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चुम्बक का जादू

हम दोस्तों के बीच में एक गलतफहमी थी कि यदि 50 पैसे या 1 रुपए के सिक्के को ट्रेन की पटरी के ऊपर रखो और उसके ऊपर से ट्रेन गुजर जाए तो वह चुम्बक बन जाता है.

- राजेन्द्र प्रसाद जोशी

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दोस्तो आज आपको अपने बचपन का एक दिलचस्प किस्सा सुनाता हूँ.


बात बहुत पुरानी है तब मैं 5वीं या 6ठी कक्षा में पड़ता था। तब खेल के बहुत कम साधन हुआ करते थे, हमारे ज्यादातर खेल शारिरिक हुआ करते थे, जो कि ग्रुप में खेले जाते थे, जैसे चोर- सिपाही, आइसपाइस, खोखो, कबड्डी, इनिमिनी का पापड़ा, पिड्डू इत्यादि.


कुछ गिने-चुने खेल ही थे जिनके लिए साथियों की जरूरत नहीं होती थी.


तब चुम्बक (magnet) का बहुत क्रेज़ हुआ करता था, अकेले में भी चुम्बक से बहुत से मनोरंजक खेल खेले जा सकते थे. जिस बच्चे के पास चुम्बक होता था उसे हीरो समझा जाता था, जब वह चुम्बक के करतब दिखाता था तो बच्चे उसके दीवाने हो जाया करते थे.


मुझे भी चुम्बक रखने का बहुत शौक था लेकिन मेरे पास वह नहीं था, क्योंकि यह पैसे खर्च करने की क्षमता होने के बावजूद भी सुलभता से उपलब्ध नहीं हो पाता था. रेडियो के स्पीकर से निकला हुआ चुम्बक बहुत अच्छा समझा जाता था और ज्यादातर बच्चों के पास वही चुम्बक हुआ करता था, वह बड़ा व गोल होने के सांथ ही बीच में से खोखला होता था. यदि किसी दोस्त का चुम्बक टूट जाता था तो वह आपस के एक- दो दोस्तों को एक- एक टुकड़ा दे दिया करता था, वह दोस्त उसके बहुत अहसानमंद हो जाया करते थे.


हम दोस्तों के बीच में एक गलतफहमी थी कि यदि 50 पैसे या 1 रुपए के सिक्के को ट्रेन की पटरी के ऊपर रखो और उसके ऊपर से ट्रेन गुजर जाए तो वह चुम्बक बन जाता है.


उस जमाने में हम बच्चों को घर से जेब खर्च के 10 पैसे या अधिक से अधिक 15 पैसे रोज़ मिला करते थे. अब नई पीढ़ी के मित्र सोच रहे होंगे कि 10- 15 पैसे में क्या आता होगा! 10 पैसे में 10 संतरे वाली टॉफी, एक गिलास गन्ने का रस, आलू की टिक्कि, समौसा, आइसक्रीम, कुल्फ़ी आ जाया करती थी. आज की तरह चॉकलेट, पिज़्ज़ा, चाउमीन, मोमो का कोई नाम भी नहीं जानता था.


मुझे एक दिन कहीं रिश्तेदारी से 1 रुपया मिल गया, तभी मेरी एक दोस्त से मुलाकात हुई और बातों-बातों में हमारा सिक्के से चुम्बक बनाने का प्लान बन गया. उस दिन दोस्त के पास भी 50 पैसे का सिक्का था. हम दोनों रेलवे स्टेशन की तरफ चल दिए और स्टेशन से क़रीब 1 km आगे पहुंच गए, हम वहीं एक सुनसान जगह पर रुक कर ट्रेन की राह देखने लगे, क़ाफ़ी समय बाद हमें ट्रेन के आने का अहसास हुआ और कुछ देर बाद दूर से ट्रेन आती हुई दिखाई दी. हम दोनों ने अपने- अपने सिक्के पटरी पर रख दिए. ज्यों- ज्यों ट्रेन हमारी तरफ आ रही थी त्यों- त्यों हमारी खुशी और जिज्ञासा बढ़ती ही जा रही थी.


थोड़ी ही देर में ट्रेन हमारे सिक्कों को रौंदते हुए आगे बढ़ गई, जब ट्रेन पटरी से पार हो गई तो हम बहुत उत्सुकता से सिक्कों के करीब पहुंचे, एक सिक्का तो वहीं पटरी पर पिचका हुआ पड़ा था और एक सिक्का कहीं छटक चुका था, हमने उसे बहुत ढूंढा लेकिन वह नहीं मिला, फिर हमने सोचा कि चलो फिलहाल इसी को जांच लेते हैं, हमने उसे उठाकर कई तरह के लोहे पर लगा कर देखा लेकिन वह कामयाब नहीं हुआ. हमने सोचा कि ये सिक्का किसी कारणवश चुम्बक नहीं बन पाया होगा तो चलो दूसरे सिक्के को ढूंढ लेते हैं क्या पता वह चुम्बक बन गया हो.


हम दोनों उस सिक्के को ढूंढने लगे लेकिन वह नहीं मिला, इक्के-दुक्के लोग भी आना-जाना कर रहे थे, वो भी हमसे पूछ रहे थे कि क्या ढूंढ रहे हो हमारे पास कोई जवाब नहीं था. हमने सिक्का ढूंढने में जी- जान लगा दी लेकिन वह नहीं मिला, फिर हमने पटरी पर बिछे पत्थरों को हटा कर सिक्का ढूंढना शुरू किया तो क़ाफ़ी मशक्कत के बाद वह मिल गया, हमने बहुत उमीद के साँथ उसे भी जाँचा तो वह सिक्का भी चुम्बक नहीं बना था. हम दोनों दोस्त चुम्बक के चक्कर मे दिनभर भूखे रहे और अपना सा मुँह लेकर घर को लौट आए.


दुविधा में दोऊँ गए माया मिली ना... जो माया थी वह भी जाती रही.

हम दोनों दोस्तों को इस बात का बहुत दिनों तक अफ़सोस रहा.

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