तो क्या पुतिन 2036 तक रहेंगे रूस के राष्ट्रपति?
रूस की जनता ने राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को 2036 तक पद पर बनाए रखने के समर्थन और विरोध में वोट दिए। इस जनमत संग्रह के नतीजे बाद में आएंगे, लेकिन सरकारी एजेंसी के सर्वे में पुतिन के सत्ता विस्तार को समर्थन मिल रहा है।
- शादाब हसन ख़ान
रूस में संविधान संशोधन के लिए जनमत संग्रह अभियान बुधवार को पूरा हो गया। यह प्रक्रिया 7 दिन तक चली। कोरोना संकट के कारण पहली बार रूस में किसी वोटिंग में इतना वक्त लगा। हालांकि वोटिंग ऑनलाइन हुई। चुनाव आयोग के अनुसार करीब 65 फीसदी वोटरों ने मतदान किया और कई इलाकों में तो 90 फीसदी तक मतदान देखा गया।
रूस की जनता ने राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को 2036 तक पद पर बनाए रखने के समर्थन और विरोध में वोट दिए। इस जनमत संग्रह के नतीजे बाद में आएंगे, लेकिन सरकारी एजेंसी के सर्वे में पुतिन के सत्ता विस्तार को समर्थन मिल रहा है।
इसके मुताबिक 74% लोगों ने संविधान में संशोधन का समर्थन किया है। वास्तविक नतीजे भी ऐसे ही रहे तो पुतिन मौजूदा कार्यकाल के बाद 6-6 साल के लिए फिर दो बार राष्ट्रपति होंगे। हालांकि वोटिंग के लिए दबाव, मतपत्रों में गड़बड़ी, अधिकार के दुरुपयोग और अवैध प्रचार जैसे अनियमितता के आरोप भी लग रहे हैं। रूस के चुनाव आयोग ने बताया कि 25 प्रतिशत लोग पुतिन को आगे मौका न देने के पक्ष में हैं। कई स्वतंत्र चुनाव निगरानी समूहों और रूस के आलोचकों ने वोटिंग के इन आंकड़ों पर सवाल उठाए हैं।
उनका कार्यकाल 2024 में समाप्त होने वाला है। पुतिन ने कहा कि हम उस देश के लिए मतदान कर रहे हैं, जिसके लिए हम काम करते हैं और जिसे हम अपने बच्चों और पोते-पोतियों को सौंपना चाहते हैं। पुतिन जनवरी में संविधान में संशोधन का प्रस्ताव लाए थे। उसके बाद पुतिन के कहने पर प्रधानमंत्री दिमित्रि मेदवेदेव ने इस्तीफा दे दिया था। पुतिन ने कम राजनीतिक अनुभव वाले मिखाइल मिशुस्टिन को पीएम बनाया। 2008 के राष्ट्रपति चुनाव के दौरान विपक्ष के नेता एलेक्सेई नावालनी मंत्रियों के भ्रष्टाचार के मामले उजागर कर पुतिन को चुनौती दे रहे थे। तब चुनाव आयोग ने नावालनी को एक मामले में दोषी करार देकर उनकी उम्मीदवारी रोक दी थी।
पुतिन 2000 में सत्ता में आए थे। एक निजी सर्वे एजेंसी के मुताबिक अभी पुतिन की लोकप्रियता रेटिंग 60 प्रतिशत है। यह उनके अब तक के कार्यकाल में सबसे कम है, पर पश्चिमी मानकों पर खरी है। चुनाव निगरानी समूह गोलोस ने कहा कि वोटिंग की ऑनलाइन प्रक्रिया संवैधानिक मानकों को पूरा नहीं करती।