'शेरनी' के बहाने 'बाघिन'
मुझे आज भी वो दिन याद है जब बाघिन अवनी की जान बख्श देने की गुहार लगाने वाला एक छोटा सा प्रदर्शन जंतर-मंतर पर हुआ था। किसी बाघिन की जिंदगी के लिए होने वाला यह प्रदर्शन अनोखा था। लेकिन, हमारे हुक्मरानों के दिल नहीं पसीजे।
- कबीर संजय

साल 2018 के अक्तूबर और नवंबर में देश और दुनिया में तमाम लोग बाघिन अवनी की जान बख्श देने की गुहार लगा रहे थे। लेकिन, दो नवंबर 2018 को ठंडे दिमाग से उसकी हत्या कर दी गई। पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि बाघिन सप्ताह भर से भूखी थी। उसका पेट खाली था। दस-दस महीने के दो बच्चों को पालने-पोषने की जिम्मेदारी उसकी थी।
ज़ाहिर है कि एमेजॉन प्राइम पर आई फिल्म शेरनी देखते हुए बाघिन अवनी का खयाल आना ही था। महाराष्ट्र के यावतमाल, नागपुर व आसपास के जिलों में बचे-खुचे जंगल में अवनी बाघिन रहती थी। पांच साल की इस बाघिन को टी-1 नाम दिया गया था। आरोप था कि बाघिन नरभक्षी हो चुकी है और उसने 13 लोगों की हत्या की है। इन्हीं आरोपों में इसकी तलाश की जा रही थी।
दुनियाभर के वन्यजीव प्रेमी इस बाघिन को जिन्दा पकड़ने और नरभक्षी होने की स्थिति उसे किसी जू में जीने का एक और मौका देने की गुहार लगा रहे थे। लेकिन, जल्लाद इस बात की आशंका प्रगट कर रहे थे कि अवनी के साथ-साथ उसके बाकी दोनों बच्चे भी नरभक्षी हो चुके होंगे।
मुझे आज भी वो दिन याद है जब बाघिन अवनी की जान बख्श देने की गुहार लगाने वाला एक छोटा सा प्रदर्शन जंतर-मंतर पर हुआ था। किसी बाघिन की जिंदगी के लिए होने वाला यह प्रदर्शन अनोखा था। लेकिन, हमारे हुक्मरानों के दिल नहीं पसीजे।
02 नवंबर 2018 को बाघिन अवनी को मार डाला गया। जिस तरह से उसे मारा गया, उस पर तमाम सवाल उठाए गए। कहा गया कि उसे बेहोश करने की कोशिश नहीं की गई। पहले गोली मारकर हत्या कर दी गई, बाद में उसे बेहोशी वाला डाट चुभाया गया। रात के समय जंगल में उसकी हत्या की गई। ऐसा क्यों किया गया।
इसको लेकर भी तमाम आरोप-प्रत्यारोप और कयास लगाए गए। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे ने तो यहां तक आरोप लगाया कि अंबानी के प्रोजेक्ट के लिए बाघिन को मारा गया है। दरअसल, बाघिन की मौजूदगी की वजह से उन्हें अपना प्रोजेक्ट क्लियर कराने में दिक्कत आ रही थी।
सच्चाई क्या थी, हम शायद कभी नहीं जान पाएंगे। क्योंकि, हत्याओं और षड्यंत्रों की ऐसी न जाने कितनी कहानियां किसी भूल-भुलैया में जाकर गुम हो जाती हैं। हम केवल उसके अंदाजे ही लगा सकते हैं।
खैर, एमेजॉन प्राइम पर शेरनी फिल्म देखी। अवनी बाघिन की हत्या की पूरी याद ताजा हो गई। बहुत दिनों बाद हिन्दी में लीक से अलग हटकर कोई संवेदनशील फिल्म देखने को मिली। अच्छा लगा। हालांकि, मैं मानता हूं कि हम इससे बेहतर सिनेमा डिजर्व करते हैं। इस फिल्म को और बेहतर होना चाहिए। पूरी फिल्म में नैरेटिव इंसान का है। एक ईमानदार अधिकारी का है, जो कि महिला है। अपने महिला होने और ईमानदार होने का उसे खामियाजा उठाना पड़ता है।
काश कि जंगल और बाघिन का नैरेटिव प्रधान होता और ईमानदार महिला अधिकारी का नैरेटिव उसका सहयोगी होता। बाकी, फिल्म का नाम बाघिन रखने पर भी खास प्रभाव नहीं पड़ता। शेरनी नाम रखा है तो ऐसे लगता है जैसे कि यह उपमा विद्या बालन के लिए है और बहादुरी वगैरह के लिए यह संबोधन दिया जा रहा है। बाघिन कहा जाता तो लगता कि टाइग्रेस की ही बात कही जा रही है।
पुनश्चः फिल्म अच्छी है। तभी वह जिक्र के काबिल लगी और इतना लिखा। लेकिन, हम इससे बेहतर सिनेमा डिजर्व करते हैं...