top of page

महामारी का आपात्-काल सबसे बुरा होता है!

महामारी का आपात्-काल सबसे बुरा होता है. अधम कोटि का. कोविड-19 का संक्रामक विषाणु जाने के लिए नहीं आया, यह रहेगा. इस विषाणु को हमें स्वीकृति अन्ततः देनी ही होगी. यह अब हमारे कीटाणु-समाज का हिस्सा बन चुका है. समाज से महामारी जा सकती है, विषाणु नहीं.

- डॉ. स्कन्द शुक्ल


जनता आपात्-कालों से परिचित न हो, ऐसा नहीं है। जनता ने ढेरों आपात्-काल देखे होते हैं , इन-सब की विभीषिका अलग-अलग स्तर की होती है। राजनीतिक आपात्-काल इनमें सबसे साधारण माने जाते हैं क्योंकि ये मनुष्य-निर्मित और स्थिति व वृद्धि में 'ठोस' माने जाते हैं। राजनीति में भरपूर निगोशियेशन चलती है , लोग स्वयं को सुरक्षित रखने के लिए निगोशियेट करते हैं।

अगले निम्नतर स्तर के आपात्-काल पर्यावरणीय होते हैं। इनमें भूकम्प आते हैं , सुनामी और चक्रवात भी। बादल फटना और आगज़नी भी। ये सभी दुर्घटनाएँ विभीषक तो होती हैं , किन्तु इनके आने की तरह इनका जाना भी तयशुदा रहता है। भूकम्प साल-भर तक नहीं आता रहता , न साल-भर रोज़ बाढ़ आया करती है। चक्रवात व बादल फटने के कारण हुई जान-माल की हानि भी लोगों को उबरने का अवसर देती है। इन आपदाओं के आने पर ही उपाय करता मनुष्य स्वयं को दिलासा देकर शान्त करता है कि ये अन्ततः चले ही जाएँगे।

महामारी का आपात्-काल सबसे बुरा होता है। अधम कोटि का। कोविड-19 का संक्रामक विषाणु जाने के लिए नहीं आया , यह रहेगा। इस विषाणु को हमें स्वीकृति अन्ततः देनी ही होगी। यह अब हमारे कीटाणु-समाज का हिस्सा बन चुका है। समाज से महामारी जा सकती है, विषाणु नहीं। पैंडेमिक दबेगी, हम इसे अपने सामाजिक और वैज्ञानिक उपायों से दबा ले जाएँगे। लोग सामाजिक-भौतिक दूरियाँ बनाकर मिलेंगे, टीका भी देर -सवेर अन्ततः बन ही जाएगा। किन्तु जब-तब सार्स-सीओवी 2 के मामले जहाँ-तहाँ सुनायी देते रहेंगे, जैसे ही लोग अपने बर्ताव में कोई चूक करेंगे।

राजनीतिक व पर्यावरणीय आपात्-कालों के बाद महामारियाँ आएँ-न-आएँ --- महामारी के आपात्-काल के कारण आर्थिक-सामाजिक-राजनीतिक दुःस्थितियाँ न बनें --- ऐसा कहाँ होता है ! महामारी के कारण अर्थनीतियाँ बदलती हैं, समाजनीतियाँ व राजनीतियाँ भी।

महामारियों से सन्धि कर पाना सम्भव नहीं। उनसे या तो जीतना होता है अथवा हारना। वे मानवता को अनिर्णीत निष्कर्षों के साथ नहीं छोड़तीं। #skandshukla22

bottom of page