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'साइकल से इश्क़ नहीं आसां'


सूख चुके हलक पर पानी की सबसे मीठी धारा उरती है और बैग से निकाल बची-खुची ख़ुराक़ को आप गटक लेते हैं। आप फिर पैडल पर पैर रखते हैं, मानो कायनात से अपने हिस्से की कुछ ऊर्जा एडवांस मांग ले रहे हों अपनी ​इस जिजिविशा के लिए। शुरूआती तेज़ी के बाद धीरे धीरे पैडल फिर भारी होने लगते हैं लेकिन आस पास बिखरे मंज़िल के निशान आपको रूकने नहीं देते, ये आपको उस खुशी से भर देते हैं कि आपका हौसला फिर उफ़ान मारने लगता है।

- कुणाल तेवारी

Mountain Rider



ये इश्क़ नहीं आसां बस इतना समझ लीजे एक आग का दरिया है और डूब के जाना है

हाँ तो गुरु! ये कोई स्कूटी,मोटरसाइकल या तुम्हारी कार नहीं कि फट्ट बैठे और सेल्फ़ मारके घर्रर्रर्र से चल दिए। ये साइकल है उस्ताद यहाँ सारा खेल कई तरह के संतुलन का है। ना सिर्फ़ भौतिकी के सामान्य विज्ञान के संतुलन का, जिसकी बदौलत आप दो पहियों पर सरपट भागते हैं, जबकि उससे कई अधिक आपके दिमाग़ और शरीर की ताक़त के संतुलन का है। पहाड़ों में पचास से साठ किलोमीटर अकेले साइकल चलाने के मायने हैं, ज़बरदस्त स्टेमिना और सफ़र में आने वाली किसी भी दिक्क़त से निपट लेने का हौसला। पचास से साठ किलोमीटर बिना किसी बैकअप के साइकलिंग करने के लिए ज़रूरी है आपके बस्ते में होनी चाहिये ये कुछ चीज़ें— एक टूल किट, एक पंचर किट, एक बरसाती, मोबाइल आदि को बारिश से बचाने को पॉलिथीन, एक इलेक्ट्रॉल का पैकेट, दो—एक चॉकलेट, और सफ़र के लिए नास्ते में भुने हुए चने और और गुड़, क्योंकि ये सस्ता, सबसे पौस्टिक और ताक़तवर भोजन है। और हाँ अपने साथ एक भरी हुई पानी की बोतल! बस सारा सामान रख, बस्ता बंद कर पिट्ठू में बांध निकल चलो अपने सफ़र पर। जब आप पैडल मारते हो तो एक-एक पैडल आपके अंदर एक आनंद और उत्साह का निर्माण करता है फिर सफ़र में दिखने वाले नज़ारे आपका सफ़र पूरा करने में उत्प्रेरक का काम करते हैं। जो लोग महज़ 5 -6 km साइकलिंग कर, फोटो खिंचा कर सोचते हैं कि उन्होंने साइकलिंग के परम आनंद को पा लिया तो मेरी नज़र में वो सरासर ग़लत हैं। साइकिलिंग का परम आनन्द तब आता है जब चालीस से पचास किलोमीटर साइकिलिंग करने के बाद आपका स्टेमिना और शरीर पूरी तरह जवाब देदे, आप थक कर बेहद चूर हो जाएं। अब आपकी मंजिल बस 10 km दूर हो। मुह की लार सफ़ेद झाग में बदलने लगी हो और चारों तरफ़ किसी सहारे की तलाश में आपकी नज़रें कुछ भी ठान लेना चाहती हों। लेकिन कोई भी ऐसी चीज़ ना दिखे और कोई बैकअप आपके पास ना हो। दिमाग़ एक हिस्सा थक कर चूर हो चुके बदन पर तरस खा कर धीरे—धीरे मंजिल की आस छोड़ देना चाहता हो। लेकिन कोई ख़्याल फिर कौंधे कहीं से दौड़ता हुआ। एक करंट दौड़ जाए शरीर में। एक—एक रंध्र को झकझोरता हुआ। ''..नहीं हारना..! मुझे पूरा करना है!'' सूख चुके हलक पर पानी की सबसे मीठी धारा उरती है और बैग से निकाल बची—खुची ख़ुराक़ को आप गटक लेते हैं। आप फिर पैडल पर पैर रखते हैं, मानो कायनात से अपने हिस्से की कुछ ऊर्जा एडवांस मांग ले रहे हों अपनी ​इस जिजिविशा के लिए। शुरूआती तेज़ी के बाद धीरे धीरे पैडल फिर भारी होने लगते हैं लेकिन आस पास बिखरे मंज़िल के निशान आपको रूकने नहीं देते, ये आपको उस खुशी से भर देते हैं कि आपका हौसला फिर उफ़ान मारने लगता है। हांफती सांसेें आपको चूर कर देने को आतुर हैं लेकिन लेकिन मंज़िल का उत्साह आपके शरीर की पूरी ताक़त को झोंक देने को बेक़रार! और फिर आपकी साइकल के चक्के जब आपकी तय की हुई मंजिल में दाख़िल होते हैं तो वह लम्हा ऑलंपिक में गोल्ड मेडल के रिबन को तोड़ते किसी धावक की तरह ही रोमांच का चरम होता है, चाहे आपको इसके लिए किसी मेडल से नवाजा नहीं जाना. लेकिन आप ख़ुद को ही ख़ुद के भीतर एक वर्चुअल मेडल देते हैं और आपका रोम रोम तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठता है.



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