कांतारा की खूबी और कमीबेशी
राज्य बनाम वनवासी समुदायों की कहानी को आखिर में मोड़कर महज़ वनवासी समुदाय और उनके स्थानीय धूर्त लालची नेतृत्व के संघर्ष में तब्दील कर दिया गया है.. राज्य की ओर से वनवासियों के जंगलों को फ़ॉरेस्ट रिज़र्व बनाने की जबरन कोशिश से पैदा हुआ संघर्ष, कहानी के आखिरी सिरे बेवजह में ग़ायब कर दिया गया है..

कांतारा सिनेमा का शानदार शिल्प है.. कहानी भी शानदार है (हालांकि आलोचना से परे नहीं..) वनवासी समुदायों के राजकीय तंत्र, वन विभाग, पुलिस और स्थानीय प्रभावशाली ललची राजनीतिज्ञों के साथ ऐतिहासिक और स्वाभाविक संघर्ष का प्लॉट है.. एक कसी हुई कहानी, शानदार अभिनय, निर्देशन और लाजवाब फ़िल्मांकन इसे एक मामूली फ़िल्म नहीं रहने देते.. ये हमारे दौर की एक महत्वपूर्ण फ़िल्म बन जाती है..
लेकिन अगर आपकी राज्य और वन निर्भर समुदायों के बीच के एतिहासिक संघर्षों पर कभी रुचि रही हो और आपने उसे समझने की कोशिश की हो तो आपको कंतारा की स्वाभाविक बहाव वाली कहानी आखिर में निराश कर सकती है क्योंकि कहानी में समझौते नज़र आते हैं.
राज्य बनाम वनवासी समुदायों की कहानी को आखिर में मोड़कर महज़ वनवासी समुदाय और उनके स्थानीय धूर्त लालची नेतृत्व के संघर्ष में तब्दील कर दिया गया है.. राज्य की ओर से वनवासियों के जंगलों को फ़ॉरेस्ट रिज़र्व बनाने की जबरन कोशिश से पैदा हुआ संघर्ष कहानी के आखिरी सिरे बेवजह में ग़ायब कर दिया गया है..
आखिर में स्थानीय समुदाय, फ़ॉरेस्ट डिपार्टमेंट के अधिकारियों के साथ मिलकर स्थानीय धूर्त नेता के गुंडों के ख़िलाफ़ लड़ता है और उन्हें परास्त कर देता है.. फ़ॉरेस्ट अधिकारियों और स्थानीय नेतृत्व की कड़वाहट अचानक कैसे बदल जाती है, क्यों वे साथ आकर लड़ने लगते हैं, फ़िल्म कन्विंस नहीं कर पाती.. जबकि ऐतिहासिक अनुभव कुछ और ही कहानी कहते रहे हैं.. ऐसी स्थितियों में नेक्सस हमेशा राज्य की संस्थाओं और स्थानीय लालची नेतृत्व का रहा है..
कहानी स्थानीय लोक देवता पर गहरी आस्था और उसके जादूई प्रभाव से गूंथी गई है.. फ़िल्मांकन में इस पहलू को आप एक क्रिएटिव फ़्रीडम की तरह ले सकते हैं, क्योंकि यह फ़िल्म की कलात्मकता को वाकई समृद्ध कर देता है और दर्शक के भीतर फ़िल्म का प्रभाव और व्यापक हो जाता है..
साथ ही यह एक तथ्य ही है कि दुनियाभर के प्रारंभिक समाजों में अपने लोक देवताओं पर इस तरह की मान्यताएं उनकी मनोवृत्तियों में गहरे बैठी हुई हैं.. वह एक ऐसा आभासी यथार्थ है, जो कि सार्वजनिक मान्यता के चलते एक किसी ख़ास टाइम एंड स्पेस में तक़रीबन यथार्थ की तरह ही फ़ंक्शनल हो जाता है.. (हालॉंकि, यह एक सरल विषय नहीं है.. एक लंबी चर्चा की दरकार रखता है..)
कुल मिलाकर कांतारा एक दर्शनीय फ़िल्म है. समय की बरबादी तो एकदम नहीं..