फेंक जहां तक भाला जाए!
कुछ लोग राणा और चोपड़ा की जाति गिनाकर यह दिखाना चाह रहे हैं कि चोपड़ा राणा का वंशज नहीं हो सकता। कुछ लोग राणा और अकबर को मुर्गा समझकर उन्हें फिर से लड़ाकर अपना एजेंडा सेट कर रहे हैं। जाहिर है कि इन लोगों की सोच बहुत छोटी है। कवि वाहिद अली की सोच बहुत बड़ी है।

'तू भी है राणा का वंशज फेंक जहां तक भाला जाए'
जरा सोचिए, ये कविता वाहिद अली ने न लिखी होती तो क्या होता! मान लीजिए यह कविता नीरज चोपड़ा के सोना जीतने के बाद लिखी गयी होती तो क्या होता! यह कविता एक मुसलमान ने लिखी है और यह इस ओलंपिक के कई साल पहले लिखी गयी थी। इसलिए हमारे कुंठित विद्वानों की कुत्सित कल्पना को खुलकर चौकड़ी भरने के लिए पर्याप्त जगह नहीं मिल रही है। बेचारे छाती कूट तो रहे हैं मगर जरा रुक रुक कर। अगर ऐसा न होता तो ये विद्वान अपनी छाती को पीट-पीटकर उसका नगाड़ा बना चुके होते। हमने तो वाहिद अली का नाम इस कविता से जाना। यह कविता मौजूँ इसलिए हो गयी क्योंकि नीरज चोपड़ा ने भाला फेंक में ओलंपिक स्वर्ण जीता।
कुछ लोग राणा और चोपड़ा की जाति गिनाकर यह दिखाना चाह रहे हैं कि चोपड़ा राणा का वंशज नहीं हो सकता। कुछ लोग राणा और अकबर को मुर्गा समझकर उन्हें फिर से लड़ाकर अपना एजेंडा सेट कर रहे हैं। जाहिर है कि इन लोगों की सोच बहुत छोटी है। कवि वाहिद अली की सोच बहुत बड़ी है।
जिनकी सोच छोटी है वो वाहिद अली की इस कल्पना को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं कि उन्होंने सभी हिन्दुस्तानियों को राणा (प्रताप) का वंशज माना है। मैंने यह पूरी कविता देखी है। इसमें किसी अन्य को छोटा नहीं दिखाया गया है। यह वीर रस की सामान्य कविता है जो एक अप्रत्याशित घटनाक्रम से प्रांसगिक हो उठी।
हमारे कुंठित विद्वान चाहे जितना पसीना बहा लें, भारतीय इतिहास में जब भी भाले का जिक्र होगा तो लोगों को राणा का भाला याद आएगा। हो सकता है रोम के किसी राजा के पास दुनिया का सबसे तगड़ा घोड़ा रहा होगा लेकिन हमारे लिए घोड़ों का सिरमौर चेतक ही रहेगा।
जिस तरह अकबर अपने सर्व धर्म समभाव के लिए अमर रहेंगे उसी तरह राणा अपने स्वाभिमान और स्वाधीनता के लिए। निस्संदेह अकबार एक महान राजा थे। लेकिन क्या विश्व इतिहास में महानता पर राजाओं का आधिपत्य रहा है। नहीं। विश्व इतिहास में अकबर जैसे शक्ति और वैभव वाले कम से कम चार दर्जन राजा हुए होंगे। लेकिन अपनी स्वतंत्रता के लिए हर दुख, हर कष्ट सहकर आजीवन लड़ने वाले इससे कम भले हुए हों, ज्यादा नहीं हुए होंगे। यह रेयर प्रजाति है। अपनी इस खूबी के कारण ही स्पार्टकस हो, चे ग्वेरा हो, आजाद, बिस्मिल, भगत सिंह हों या राणा ये सभी विश्व इतिहास में हारकर भी अमर रहेंगे।
खुद अकबर जानता था कि राणा क्या चीज है। जिस अकबर के आगे हिन्दुस्तान के ज्यादातर राजा सिर झुकाते थे उसके आगे गरीबी-गुर्बत में घिरा राणा संघर्ष करता रहा। आजादी और स्वाभिमान की कीमत कोई जेबी विद्वान नहीं समझ सकता। उसे समझने के लिए अकबर बादशाह या कवि वाहिद अली जैसा फर्राख दिल होना पड़ेगा। कहते हैं, महाकवि दुरसा आढ़ा ने राणा की मौत के बाद लाहौर दरबार में अकबर के सामने उनकी प्रशंसा में स्वतःस्फूर्त कवित्त पढ़ा।
दुरसा आढ़ा की कविता में राणा को महान बताया गया। कहते हैं, दुरसा आढ़ा की कविता के सुनकर अकबर की आँख में आँसू आ गये। अकबर ने दुरसा को उनकी कविता के लिए इनाम भी दिया। इन्हीं गुणों के चलते अकबर महान कहलाया क्योंकि वह एक राजा की तरह मेवाड़ को अपने अधीन करना चाहता था लेकिन एक मनुष्य के तौर पर जानता था कि राणा जैसा मनुष्य विरले पैदा होता है।
इतिहासकार रीमा हूजा के अनुसार अकबर मेवाड़ के लड़ाकों की बहादुरी से इतना प्रभावित था कि उसने अपने आगरा के किले के बाहर अकबर के खिलाफ लड़ने वाले मेवाड़ के वीरों जयमल और पत्ता की मूर्ति लगवा रखी थी। अकबर महान था क्योंकि वह अपने धर्म, नस्ल और जाति से ऊपर उठकर वीरता और मनुष्यता का सम्मान करता था। यहाँ दुरसा आढ़ा की बहादुरी का भी जिक्र जरूरी है। आज भी जो कवि जिस गैंग का मेंबर होता है उसी की ढपली बजाकर लाल सलाम या जय श्री राम गाता है। दुरसा आढ़ा में अतुलनीय साहस था कि उसने अकबर के दरबार में राणा की जय जय का गीत गाया।
क्या ही अद्भुत प्रसंग है, जिसमें हारने वाला, जीतने वाला और लिखने वाला तीनों ने अपने-अपने तरीके से महानता को वरण किया। हम राणा, अकबर और दुरसा आढ़ा तीनों के वंशज हैं। एक राजपूत था, एक मुगल था और एक चारण था, तो क्या, तीनों हमारे पूर्वज थे। कहना न होगा, जो दो गुट अकबर और राणा को साम्प्रदायिक चश्मे से देखते-दिखाते हैं वही दोनों गुट देश के लिए नासूर बने हुए हैं। इसलिए, किसी की छाती चाहे जितनी भी फुँके, हम तो वाहिद अली की आवाज में आवाज मिलाकर कहेंगे,
तू भी है राणा का वंशज फेंक जहां तक भाला जाए
तस्वीर - एनडीटीवी खबर से साभार