दिवालिया होने की कगार पर लेबनान
लेबनान तेजी से आर्थिक दिवालियापन, संस्थानों के खंडित होने, उच्च महंगाई दर और गहन गरीबी की ओर बढ़ रहा है और इन समस्याओं में महामारी ने और इजाफा कर दिया है.
khidki desk

लेबनान में 20 घंटे तक बिजली कटौती, सड़कों पर कूड़े के ढेर, कमजोर आधारभूत संरचना और एक के बाद एक आई आपदा के मद्देनजर विश्लेषकों की राय है कि यह देश दिवालिया होने की तरफ बढ़ रहा है. देश में रोजाना स्थिति भयावह होती जा रही है. बड़ी संख्या में लोगों को काम से निकाला जा रहा है, अस्पतालों के बंद होने का खतरा है, दुकान और रेस्तरां बंद हो रहे हैं. अपराध बढ़ता जा रहा है और सेना अपने सैनिकों को भोजन तक मुहैया नहीं करा पा रही है और गोदाम मियाद खत्म हो चुके खाने के सामान बेच रहे हैं.

विदेश मंत्री ने इस्तीफा दिया
लेबनान के विदेशमंत्री नसीफ हित्ती ने सोमवार को अपने पद से इस्तीफा दे दिया. देश में चल रहे गंभीर आर्थिक और वित्तीय संकट के बीच हित्ती पहले मंत्री हैं, जिन्होंने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दिया है. हित्ती ने प्रधानमंत्री को अपना इस्तीफा सौंप दिया और बिना कोई टिप्पणी किए उन्होंने सरकारी आवास खाली कर दिया. राजनयिक से अपना करियर शुरू करने वाले हित्ती प्रधानमंत्री हसन दियाब सरकार में इस साल जनवरी में विदेशमंत्री बने थे. खबर है कि हित्ती सरकार के प्रदर्शन और सुधार के लिए किए वादों पर कोई काम न होने से नाखुश थे.
लेबनान तेजी से आर्थिक दिवालियापन, संस्थानों के खंडित होने, उच्च महंगाई दर और गहन गरीबी की ओर बढ़ रहा है और इन समस्याओं में महामारी ने और इजाफा कर दिया है. इस संकट से लेबनान के बिखरने का खतरा बढ़ गया है, जो अरब में विविधता और मेलमिलाप के आदर्श के रूप में स्थापित है और इसके साथ ही अराजकता फैल सकती है.
लेबनान 18 धार्मिक संप्रदाय, कमजोर केंद्रीय सरकार और मजबूत पड़ोसी की वजह से क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्विता का शिकार होता रहा है, जिससे राजनीतिक जड़ता, हिंसा या दोनों का उसे सामना करना पड़ता है. लेबनान हमेशा से ईरान और सऊदी अरब के वर्चस्व की लड़ाई का शिकार बनता रहा है, लेकिन मौजूदा समस्या खुद लेबनान की पैदा की हुई है. यह दशकों से भ्रष्ट और लालची राजनीतिक वर्ग की वजह से हुआ है. इसकी चोट अर्थव्यवस्था के हर क्षेत्र पर पड़ी.
दुनिया में सबसे अधिक सार्वजनिक कर्ज के बावजूद लेबनान कई वर्षों से दिवालिया होने से बचा रहा. स्टडीज ऐट कार्नेगी इंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस के उपाध्यक्ष मरवान मुआशेर ने कहा-लेबनान में एक समस्या यह है कि यहां भ्रष्टाचार का लोकतांत्रीकरण हुआ है. यह केंद्र में बैठे एक व्यक्ति के साथ ही नहीं है, यह हर जगह है. हाल में सेंटर फॉर ग्लोबल पॉलिसी के एक सम्मेलन में उन्होंने कहा कि प्रत्येक धड़े का अर्थव्यवस्था में एक हिस्सा है जिसपर वह नियंत्रण करता है और उससे धन अर्जित करता है ताकि वह अपने धड़े को खुश रख सके.
उल्लेखनीय है कि परेशानी 2019 के आखिर में तब बढ़ी जब सरकार ने व्हाट्सएप मैसेज पर कर लगाने की इच्छा जताई, जिसे लेकर पूरे देश में भारी प्रदर्शन शुरू हो गया. माना जा रहा है कि अपने नेताओं से परेशान लोगों के खिलाफ खुलकर सामने आने के लिए इसने आग में घी का काम किया.
यह प्रदर्शन करीब दो हफ्ते तक चला जिसके बाद बैंक में और उसके बाद अनौपचारिक रूप से पूंजी नियंत्रण करने वाले संस्थानों में भी विरोध शुरू हो गया, जिससे डॉलर के निकालने या हस्तांतरित करने की सीमा तय कर दी गई.
विदेशी मुद्रा की कमी की वजह से लेबनानी पाउंड का मूल्य काला बाजार में 80 प्रतिशत तक गिर गया है और मूलभत वस्तुओं व खान-पीने के समान की कीमतें बेतहाशा बढ़ गईं. लेबनान विश्व मुद्रा कोष से मदद की उम्मीद कर रहा है, लेकिन कई महीनों तक चली बातचीत के बावजूद कोई सहमति नहीं बन पाई है.
हाल में बेरूत की यात्रा पर आए फ्रांस के विदेश मंत्री ने भी लेबनान को बिना विश्वसनीय सुधार किए सहायता देने से मना कर दिया. यूएस इंस्टीट्यूट ऑफ पीस में अमेरिकी उपराष्ट्रपतिके मध्य एशिया और अफ्रीका मामलों की सलाहकार मोना याकोउबियान ने वाशिंगटनके ‘दि हिल’ अखबार में लिखा, ‘लेबनान के पतन से यूरोप में शरणार्थियों के आने का नया सिलसिला शुरू हो जाएगा और इसके साथ ही सीरिया और इराक के बाद इलाके में और अस्थिरता पैदा हो जाएगी, जिसका नकारात्मक असर अमेरिका और उसके सहयोगियों पर भी पड़ेगा. ’