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मुसीबत का विज्ञान

विज्ञान ने जहां मानवजात के रोज़मर्रा की जिंदगी में कई सारी सहूलियतें दी वहीं इस विज्ञान की वजह से कई सारी मुसीबतें भी यदा-कदा खड़ी हो जाती हैं.

- केशव भट्ट



बचपन में मास्टरजी ने प्यार के साथ ही पतली सिकड़ी से मार-मार के विज्ञान समझाया. जो समझ में ही नहीं आया. इस मामले में बायलॉजी के मास्टरजी 'मर्तोलिया जी' जिन्हें हम 'म्यर तौली' कहा करते थे, बहुत शांत और सरल थे. उनके वक़्त में बरसात में न जाने हमने कितने मेंढकों को ऑपरेशन कर जिंदा करने के चक्कर में शहीद कर दिया था. पानी से लबालब गढ्ढों से दो एक मेंढकों को जेब में डाल स्कूल में जब पहुंचते थे तो प्रार्थना के वक़्त तक जेब में कैद मेंढक दहशत में जेब को ही अपने गर्म सू-सू से गिला कर देते थे.


प्रार्थना ख़त्म होने के बाद उन्हें बाहर निकाल बस्ते के हवाले कर जेब को उल्टा कर निचोड़ लेते थे. कुछेक घंटों में जेब भी सूख जाती थी और बायलॉजी का भी चीर-फाड़ वाला पीरियड आ जाता था. मास्टर जी एक मेंढक को बेहोश करने के बाद टेबल में रख उसे चीरने के बाद उसके अंगों में आलपिन से झंडे लगाकर नाम बताते चले जाते थे और बाद में उसे बड़ी ही सफाई से सिल भी देते थे. कुछ देर बाद वो मेंढक जिंदा हो, टर्र-टर्र कर जान बचा भाग खड़ा होता था.


मास्टर जी फिर हमें ये सब करने को कहते थे. मेंढक को बेहोश करने के बाद चीर-फाड़ कर हम उसके अंगों में आलपिन में झंडे बना नाम लिख आढ़े-तिरछे ठोक कर मास्टरजी को दिखाते थे, तो वो खुश हो जाते थे. इस लैब में हर बार कुछ न कुछ सीखने को मिलते रहता था.


वक़्त भागते रहता है. आज आदमजात गुफा युग से परमाणु-सैटेलाइट से भी आगे जाने के लिए आतुर है. तब के ज़माने में दूर अपनों से बातें करना भी ट्रंक कॉल के ज़रिये संभव हुवा करते था. ग़रीबों के लिए वो ज़माना तार-चिट्ठी का था. धीरे-धीरे विज्ञान ने तरक़्की की तो उसने मानव के हाथ में मोबाइल थमा दिए. तब फ़ोन आने पर भी पैसा कटता था. लंबे चौड़े मोबाइल उस वक़्त में धनाढ्य वर्ग की शान हुआ करते थे.


अपने मोबाइल की नुमाइश करते हुए वो दूसरों को हिक़ारत भाव से देखा करते थे. उस जमाने में शटर खुलने-बंद होने वाले श्याम-स्वेत वाले टीवी लोगों के पास हुवा करते थे. बाद में नब्बे के दशक में विज्ञान ने कुछ तरक्की की तो रंगीन चलचित्र वाले टीवी बाज़ारों में आ गए. हमने भी अपने शटर वाले टीवी की स्क्रीन में प्लास्टिक का एक नीला कवर लगा अपने को संतुष्ट कर लिया. बाज़ार में दुकानों में हम उन रंगीन टीवी के चलचित्रों को हसरत भरी निगाहों से देखा करते थे.


विज्ञान रूका नहीं और कुछ समय बाद मोबाइल, टीवी, सीसी कैमरों समेत दूसरी चीज़ों में क्रांति आ गई. धनाढ्य वर्ग का कहे जाने वाला मोबाइल अब हर किसी के पास हो गया. पहले मोबाइल भी बहुत चोरी हो जाते थे. लेकिन अब विज्ञान की बदौलत ये आराम से वापस मिल जाते हैं.


विज्ञान ने जहां मानवजात के रोज़मर्रा की जिंदगी में कई सारी सहूलियतें दी वहीं इस विज्ञान की वजह से कई सारी मुसीबतें भी यदा-कदा खड़ी हो जाती हैं. अक़्सर लोग फोन में आपस की बातों को रिकार्ड कर जहां-तहां फ़ैलाकर रायता फ़ैलाने से चूक नहीं रहे हैं. बक़ायदा एक साहेबान तो विज्ञान के चमत्कार को नमस्कार करते हुए बता रहे थे कि, वो मोबाइल से हुवी सारी बातों की रिकार्डिंग को अपने जी-मेल में सुरक्षित रखते हैं, क्या पता कभी किसी ने मोबाइल ही नष्ट कर दिया तो उस वक़्त वो उनसे हुई बातों की रिकार्डिंग संजीवनी की तरह जान तो बचा लेगी. उनकी बातें सुन पुराने जमाने के डाकुओं पर बनी फ़िल्में याद आ गई. अमीरों के वहां लूट-पाट कर वो डाकू अपने आपको मसीहा बताते नहीं थकते थे. ये साहिबान भी बक़ायदा अपने रेता-बजरी की चोरी करने को उचित ठहराते हुए बोले कि, वो हफ़्ता तो देते ही रहे हैं. अब इस बीच उन्होंने बिजी होने की वजह से 'तस्करी' का ये पवित्र काम बंद कर दिया तो वो कहां से हफ्ता दें. इस पर उनके गाल लाल हो गए तो बौखलाहट में उन्होंने 'विज्ञान' का सहारा ले हफ़्ते की आपसी बातचीत को दुनिया-जहां में फैला दिया. बबाल मचना था तो मचा ही.


इसी दरम्यां 'विज्ञान' के एक कलमुहे चमत्कार 'सी-सी टीवी कैमरे' ने भी शहर के गर्म माहौल को और गर्मा दिया. जनता के रखवालों ने, 'अय्यार' की सूचना पर जनता को मय में सराबोर कर नर्क में धकेल रहे के 'शक' पर एक शख्स को उसके आशियाने से खींचकर अपने दड़बे में लेने की कोशिश की तो हंगामा बरप गया. उस शख्स के सांथ उसके एक और को दबोच कालकोठरी में डाल दिया गया. दूसरे दिन विज्ञान के चमत्कार से पैदा हुए उस 'सी-सी कैमरे' ने कुछ अलग ही दास्तां बंया कर दी तो शहर में बिना धरती के कांपे, भूचाल आ गया. हर कोई विज्ञान का सहारा लेकर 'सी-सी' की कहानी फ़ैलाने में जुट गया.


बहरहाल! इस विज्ञान के बेहुदे यंत्र की जांच के लिए एक कमेटी बिठा दी गई है और बकायदा कमेटी ने इस यंत्र को ही दोषी ठहराना शुरू कर, 'विज्ञान हटाओ हमें बचाओ' का नारा बुलंद कर दिया है.


तो आइए! पाषाण कालीन सभ्यता में आप सभी का स्वागत है, इस नंगई से तो वो पत्थरों वाला ही ज़माना भला था. जहां वस्त्र विहीन होने के बावजूद इंसान आज के वक्त की तरह निष्ठुर, स्वार्थी, दग़ाबाज़ होने के वजाय थोड़ा सा सभ्य, दयालु तो था.

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