top of page

मोदी जी सबसे ज्यादा नौकरी छीनने वाले प्रधानमंत्री बन गए हैं

मोदी जी ने अपने करीब साढ़े पांच साल के कार्यकाल में चार करोड़ से ज्यादा नौकरियां खा चुके हैं. प्रो. अरुण कुमार का कहना है कि कहा जा रहा है कि हमारी अर्थव्यवस्था छह या पाँच प्रतिशत की रफ़्तार से भी बढ़ रही है. लेकिन वास्तव में आर्थिक विकास दर पांच, छह या सात प्रतिशत नहीं है बल्कि यह शून्य प्रतिशत की दर से बढ़ रही है, क्योंकि असंगठित क्षेत्र के आंकड़े इसमें शामिल ही नहीं किए जाते हैं. जबकि सबसे ज़्यादा असंगठित क्षेत्र ही प्रभावित हुआ है. जिस दिन आप असंगठित क्षेत्र के आंकड़े उसमें जोड़ लेंगे तो पता लग जाएगा कि विकास दर शून्य या एक प्रतिशत है.

- Krishna Kant

PC: PTI

अर्थशास्त्री प्रो. अरुण कुमार ने अपने एक लेख में लिखा है कि 'सीएमआई के आंकड़े कहते हैं कि देश में कर्मचारियों की संख्या 45 करोड़ थी, जो घट कर 41 करोड़ हो गई है. इसका मतलब यह है कि चार करोड़ लोगों की नौकरियां या काम छिन गए हैं.'


मोदी जी ने अपने करीब साढ़े पांच साल के कार्यकाल में चार करोड़ से ज्यादा नौकरियां खा चुके हैं. प्रो. अरुण कुमार का कहना है कि कहा जा रहा है कि हमारी अर्थव्यवस्था छह या पाँच प्रतिशत की रफ़्तार से भी बढ़ रही है. लेकिन वास्तव में आर्थिक विकास दर पांच, छह या सात प्रतिशत नहीं है बल्कि यह शून्य प्रतिशत की दर से बढ़ रही है, क्योंकि असंगठित क्षेत्र के आंकड़े इसमें शामिल ही नहीं किए जाते हैं. जबकि सबसे असंगठित क्षेत्र ही प्रभावित हुआ है. जिस दिन आप असंगठित क्षेत्र के आंकड़े उसमें जोड़ लेंगे तो पता लग जाएगा कि विकास दर शून्य या एक प्रतिशत है.


पांच तिमाही में अर्थव्यवस्था की विकास दर 8 फीसदी से गिरकर 6 फीसदी पर पहुंच गई है. प्रो. अरुण कुमार का कहना है कि वास्तव में अर्थव्यवस्था की विकास दर '5 फीसदी से भी कम है क्योंकि जो तिमाही विकास दर के आंकड़े हैं, वो संगठित और कॉर्पोरेट सेक्टर पर आधारित होते हैं. असंगठित क्षेत्र को इसमें पूरी तरह शामिल नहीं किया जाता और ये मान लिया जाता है कि असंगठित क्षेत्र भी उसी रफ़्तार से बढ़ रहा है, जिस रफ़्तार से संगठित क्षेत्र.' जबकि चारों तरफ से खबरें हैं कि कपड़ा उद्योग, कांच उद्योग, चमड़ा उद्योग में बड़ी संख्या में कारखाने बंद हो गए हैं. इसका मतलब है कि यह आंकलन गलत है कि असंगठित क्षेत्र, संगठित क्षेत्र की ही रफ्तार से काम कर रहा है.


असंगठित क्षेत्र में कुल वर्कफोर्स का 94 फीसदी लोग काम करते हैं और 45 प्रतिशत उत्पादन होता है. अगर जहां 94 प्रतिशत लोग काम करते हैं, वहां उत्पादन और रोज़गार कम हो रहे हैं तो वहां मांग घट जाती है. नोटबंदी और जीएसटी के बाद असंगठित क्षेत्र एक तरह से ढह गया है.


पहले सरकार ने नोटबंदी लागू की, जिसने छोटे उद्योगों और असंगठित क्षेत्र के उद्यमों की कमर तोड़ दी. फिर आठ महीने बाद जीएसटी लागू हो गई. उसके बाद बैंकों के एनपीए का असर पड़ा. इन सबके बाद ग़ैरबैंकिंग वित्तीय कंपनियों के संकट ने असर डाला. तीन साल में अर्थव्यवस्था को बड़े-बड़े झटके लगे, जिनकी वजह से बेरोजगारी बढ़ गई.

असंगठित क्षेत्र में इतनी नौ​करियां जाने से उत्पादनों की मांग घट गई और संगठित क्षेत्र भी संकट में आ गया. जब लोग उपभोग नहीं करेंगे तो कंपनियां उत्पादन करके भी क्या करेंगी? मांग घटने के साथ उपभोग की क्षमता घटी, जब उपभोग की क्षमता कम हुई तो निवेश कम हो गया.


2012-13 में निवेश की दर 37 फ़ीसदी के दर से बढ़ रही थी. यह काफी अच्छा स्तर था. आज यह 30 फ़ीसदी से भी कम हो गई है. जब तक निवेश नहीं बढ़ता है, विकास दर नहीं बढ़ती है.


सरकार ने जीएसटी लागू की तो क़रीब 1.2 करोड़ लोगों ने जीएसटी के लिए रजिस्ट्रेशन करवाया, लेकिन सिर्फ़ 70 लाख लोग जीएसटी फ़ाइल करते हैं. जब से जीएसटी लागू हुआ है तब से 1400 से अधिक बदलाव किए गए हैं. इससे उलझन बहुत बढ़ी है. लोग जीएसटी फाइल नहीं कर पा रहे हैं.


तो कुल मिलाकर नोटबंदी और जीएसटी जैसे फ़ैसलों से अर्थव्यवस्था को जबरदस्त धक्का लगा है.

bottom of page