भूस्खलन की तबाही से बचने के काम आएगी यह नई तकनीक
हर साल भूस्खलनों से होने वाले भारी जान माल के नुक़सान से जूझने वाले हिमालय के रहवासियों के लिए एक बढ़िया ख़बर है. आईआईटी मंडी के वैज्ञानिकों ने एक ऐसी सस्ती तकनीक विकसित की है जिससे भूस्खलनों का पूर्वानुमान लग जाएगा. आमतौर पर स्मार्टफोन में पाए जाने वाले मोशन सेंसर का उपयोग करते हुए, वैज्ञानिकों ने यह कम लागत वाली तकनीक विकसित की है.
- Khidki Desk

अभी ट्रायल के तौर पर इस डिवाइस को हिमाचल प्रदेश में 20 से अधिक उन स्थानों पर लगाया गया है, जहाँ हर साल कई भूस्खलन होते हैं और दर्जनों लोग उसकी चपेट में आते हैं. वैज्ञानिकों का कहना है कि उन्हें उम्मीद है कि इस तक़नीक से हर साल इस प्राकृतिक आपदा से होने वाली मौतों और क्षति को क़ाफ़ी हद तक कम करने में मदद मिलेगी.
एक्सेलेरोमीटर नाम की यह तक़नीक एक प्रकार का मोशन सेंसर है जो वेग में होने वाले बदलाव को मापता है. स्मार्टफ़ोन में, यह वही तकनीक है जिसके चलते आप मैप या कम्पास का इस्तेमाल करते हैं याफिर अपनी स्क्रीन को होरिज़ेंटल या वर्टिकल करता है.
इस डिवाइस की क़ीमत लगभग 20 हज़ार रूपये की होगी. अभी इस क्षेत्र की मौजूदा तकनीकों की तुलना में यह क़ाफ़ी मामूली है.
इस डिवाइस को विकसित करने के लिए आईआईटी मंडी के दो वैज्ञानिकों, सिविल इंजीनियर डॉ. केवी उदय और कंप्यूटर इंजीनियर डॉ. वरूण दत्त के नेतृत्व में काम हो रहा है.
बीबीसी क्लिक्स से बात करते हुए डॉ वरुण दत्त ने कहा, "यह डिवाइस उन सभी भूगर्भीय हलचलों को मापती है जो कि भूस्खलन का कारण हो सकते हैं. अगर ऐसा कुछ हो तो यह ज़ोर से आवाज़ करने लगती है ताकि संबंधित अधिकारी आसपास के इलाक़ों को खाली करा दें या गाड़ियों की आवाजाही रोक दें.''
डॉ उदय का कहना था जिन क्षेत्रों में डिवाइस प्रयोग के तौर पर लगाई गई है वहां से क़ाफ़ी सकारात्मक परिणाम आए हैं. यह लो कॉस्ट डिवाइस पहाड़ी क्षेत्रों के बड़े काम आ सकती है.