सबसे बड़े आर्कटिक अभियान का हिस्सा बनेगा यह भारतीय वैज्ञानिक
अभियान का उद्देश्य आर्कटिक में वायुमंडलीय, भूभौतिकीय, महासागरीय और अन्य सभी संभावित राशियों को मापना, और मौसम प्रणालियों में आ रहे बदलावों का सटीक पूर्वानुमान लगाने में इन जानकारियों का उपयोग करना है.
- Khidki Desk

केरल मूल के युवा वैज्ञानिक विष्णु नंदन, जर्मनी की ओर से आर्कटिक जलवायु अभियान (MOSAIC) के लिए भेजी जा रही मल्टीडाइमेंश्नल ड्रिफ्टिंग आॅब्ज़वेट्री में एकमात्र भारतीय होंगे.
पोलसरस्टर्न नाम का यह अनुसंधान पोत, मध्य आर्कटिक में समुद्री बर्फ की एक बड़ी चादर पर लंगर डाले हुए, इतिहास में पहली बार पूरे साल भर के लिए उत्तरी ध्रुव में रहकर वहां जलवायु और मौसम परिवर्तन की वजहों का अध्ययन करेगा. इसे पर्यावरण के मौजूदा संकट को समझने और उनसे उबरने के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है.
विष्णु नंदन और उनके 300 वैज्ञानिक साथी नवंबर के बाद चार महीनों तक, धूप नहीं देखेंगे. इस अभियान को जर्मनी का अल्फ्रेड वेगेनर इंस्टिट्यूट द्वारा भेजा गया है. इतिहास का सबसे बड़ा आर्कटिक अभियान, MOSAIC, पूरे साल उत्तरी ध्रुव पर इस पैमाने का अध्ययन करने वाला पहला शोध आयोजन होगा. इससे पिछले अध्ययन कम अवधि के रहे हैं, क्योंकि सर्दियों में बर्फ की मोटी चादर के चलते किसी भी पोत की कोई गतिविधि वहां संभव नहीं होती. इसलिए इस शोध पोत ने सर्दियों से पहले ही यह अभियान शुरू कर लिया है और अपना लंगर डाला लिया है.
डॉ नंदन, एक रिमोट सेंसिंग वैज्ञानिक हैं. पोलारस्टर्न में शामिल होने के लिए नवम्बर में ट्रोम्सो के नॉर्वेजियन बंदरगाह से एक रूसी आइसब्रेकर जहाज़ में यात्रा करेंगे.
अभियान का उद्देश्य आर्कटिक में वायुमंडलीय, भूभौतिकीय, महासागरीय और अन्य सभी संभावित राशियों को मापना, और हमारे मौसम प्रणालियों में बदलावों का अधिक सटीक पूर्वानुमान लगाने के लिए इसका उपयोग करना है.
डॉ नंदन ने कनाडा से फोन पर कहा, "एक रिमोट सेंसिंग विशेषज्ञ के रूप में मेरी भूमिका समुद्री बर्फ की सतह पर रडार सेंसर तैनात करने और बर्फ की मोटाई और इसकी विविधताओं को सही ढंग से मापने के लिए है."
विष्णु नंदन ने एससीटी इंजीनियरिंग कॉलेज, तिरुवनंतपुरम से स्नातक की उपाधि प्राप्त की. उन्होंने अपनी आईटी की नौकरी को पृथ्वी के संरक्षण विज्ञान में एमएससी करने के लिए छोड़ दिया.
डॉ नंदन काम पर ध्यान दिया गया जब कैलगरी विश्वविद्यालय में क्रायोस्फीयर क्लाइमेट रिसर्च ग्रुप के हिस्से के रूप में, वे ग्राउंड ब्रेकिंग अध्ययन के प्रमुख लेखक थे, जिसमें पाया गया कि हर साल आर्कटिक के ऊपर बनने वाले मौसमी समुद्री बर्फ के उपग्रह माप गलत होने की संभावना थी.