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देशभक्ति का प्रपंचतंत्र

देशभक्ति के इस मॉडर्न शो में छात्रों और नौजवानों की भी एक बड़ी संख्या है इनकी भी अधिकांश संख्या की यदि जांच करें तो क्या यह अपने माता-पिता परिवार और पड़ोस के लिए मोहल्ले के लिए कोई अच्छा काम करते हैं? यदि वह पड़ोस और मोहल्ले के लिए अच्छे हैं तभी हम यह मान सकते हैं कि वह भविष्य में देश भक्त बन सकते हैं. एक और नए तरीके से देशभक्ति का विमर्श सामने आ रही है, वह है भारतीय सेना की तरफ़दारी व सराहना करना. परंतु इस शोऑफ में सबसे बड़ा झोल यह है कि यह काम वह लोग कर रहे हैं, जिनका पिछले तीन पीढ़ी से सेना से कोई लेना देना नहीं है. उनकी अगली पीढ़ी से भी कोई सेना में जाने की तैयारी नहीं कर रहा.

-संजीव घिल्डियाल



राष्ट्रवाद या देशप्रेम एक ऐसा विमर्श है जो आजकल सार्वजनिक चर्चा में है. केंद्र में सरकार चला रही भाजपा के नेता और कार्यकर्ता ख़ुद को सर्वाधिक राष्ट्रभक्त बताने में हमेशा आगे रहते हैं. सबसे पहले यहां एक बात स्पष्ट कर दें कि राष्ट्र की पहचान जहां उसकी सीमाओं से होती है तो दूसरा महत्वपूर्ण तत्व उन सीमाओं के भीतर रहने वाले नागरिकों से बनता है. ख़ासकर भारतीय संदर्भ में उन नागरिकों की एक पहचान भारतीय है तो दूसरी पहचान भी हो सकती है, जो उनकी बोली रहन-सहन खान-पान या संस्कृति से होती है, जैसे मलयालई, तमिल, बंगाली, कश्मीरी, पंजाबी, मराठी, उत्तराखंडी आदि.


क्या भारतीय पहचान और दूसरी पहचान में कोई अंतर्विरोध है? कोई टकराहट है? यदि ऐसा है, तो उसका समाधान संघवाद है. सच्चा देश प्रेम क्या है? मेरे आसपास रहने वालों के हित और मेरे कुछ हित इकट्ठे हैं. एक जैसे हैं. उन हितों की रक्षा देश प्रेम है. इतिहास में इसी भावना से प्रेरित होकर महापुरुषों ने इसे समझा और अलग-अलग तरह से ब्रिटिश साम्राज्यवाद से संघर्ष किया, क्योंकि ब्रिटिश साम्राज्यवाद हमारे सामूहिक हितों के ख़िलाफ़ काम कर रहा था. आज जिस राष्ट्रवाद की चर्चा हो रही है, हम देखें कि सबसे पहले वह हमारे सामने कैसे आता है?


क्या उसमें बलिदानी तत्व है? ज्यादातर वहां मुंह जबानी जमा खर्च से आगे नहीं बढ़ पाता है. 'वंदे मातरम्' बोलकर, 'भारत माता की जय'! बोलकर, कुछ लोग इसे व्यक्त करते हैं. कभी-कभी तिरंगा लहरा कर यात्राएं निकालकर संस्थाएं या व्यक्ति इसको व्यक्त करते हैं. पाकिस्तान को चार गाली देना, उससे घृणा करना उसका इजहार करना भी लोग राष्ट्रभक्ति का परिचय मान लेते हैं. हमारा मानना है कि उपरोक्त व्यवहार दिखावटी है क्योंकि उक्त व्यवहार करने वाले लोग देश के लिए कोई बलिदान नहीं करते हैं.


देशभक्ति का प्रदर्शन करने वाले ज्यादातर ठेकेदार हैं, व्यापारी हैं या नए-नए राजनीति में आए नेता हैं. उपरोक्त समुदायों के अधिकतर लोगों की बात हम करेंगे जबकि अपवाद हर जगह होते हैं. सबसे पहले बात करें ठेकेदारों की. आजकल यह सबसे ज्यादा राजनीतिक लोगों के नज़दीक रहते हैं. उनके कार्यकर्ताओं के तौर पर काम करते हैं, ताकि सड़क नाली बनाने का ठेका मिले. इनका ज्यादातर निर्माण त्रुटिपूर्ण है. भ्रष्टाचार की एक नदी वहां बहती रहती है. व्यापारी वर्ग दोहरे खाते रखता है लाख जतन कर के वह आयकर सेवा कर जीएसटी बचाने के लिए तरह-तरह के छल प्रपंच करता है. राजनेता तो भ्रष्टाचार के स्रोत हैं उनका पहला कदम चुनाव लड़ना ही काले धन से संभव हो पाता है.


देशभक्ति के इस मॉडर्न शो में छात्रों और नौजवानों की भी एक बड़ी संख्या है इनकी भी अधिकांश संख्या की यदि जांच करें तो क्या यह अपने माता-पिता परिवार और पड़ोस के लिए मोहल्ले के लिए कोई अच्छा काम करते हैं? यदि वह पड़ोस और मोहल्ले के लिए अच्छे हैं तभी हम यह मान सकते हैं कि वह भविष्य में देश भक्त बन सकते हैं. एक और नए तरीके से देशभक्ति का विमर्श सामने आ रही है, वह है भारतीय सेना की तरफ़दारी व सराहना करना. परंतु इस शोऑफ में सबसे बड़ा झोल यह है कि यह काम वह लोग कर रहे हैं, जिनका पिछले तीन पीढ़ी से सेना से कोई लेना देना नहीं है. उनकी अगली पीढ़ी से भी कोई सेना में जाने की तैयारी नहीं कर रहा.


मात्र जुबानी जमा खर्च का राष्ट्रवाद आजकल उफ़ान पर है. आज जनता ने जिन राजनेताओं को देश की महत्वपूर्ण पदों की जिम्मेदारी दे रखी है वह हमारे आर्थिक और सामरिक हितों की रक्षा कर रहे हैं यह संशयपूर्ण है. उनके निर्णयों को यदि आप संदेह का विषय बनाएं और जांच पड़ताल करें, तो फिर आपके सामने 'भारत माता की जय' या 'वंदे मातरम्' कहने वालों की सच्चाई सामने आ सकती है.


इस दिशा में आगे बढ़ने से पहले हमें एक बात जान लेनी चाहिए कि भारतीय पूंजीवाद एक भ्रष्ट पूंजीवाद है. जो लोग एंटरप्रेन्योर हैं, किसी नए विचार और टेक्नोलॉजी से व्यापार प्रारंभ कर रहे हैं, उनकी इज्ज़त की जानी चाहिए. लेकिन बजाय इसके भारत में अधिकांशतः बड़े उद्योगपतियों ने भारतीय राज्य के साथ सांठगांठ करके प्राकृतिक संपदा को हथिया लिया है. आप को गंभीरता से सोचना होगा कि चाहे वह सरकार कांग्रेस पार्टी की हो या भाजपा की चंद पूंजीपतियों के लिए उनके दरवाजे हमेशा खुले रहते हैं.


यही वजह है कि भारत की माइंस बिना उचित दाम दिए 50-50 सालों के लिए राजनेताओं के क़रीबी पूजीपतियों को मिल जाती हैं. क्या यह बिना काले धन का लेनदेन करे संभव हो सकता है? भारत सरकार एचएएल जैसी सरकारी संस्था के होते हुए राफेल की मेंटेनेंस का सौदा बिना अनुभव वाली अंबानी की डिफेंस कंपनी को दे देती है. ध्यान रहे की एचएएल ने तेजस जैसा जहाज बनाया है, जिसकी आज सर्वत्र तारीफ़ हो रही है.


कई सरकार समर्थक लोगों को इन सवालों से भारी परेशानी हो सकती है परंतु अपना दिमाग गिरवी रखने वाले कभी देश और समाज के हित में नहीं हो सकते. आपके मन में सवाल उठने चाहिए और उनकी पड़ताल करनी चाहिए. यह सवाल भी आपके मन में उठना चाहिए कि सार्वजनिक शिक्षा व सार्वजनिक स्वास्थ्य पर ख़र्च सरकार लगातार क्यों कम कर रही है और दूसरी तरफ बड़े पूंजीपतियों को दिया गया ऋण वसूलने में इस सरकार की कोई दिलचस्पी क्यों नहीं है? इसके उलट केंद्र सरकार राष्ट्रीय कृत बैंकों को बजट से धन आवंटित कर रही है, जिससे वह एनपीए से हो रहे घाटे को पूरा करे.


पिछले 5 साल में तकरीबन 5 लाख करोड़ रुपए से ज़्यादा का एनपीए माफ़ किया जा चुका है. अध्ययन का विषय है कि क्या पिछले 5 साल में सरकार ने सार्वजनिक स्वास्थ्य और शिक्षा पर 5 लाख करोड़ खर्च किया? उपरोक्त तथ्यों को कसौटी पर कसकर ही बोला जा सकता है कि कौन देशभक्त है? जनता और सेना दोनों को नुकसान देकर अपने मित्र पूंजीपतियों का धन-संपत्ति बढ़ाना कौन सा देश प्रेम है?

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