कोरोना काल में धर्म पुरूषों का संकट
Updated: May 8, 2020
कोरोना ने जब हर तरफ़ संकट पैदा कर दिया है ऐसे में धार्मिक संस्थाएं और इनसे जुड़े लोग भी इससे अछूते नहीं हैं. उत्तर भारत में चर्चों और पादरियों के क्या हाल हैं इसकी पड़ताल करती रिपोर्ट.
- संजय रावत और अंकित तिवारी

कोरोना ने जब हर तरफ़ संकट पैदा कर दिया है ऐसे में चर्च के पादरी भी इससे अछुते नहीं हैं. लॉकडाउन के चलते उत्तर भारत के प्रोटेस्टेंट चर्चों में पादरियों पर रोज़ी रोटी का संकट गहरा गया है. हालांकि चर्च ऑफ नॉर्द इंडिया के ईस्टर्स की संस्थागत् तन्ख़्वाह को पिछले दो साल से अधिक समय से संस्था ने बंद कर दिया था और आदेश हुए थे कि पादरी अपनी तन्ख़्वाहों का बंदोबस्त ख़ुद चर्च को मिलने वाले चढ़ावे, स्कूलों के प्रबंधन, ट्रस्ट की आय आदि से करें. लेकिन लॉकडाउन के दौरान सारी गतिविधियों और आवाजाही के बाधित होने का असर चर्चों को होने वाली आय पर भी पड़ा है ऐसे में पादरियों और चर्च के अन्य स्टाफ़ के सामने उनकी आजीविका का संकट गहरा गया है. ऐसे तक़रीबन 70 पादरी हैं जो इस समस्या से घिरे हैं. यह पादरी उत्तर भारत के अलग अलग शहरों में मौजूद चर्चों में तकरीबन पिछले 35 सालों में अलग अलग समयावधि से सेवाएं दे रहे हैं. पादरियों ने बताया कि आम तौर पर इनकी तन्ख़्वाह 12 हज़ार से लेकर 20 हज़ार तक होती है.
इस रिपोर्ट के सिलसिले में इलाहाबाद, लखनऊ, गौंडा, देवरिया, मुजफ्फरनगर, झांसी, फूलपुर, बस्ती, मिर्जापुर और वाराणसी के चर्चों के पादरियों से बात की गई है. वाराणसी के पादरी आदित्य कुमार का कहना था, ''हमें पिछले 28 माह से वेतन नहीं मिला है. हालात पहले ही बहुत बुरी थे अब लॉक डाउन में और भी बुरे हो गए हैं. जब भी हम वेतन मांगने की गुहार लगाते है तो सस्पेंड कर देने और अनुचित आरोपों का भय दिखाया जाता है.'' आदित्य आगे कहते हैं, ''हमें भी अब संस्था के साथ काम नहीं. हमने कहा है कि हमारे वेतन और फंड का हिसाब कर दिया जाए. लेकिन कोई सुनवाई नहीं होती.'' उधर झांसी के पादरी के. सोलोमन कहते हैं, ''मुझे पता चला है कि हमारे बैंक अकाउंट किसी कारण से सीज़ कर दिए गए हैं. इसलिए हमें वेतन नहीं मिल पा रहा.'' सोलोमन को उम्मीद है कि अगर अभी नहीं मिल पा रहा तो आगे इकट्ठा मिलेगा. हम धार्मिक लोग हैं किसी से लड़ने नहीं जाएंगे. सब ईश्वर के भरोसे है. लेकिन अनियमितता तो इतनी है कि 2013 से हमने अपनी पासबुक तक अपडेट नहीं कराई.'' इलाहाबाद के पादरी विलियम कहते हैं कि वेतन रोके जाने का मामला इतना आसान नहीं है. वे बताते हैं, ''हम वेतनभोगी पादरी हैं लेकिन वेतन दिया नहीं जा रहा. बहाना भी बनाया जा रहा है कि कुछ लोगों ने सीएनआई के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की हुई है. इसलिए वेतन नहीं दिया जा रहा लेकिन लिखित में कुछ भी नहीं दिया गया है.'' वह आरोप लगाते हुए कहते हैं, ''जब चर्च में नियुक्तियां संस्थान द्वारा की गई हैं तो वेतन भी संस्थान द्वारा दिया जाना चाहिए. वेतन ना दिया जाना दरअसल बड़े घोटाले का एक छोटा हिस्सा है.'' वह आगे जोड़ते हैं, ''हमें तक़लीफ़ इस बात की भी है कि जब हम धार्मिक संस्थान से पारिवारिक रूप से सेवाभाव के साथ जुड़े हैं, तो बावजूद इसके मुश्क़िल वक़्त में हमारा हाल चाल तक नहीं पूछा गया.'' वह आरोप लगाते हैं कि संस्था ने अब तक साल 2000 से 2014 तक का हमारा PF भी जमा नहीं किया है. हालांकि पूछने पर कहा जाता है कि दे दिया जाएगा. हालांकि कुछ पादरियों कहते हैं कि मुश्किल दौर में यह दिक़्कत आ रही है ''लेकिन जब परेशानियां दूर हो जाएंगी तो वेतन मिलने लगेगा.'' झांसी के एक पादरी आयुष हैरिसन कहते हैं, ''इस पर ज्यादा बेहतर इलाहाबाद या लखनऊ के अधिकारी ही बता पाएंगे.''
इधर प्रयागराज इलाहाबाद के पादरी बेबस्टर जेम्स कहते हैं, ''पिछले वेतन की तो बात ही छोड़िए, ये अब कह रहे हैं कि अपना और अन्य कर्मचारियों का वेतन भी आप चर्च के चढ़ावे से निकालें. पहले चर्च की आय के श्रोतों से 60 प्रतिशत से वेतन दिया जाता था. जबकि 40 प्रतिशत संस्था को भेजा जाता था. लेकिन अब संस्था यह 60 प्रतिशत भी नहीं दे रह. ऐसा ही इन्होंने अन्य फंड के मामले में भी किया है. कुछ ख़ास लोगों को दिया गया है बांकी हड़प लिया गया है.'' बेबस्टर जेम्स आरोप लगाते हैं यहां बड़ा घोटाला हो रहा है और आम पादरियों को प्रताड़ित किया जा रहा है. बेबस्टर जेम्स ने बताया कि सीएनआई के सचिव प्रवीण मैसी ने एक पत्र जारी कर चर्च की आय से ही वेतन निकालने की बात कही है. हालांकि सचिव प्रवीण मैसी कहते हैं कि समस्या कुछ और है. वह बताते हैं, ''लखनऊ डाइसेस का तरीका है कि चर्च की आय में से पादरी अपनी तनख़्वाह निकल लेंगे. जिसे कुल असेसमेंट से घटा लिया जाएगा. लेकिन कुछ समय से यह क्रम गड़बड़ा गया है. शहरी इलाक़ों के चर्च के पादरी तो अपनी तनख़्वाह निकाल पाते हैं क्योंकि उन चर्चों की आय अधिक है लेकिन ग्रामीण इलाक़ों में यह परेशानी पैदा हुई है क्योंकि वहां आय कम है.'' हालांकि प्रवीण मैसी कहते हैं कि यह दिक़्कत 70 पादरियों की नहीं जबकि 55 पादरियों की है. वह आश्वासन देते हैं कि वह कोशिश कर रहे हैं कि सभी पादरियों को उनका पैसा मिल जाएगा.