस कमेटी की रिपोर्ट[8] में जोशीमठ की उपरोक्त संवेदनशील भौगोलिक और भूगर्भीय अवस्थिति की व्याख्या करते हुए यहां बड़े और अवैज्ञानिक निर्माण कार्यों से एकदम परहेज़ किए जाने की हिदायत दी गई थी. रिपोर्ट में कहा गया था, ''जोशीमठ बालू और पत्थरों का ढेर है, यह मुख्य चट्टान नहीं है. इसलिए यह किसी क़स्बे की बसासत के लिए उपयुक्त जगह नहीं थी. विस्फोटों के इस्तेमाल और भारी यातायात से पैदा होने वाली कंपन भी प्राकृतिक कारकों में असंतुलन पैदा कर देगी.''
यह रिपोर्ट आगे शहर के ड्रेनेज़ सिस्टम को दुरुस्त किए जाने, सड़क के निर्माण में किन चीज़ों का ख़्याल रखा जाना चाहिए, किस तरह ढलानों में खेती से परहेज़ कर वृक्षारोपण किया जाना चाहिए और पेड़ों की कटाई में एकदम रोक लगाए जाने, सरीखे जोशीमठ के स्थायित्व से जुड़े और भी कई सुझाव देती है. खास तौर पर सड़क निमार्ण और दूसरे क़िस्म के निर्माण कार्यों के बारे में इस रिपोर्ट में कहा गया था, ''सड़कों को दुरुस्त करने और दूसरे निार्मण कार्यों के लिए यह सुझाव दिया जाता है कि खुदाई करके या विस्फोटकों के इस्तेमाल से यहां पहाड़ों में से बोल्डर्स को नहीं हटाया जाना चाहिए... इससे ज़मीन का आधार खिसक जाएगा और परिणामस्वरूप भूस्खलन हो जाएगा.'' तक़रीबन आधी शताब्दी पहले इस रिपोर्ट में जोशीमठ के नाज़ुक भूगोल को संवेदनशीलता के साथ बरतने के जितने विज्ञान सम्मत सुझाव दिए गए थे, बाद के सालों में हमने देखा है कि उन सुझावों की सिरे से अवहेलना कर जोशीमठ क़स्बे ने विस्तार पाया.
जोशीमठ के साथ हमने क्या किया?
वैज्ञानिक बार-बार दोहराते रहे हैं कि हिमालय दुनिया के सबसे नए पहाड़ हैं और इसकी चट्टानें अपने निर्माण की प्रक्रिया में ही हैं. ऐसे में यहां आधुनिक विकास परियोजनाओं की देश के दूसरे इलाक़ों की तरह हू-ब-हू नकल नहीं की जा सकती. बेतरह शहर नहीं बसाए जा सकते, मनमाफ़िक चौड़ी सड़कें नहीं बनाई जा सकतीं और अतिविशाल निर्माणकार्य नहीं किए जा सकते. यहां के भूगोल और पर्यावरण को विकास के एक अलग एप्रोच की ज़रूरत है. पिछली शताब्दी के आखिरी दशक में एक नया पहाड़ी राज्य उत्तराखंड बनाने की परिकल्पना ने जिन दिमागों में आकार लिया था उसके सबसे विज़नरी लोगों में इस राज्य को लेकर जो परिकल्पना थी उसमें यहां के भूगोल और पर्यावरण की उपरोक्त चिंताएं शामिल थीं. हालॉंकि राज्य बनने के बाद जिस राजनीतिक संस्कृति ने यहां आकार लिया उसमें ऐसे लोग हाशिए में चले गए.
ख़ैर! जोशीमठ में भूधंसाव से बने इन हालातों के बाद भूगर्भ शास्त्रियों और दूसरे विशेषज्ञों ने अपने विश्लेषणों में आशंका ज़ाहिर की है कि अब जोशीमठ क़स्बे को इस भूधंसाव से बचाया जा सकना मुमकिन नहीं है.[9] मोटे तौर पर कहा जाए तो जोशीमठ भी असल में उत्तराखंड के विकास मॉडल का शिकार बना है. चलिए समझने की कोशिश करें जोशीमठ में क्या हुआ है?
बड़े निर्माण :
तपोवन-विष्णुगाड़ जल विद्युत परियोजना :
जोशीमठ के माजूदा हालात के लिए स्थानीय लोग और पर्यावरण एक्टिविस्ट सबसे बड़ा सवालिया निशान शहर से कुछ दूर धौलीगंगा नदी पर बन रही नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन की 520 मेगावॉट की तपोवन विष्णुगाड़ जल विद्युत परियोजना पर लगा रहे हैं. इस परियोजना के लिए बैराज से पावरहाउस तक पानी ले जाने के लिए ठीक उस पहाड़ पर एक 12.1 किलोमीटर लंबी सुरंग खोदी जा रही है जिसके बीच में जोशीमठ और शीर्ष पर स्कीइंग के लिए मशहूर टूरिस्ट डेस्टिनेशन औली बसा है. यह सुरंग तक़रीबन औली और जोशीमठ के बीच ठीक नीचे एक किलोमीटर की गहराई से गुजरती है. इस परियोजना में 8.5 किलोमीटर की सुरंग की बोरिंग कर खुदाई होनी है और 3.6 किलोमीटर की सुरंग विस्फोटकों के इस्तेमाल से खोदी जा रही है. इस परियोजना का शुरुआत से ही कई स्थानीय लोग और पर्यावरण एक्टिविस्ट विरोध करते रहे हैं.
परियोजना के सुरंग निमार्ण के दौरान अब तक तीन बार टनल बोरिंग मशीन/TBM पहाड़ी की जटिल भूगर्भीय संरचनाओं में फंस चुकी है. जब दिसंबर 2012 यह वाक़या पहली बार हुआ तो इस बोरिंग मशीन ने भूगर्भीय संरचनाओं में मौजूद पानी के चैंबर को पंक्चर कर दिया था और तेज़ रफ़्तार से चट्टानों के भीतर से पानी रिसने लगा था.
अगस्त 2015 में शोध पत्रिका रिसर्चगेट में इस वाक़ये की पड़ताल करता एक विस्तृत रिसर्च पेपर बर्नार्ड मिलेन, जार्जियो हूफ़र ओलिंगा और ब्रैंडल जोहान ने लिखा. रिसर्च पेपर कहता है,
''पहली बार मशीन के फंसने का यह वाक़या चेनगेट (Ch) 3016 मीटर पर 900 मीटर की गहराई पर एक एक विषम फॉल्ट ज़ोन में हुआ. मशीन के फंसने के दौरान सामने की और टैलिस्कोपिक शील्ड फंस गई और भारी वेज स्लाइड्स की वजह से जाम हो गई और टूट गई. इसके तक़रीबन 24 घंटे बाद, चट्टानी अवशेषों (फ़ॉल्टेड रॉक मटीरियल) से मिश्रित उच्च दबाव वाले उपसतह के पानी (सबसर्फ़ेस वॉटर) ने सेग्मेंटल लाइनिंग के दो क्राउन सेग्मेंट्स को तोड़ डाला, जिसमें से शुरुआत में लगभग 700 लीटर प्रति सेकंड की बहाव दर से रिसाव होने लगा और इसने ट्रैपिंग की समस्या को और बढ़ा दिया.''
एक आशंका यह जताई जा रही है कि सुरंग खुदाई के दौरान भूगर्भीय जल के इस बड़े चैम्बर के पंक्चर हो जाने से यह खाली हो गया और इसके चलते चट्टानों के बीच एक कैविटी यानी खाली जगह बन गई और धीरे धीरे ऊपरी चट्टानों के दबाव में यहीं से भूधंसाव की शुरुआत हुई होगी.
सुरंग के भीतर टीबीएम के फंसने के तकनीकी पहलुओं पर शोध करते उपरोक्त पेपर के अध्ययन के बाद वरिष्ठ वैज्ञानिक और सुप्रीम कोर्ट की ओर से ऑल वैदर रोड की समीक्षा के लिए गठित कमेटी की अध्यक्षता करने वाले डॉ. रवि चोपड़ा की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि इस रिपोर्ट को पढ़ कर वे इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि टनलिंग (सुरंग बनाने की प्रक्रिया) की वजह से यहां के भूजल के तंत्र पर प्रभाव पड़ा है. टनल में पानी का जितना रिसाव हुआ, उससे कई गुना अधिक, 7 फरवरी 2021 को आई बाढ़ का पानी सुरंग में घुस गया. उससे चट्टानों में नई दरारें बनी और पुरानी दरारें चौड़ी हो गयी, जिसका प्रभाव अत्यधिक व्यापक होगा.
डॉ. रवि चोपड़ा ने अपने बयान में कहा है कि इस बात के पर्याप्त आधार हैं कि हम आज जो झेल रहे हैं, वह एनटीपीसी की सुरंग निर्माण प्रक्रिया का परिणाम है. उन्होंने कहा है कि सुरंग निर्माण के दौरान नियंत्रित विस्फोट करने का एनटीपीसी का दावा खोखला है क्योंकि साइट पर विस्फोट करते समय कोई वैज्ञानिक नहीं बल्कि ठेकेदार रहता है, जो अपना काम ख़त्म करने की जल्दी में होता है.
हालॉंकि खुद पर लग रहे सवालिया निशानों पर एनटीपीसी ने सफाई देते हुए कहा है कि हाईड्रो इलैक्ट्रिक प्रोजेक्ट के लिए बनाई जा रही टनल की इस भूधंसाव में कोई भूमिका नहीं है. एनटीपीसी तपोवन के चीफ़ जनरल मैनेजर राजेन्द्र प्रसाद अहिर्वार के हवाले से बिजनेस स्टैंडर्ड ने लिखा है कि सुरंग जोशीमठ से हाते हुए नहीं गुजरती है, इसलिए इसके निर्माण की वजह से भूधंसाव हुआ हो इसकी कोई संभावना नहीं है. इसके अलावा उन्होंने कहा है कि टनलिंग में ब्लास्टिंग का इस्तेमाल जिस हिस्से में हुआ है उसकी दूरी जोशीमठ शहर से 11 किलोमीटर की दूरी पर है. इस बीच जोशीमठ में जेपी कॉलोनी में बनी एक दरार से लगातार बह रहे पानी के सेंपल्स के अध्ययन के बाद नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ हाइड्रोलॉजी ने इसे प्रोजेक्ट साइट के पानी के सेंपल से अलग बताया है.
लेकिन एनटीपीसी और इस तरह के दूसरे सरकारी दावों पर एक्टिविस्ट और कई विशेषज्ञ सवाल उठा रहे हैं. वे आरोप लगा रहे हैं कि सरकारी दबाव में महज़ एनटीपीसी और दूसरी निर्माण एजेंसियों के समर्थन में ही आँकड़े और रिपोर्ट्स बाहर लाई जा रही हैं. जबकि इन निर्माण कार्यों पर सवाल उठाने वाली रिपोर्टों और तथ्यों को मीडिया के साथ साझा करने पर सरकार ने रोक लगा दी गई है.
बढ़ती आबादी और पर्यटन का बोझ :
जैसा कि ऐतिहासिक दस्तावेज़ बताते हैं कि जोशीमठ एक मामूली बसासत वाला क़स्बा रहा है जहां धार्मिक यात्रियों और दर्रों के पार तिब्बत के साथ होने वाले व्यापार के चलते अस्थाई चहल पहल रहा करती थी. बीते दशकों में धीरे-धीरे जहां इस क़स्बे की आबादी तेज़ी से बढ़ी है वहीं बद्रीनाथ, हेमकुंड साहेब, औली और वैली ऑफ़ फ़्लावर्स जैसी यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज़ साइट्स तक जाने का एक ट्राज़िट पॉइंट होने के चलते यह एक टूरिज़्म का हब बनकर उभरा है. अगर अकेले बद्रीनाथ की बात करें तो 1960 के दशक के आंकड़े बताते हैं कि उस दौर में 1 लाख से कम तीर्थयात्री सालाना बद्रीनाथ यात्रा के लिए पहुंचा करते थे. 1990 के दशक में आते आते यह आंकड़ा 5 लाख सालाना और 2012 तक 10 लाख सालाना तक आ पहुंचा था. 2013 की भीषण आपदा के बाद अगले साल इस यात्रा में काफ़ी कमी आई और 2014 में मुश्किल से 2 लाख यात्रियों की आमद हुई लेकिन उसके बाद फिर यह आंकड़ा साल दर साल बढ़ता गया और 2019 में कोविड—19 के लॉकडाउन से पहले 12 लाख तक जा पहुंचा. लॉकडाउन हटते ही 2022 में इस आंकड़े ने और उछाल मारी और 17 लाख लोगों की बद्रीनाथ में आमद हुई.
एक अनुमान के मुताबिक बद्रीनाथ के 30 प्रतिशत यात्री जोशीमठ में रात गुजारते हैं. सर्दियों में औली की बर्फ़बारी और स्कींइग देखने के शौकीनों का भी यहां तांता लगा रहता है. 2021-22 की सर्दियों में 4 लाख लोग यहां पहुंचे थे. वहीं सीमांत का यह इलाक़ा क्योंकि सामरिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है तो सेना और आईटीबीपी की टुकड़ियां भी यहां मौजूद हैं और उनकी चहल पहल भी क़स्बे की बसासत में अपना योगदान देती हैं.
इतनी बड़ी आबादी का बोझ ढोने की मजबूरी में बीते सालों में जोशीमठ क़स्बे का एक तंग विस्तार होता गया है. चमोली ज़िला प्रशासन के मुताबिक़ तक़रबीन 2.5 वर्ग किलोमीटर के इलाक़े में फैले जोशीमठ में तक़रीबन 3900 घर हैं और 400 के क़रीब व्यावसायिक भवन हैं. इंडियन एक्सप्रेस ने जोशीमठ नगरपालिका के एक अधिकारी के हवाले से लिखा है कि नगर पालिका को इनमें से महज़ 1790 घरों से गृह कर मिलता है और अधिकतर घर बिना ज़रूरी अनुमति लिए या नक्शा पास कराए बनाए गए हैं.[10]जोशीमठ और औली शहर में कुल मिलाकर तक़रीबन 200 होटलों या होमस्टे का संचालन हो रहा है.
कुल मिलाकर जोशीमठ क़स्बे में इमारतों का बोझ लगातार बढ़ता गया है जबकि इस बीच किसी ज़िम्मेदार ऐजेंसी ने इस शहर की भार धारण क्षमता का आंकलन करने की कोशिश नहीं की और बेतरतीब निर्माणकार्य जारी रहा है. ऐसे में यह सब जोशीमठ के मौजूदा संकट की एक वजह की तरह देखा जा रहा है.
ऑल वैदर रोड और हेलंग-मारवाड़ी बाईपास:
जोशीमठ में भूधंसाव के लिए यहां ऑल वैदर रोड के तहत बन रहे हेलंग-मारवाड़ी बायपास को भी एक वजह माना जा रहा है. ऑल वैदर रोड प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक पैट प्रोजेक्ट है, जिसमें तक़रीबन कुल 825 किलोमीटर की पांच सड़कों का चौड़ीकरण होना है. इनमें से चार सड़कें गढ़वाल में चार धामों की ओर जाती हैं और पांचवी सड़क कुमाऊं में टनकपुर से तवाघाट तक है जो कि कैलास मानसरोवर यात्रा का रूट है. चीन की सरहद की ओर बढ़ती इन पांचों सड़कों को रणनीतिक तौर पर भी महत्वपूर्ण माना जाता है. हालांकि ये परियोजना पर्यावरणीय नियमों के उल्लंघन के आरोपों से घिरी रही है. कई वैज्ञानिकों और एक्सपर्ट्स के बीच इसकी कुल चौड़ाई कितनी की जाए इसे लेकर मतभेद हैं.
इसी परियोजना के तहत बद्रीनाथ को जा रही सड़क में जोशीमठ क़स्बे के पास 6 किमी का हेलंग-मारवाड़ी बायपास बनाया जा रहा है. इसके लिए काटे जा रहे पहाड़ और इस्तेमाल होने वाली भारी मशीनों के चलते स्थानीय लोगों और कुछ विशेषज्ञों की राय है कि यह भी जोशीमठ में भूधंसाव को बढ़ाने की एक वजह हो सकती है क्योंकि इसके चलते जोशीमठ जिस पहाड़ी पर बसा है उसकी ढलानें कमज़ोर हुई हैं और स्थानीय भूगोल में अस्थिरता आ गई है. इस प्रोजेक्ट की समीक्षा करने के लिए सुप्रीमकोर्ट की ओर से गठित की गई समिति ने अपनी रिपोर्ट पेश करते हुए सुझाव दिया था कि इस बायपास को जीयो—टैक्निकल फ़ीज़ीबिलीटी स्टडी के बाद ही बनाया जाना चाहिए. हालांकि इन सुझावों की अनदेखी करते हुए काम शुरू कर दिया गया. दि हिंदू[11] की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ स्थानीय लोगों का कहना है बीआरओ ड्रिलिंग मशीन और विस्फ़ोटकों का इस्तेमाल करते हुए इस बाइपास का निर्माण कर रहा है. इसी रिपोर्ट में जोशीमठ के भूधंसाव का अध्ययन करने वाले एचएनबी गढ़वाल यूनिवर्सिटी के भूगर्भशास्त्री यशपाल सुंदरियाल को कोट करते हुए कहा गया है, ''सड़क के लिए होरहा भारी निर्माणकार्य उस बुनियाद को कमज़ोर कर दे रहा है जिस पर जोशीमठ टिका है. यह बात इस क़स्बे के अस्तित्व के लिए निर्णायक हो सकती है.''
सरकार बनाम सबक़
जोशीमठ में भूधंसाव का मौजूदा संकट यहां के नाजुक भूगोल के प्रति लापरवाहियों का नतीज़ा है. लेकिन बावजूद इसके उत्तराखंड की पुष्कर धामी सरकार इससे कोई सबक लेती नज़र नहीं आती. मुख्यमंत्री धामी ने अपने जोशीमठ दौरे में एनडीटीवी के पत्रकार सौरभ शुक्ला से बात करते हुए जो राय ज़ाहिर की है वह असल में ध्यान देने लायक है. उन्होंने कहा,
''हमारा पूरा प्रदेश हर साल आपदाओं से ग्रस्त रहता है. हमें आपदाओं से हर साल सामना करना पड़ता है, संघर्ष करना पड़ता है. और इस बार दुर्भाग्य से कहिए कि यहां पर आपदा आई है और लगभग 6-7 सौ मकान हमारे आपदा के प्रभाव में आए हैं, आपदाग्रस्त हुए हैं कहीं नुक़सान हुआ है. लेकिन चुंकी ये जो परसेंटेज़ है वो 20-25 परसेंट है पूरे जोशीमठ का. और इसके बगल में औली है. औली में अभी काफ़ी सारे पर्यटक आए हुए हैं. चार महीने बाद हमारी यहां पर, क्योंकि बद्रीनाथ धाम इसी रूट पर है, तो चारधाम यात्रा इसी रूट पर चलती है, वह यात्रा भी हमारी प्रारम्भ होने वाली है. एक ऐसा एटमॉस्फ़ेयर में देख रहा हूं पिछले कुछ दिनों से ये बनाया जा रहा है कि पूरा जोशीमठ शहर डूब गया है, पूरा जोशीमठ समाप्त हो गया है. पूरे उत्तराखंड के अंदर जो है भयंकर संकट आ गया है तो मैं कहना चाहता हूं कि ऐसा नहीं है. इस प्रकार का वातावरण बनाने से जहां उत्तराखंड के लोगों का तो सीधे-सीधे नुक़सान ही है क्योंकि यात्रा चलती है. लोग आते हैं, और लोगों की आजीविका भी चार धाम यात्रा से चलती है. और पूरे देश के लोगों की श्रद्धा आस्था का ये स्थान है. पौराणिक स्थान है, धार्मिक स्थान है, सांस्कृतिक स्थान है. तो उसको ध्यान में रखते हुए चीज़ों को आगे बढ़ाना चाहिए. मैं सभी से अनुरोध करता हूं कि ऐसी स्थिति नहीं है. हमारे यहां प्रत्येक वर्ष आपदाओं का सामना करना पड़ता है. ये आपदा भी आई है. आज मैंने भगवान नरसिंह जी के प्रांगण में जाकर भगवान नरसिंह जी से प्रार्थना की है कि जल्दी से इस आपदा से भी हम उबरें.''[12]
मुख्यमंत्री का यह बयान सरकार की प्राथमिकताओं को ज़ाहिर करता है. आपदा के इस मौक़े पर जब एक्सपर्ट्स कह रहे हैं कि जोशीमठ का यह संकट अब इर्रिवर्सिबल सिचुएशन में है. जोशीमठ के लोग दहशत में जी रहे हैं, उनके घरों और शहर में पड़ी दरारें इतनी बड़ी हो गई हैं कि मीडिया के रास्ते देशभर को दिखाई देने लगी हैं. इस संवेदनशील भूगोल को लेकर तक़रीबन आधे दशक से ज़ाहिर की जा रही चिंताओं के बावजूद मुख्यमंत्री का यह बयान बताता है कि सरकार के लिए अब भी प्राथमिकता में पर्यटन है और वह जोशीमठ की इस आपदा को हर साल होने वाली आपदाओं के एक सामान्य सिलसिले के तौर पर देखते हैं.
मुख्यमंत्री का यह रवैया जहां एक ओर उनके बयानों में दिखाई दिया है वहीं उनका प्रशासनिक अमला भी जोशीमठ में इसी दिशा में काम करता दिख रहा है. जोशीमठ को मिले शुरुआती मीडिया कवरेज के बाद यहां हर तरह के निर्माण कार्य पर रोक लगा दी थी. लेकिन ज़िला प्रशासन की नाक के ठीक नीचे जोशीमठ में हेलंग बद्रीनाथ बाइबास के निर्माण के लिए पहाड़ों का कटान फिर भी जारी रहा. एनडीटीवी के सौरभ शुक्ला ने 10 जनवरी की अपनी रिपोर्ट में लाइव दिखाया कि कैसे रात के समय बड़ी बड़ी मशीनों से पहाड़ों का कटान जारी है.[13] रिपोर्टों के मुताबिक इसी तरह दूसरी कंस्ट्रक्शन साइट्स में भी काम जारी रहा. यह दर्शाता है कि उत्तराखंड में कैसे असंवेदनशील हाथों में इस तरह के बड़े निर्माणकार्य सौंपे गए हैं. और अक्सर पूरे राज्य में जिन लोगों के पास इन बड़े निर्माणकार्यों के ठेके हैं वे राजनीतिक पार्टियों और सरकार के साथ से बेहद करीबी रखते हैं और प्रशासन अमला उन पर कोई रोक टोक नहीं कर सकता. वे अपने मुनाफ़े के लिए नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए पहाड़ को भीतर-बाहर से तोड़ रहे हैं.
ख़ैर! जो नज़रिया मुख्यमंत्री धामी ने अपने बयान में ज़ाहिर किया है वह असल में उत्तराखंड में सरकारों की समझ का एक सिलसिला ही है. 2013 की भयानक आपदा के बाद भी ठीक इसी समझ के साथ काम किया गया था. केदारनाथ क़स्बे के नवनिर्माण की प्रक्रिया में भी यही रवैया दिखाई दिया था. हर एक एक्पर्ट ऐजेंसीज़ की इस स्पष्ट हिदायत के बावजूद कि केदारनाथ में बाढ़ के बाद आए मलबे को स्थिर होने के लिए कुछ सालों का समय देना चाहिए, और फिर ही किसी क़िस्म का निर्माणकार्य वहां किया जाना चाहिए.[14] लेकिन इन सुझावों को दरकिनार करते हुए बीते समय में तक़रीबन 13 सौ करोड़ रुपया ख़र्च कर केदारनाथ में बेतहाशा निर्माणकार्य किया गया है. 2013 की आपदा के बाद से एक मीडिया इवेंट बन गए केदारनाथ के पुनर्निर्माण की बागडोर ख़ुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने हाथ में ले ली थी. 2017 में केदारनाथ से अपने एक संबोधन में प्रधानमंत्री ने 2018 में 10 लाख लोगों को केदारनाथ/चारधाम आने का निमंत्रण दिया था. हालांकि उस साल तक़रीबन साढ़े सात लाख लोग केदारनाथ पहुंचे लेकिन 2022 में केदारनाथ आने वाले पर्यटकों का यह आंकड़ा 14 लाख को पार कर गया, जबकि इस साल चारधाम यात्रा में आने वाले केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री में 40 लाख लोगों की आमद हुई.
बेशक सरकार इसके लिए अपनी पीठ थपथपाती है, और आंकड़ों की उसकी ये भूख साल दर साल बढ़ती जा रही है. लेकिन इस संवेदनशील भूगोल में हर साल बढ़ती भीड़ के बोझ को लेकर पर्यावरणविद् और वैज्ञानिकों के बीच काफ़ी चिंता है.
इधर सरकार ने जोशीमठ पर मीडिया कवरेज़ को कम करने के लिए नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथोरिटी के ज़रिए देशभर के शीर्ष दर्जन भर संस्थानों और वैज्ञानिक संस्थाओं को जोशीमठ आपदा को लेकर कोई भी जानकारी मीडिया के साथ साझा करने से मना कर दिया. इसी सिलसिले में NRSC और ISRO की वेबसाइट से सेटेलाइट-आधारित डाटा के शुरुआती अध्ययन के परिणामों की रिपोर्ट भी हटा ली गई.[15]
बहरहाल जोशीमठ की ख़बरें अब टीवी स्क्रीन से ग़ायब हो गई हैं. एक 'चमत्कारी बाबा' के 'चमत्कार' राष्ट्रीय बहस का विषय हैं. लेकिन जोशीमठ की दरारों से पहाड़ों का 'विकास मॉडल' बाहर झांक रहा है, और लोग अब भी दहशत में हैं.
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References:
[1] https://www.nrsc.gov.in/sites/default/files/pdf/DMSP/Joshimath_landslide_11Jan2023.pdf (बाद में यह रिपोर्ट सरकार के निर्देशों के बाद वेबसाइट से हटा ली गई थी.)
[2] उत्तराखंड के जोशीमठ में क्यों धंस रही है ज़मीन? ग्राउंड रिपोर्ट, BBC Hindi https://www.bbc.com/hindi/india-63426618 https://youtu.be/l-S9hB8R7N4
[3] सती अतुल, एकीकृत वैज्ञानिक अध्ययनों और चिंतन की ज़रूरत, समयांतर, जुलाई 2022
[4] Mehta Manish, Kumar Vinit, Sain Kalachand, Tiwari Sameer K., Kumar Amit and Verma Akshaya : Causes and consequences of Rishiganga flash flood, Nanda Devi Biosphere Reserve, central Himalaya, India : Current Science : https://currentscience.ac.in/Volumes/121/11/1483.pdf
[5] Talwar Gaurav & Azad Shivani : Uttarakhand increases Joshimath aid 30x to 1.5 per family http://timesofindia.indiatimes.com/articleshow/96920948.cms?utm_source=contentofinterest&utm_medium=text&utm_campaign=cppst : The Times of India
[6] पांडे अशोक : जोशीमठ के चमकने से दरकने तक की पूरी कहानी : BBC हिंदी https://www.bbc.com/hindi/india-64221584
[7] Walton, H. G. : British Garhwal – a Gazetteer https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.181556/page/n10/mode/1up
[8] मिश्रा कमेटी रिपोर्ट, 1976.
[9] Major tragedy on the anvil in sinking Joshimath: Experts : The Pioneer https://www.pioneeredge.in/major-tragedy-on-the-anvil-in-sinking-joshimath-experts/?fbclid=IwAR3oYHPv3HbVHSmIw0oXMJYFITMgSFBbcehYWfhN26UZrLGBHMGg7w0gNwE
[10] Mazoomdar Jay, Mishra Avaneesh : Joshimath built and built amid alerts: ISRO maps 5-cm dip in just 12 days https://indianexpress.com/article/india/rapid-subsidence-recorded-joshimath-built-built-amid-alerts-isro-maps-5-cm-dip-in-just-12-days-8380715/
[11] Upadhyay Kavita : Why is the land sinking in Joshimath? : The Hindu https://www.thehindu.com/sci-tech/science/explained-why-is-the-land-sinking-in-joshimath/article66364329.ece
[12] https://www.youtube.com/watch?v=JUzLrzxuIyY
[13] https://www.youtube.com/watch?v=18S1JKpcZ7w
[14] Joshi Rohit: In Rebuilding Kedarnath, a New Disaster in the Making : The Wire https://thewire.in/environment/kedarnath-temple-rebuilding-flood-lessons
[15] Joshimath : ISRO pulls down report, Govt tells top expert bodies not to speak to the media : Indian Express https://indianexpress.com/article/india/joshimath-govt-run-bodies-media-ban-isro-land-subsidence-images-withdrawn-8382141/