कोरोना दौर की यह कैसी उलटबांसी?
क्या समझा जाए. क्या सरकारों ने हमें हमारे हाल पर छोड़ दिया है. जैसा कि कुछ सरकारों के मुखिया कह भी रहे हैं कि हमें कोरोना के साथ ही जीना पड़ेगा. एक दूसरी सरकार के मुखिया कह रहे हैं कि कोरोना संक्रमण और कुछ नहीं बस सर्दी-जुकाम का ही एक रूप है.
- कबीर संजय

जब देश में कोरोना संक्रमितों की संख्या 340 थी. उस दिन यानी 22 मार्च को जनता कर्फ्यू लगाया गया था. जब देश में कोरोना संक्रमितों की संख्या 564 थी. उस दिन यानी 24 मार्च को लॉकडाउन घोषित कर दिया गया. सभी लोगों को तालाबंद करने का हुक्म जारी कर दिया गया था. अब जब (यानी 06 मई को) कोरोना संक्रमितों की संख्या लगभग पचास हजार पहुंच गई है. मरने वालों की संख्या 17 सौ के करीब पहुंच गई है. तालाबंदी लगभग खुली हुई है. शराब की दुकानों पर हजारों की लाइनें हैं. बाजारों में चहल-पहल है.
तमाम जगहों पर ऐसे कोरोना संक्रमित सामने आ रहे हैं, जिनके बारे में यह भी पता नहीं चल रहा है कि आखिर उन्हें यह संक्रमण आया कहां से. कम्युनिटी स्प्रेड के लक्षण दिख रहे हैं. कई मोहल्ले या गलियां ऐसी हैं जहां पर पचास-पचास से ज्यादा संक्रमित मिल रहे हैं.
क्या समझा जाए. क्या सरकारों ने हमें हमारे हाल पर छोड़ दिया है. जैसा कि कुछ सरकारों के मुखिया कह भी रहे हैं कि हमें कोरोना के साथ ही जीना पड़ेगा. एक दूसरी सरकार के मुखिया कह रहे हैं कि कोरोना संक्रमण और कुछ नहीं बस सर्दी-जुकाम का ही एक रूप है.
चालीस दिन के लॉकडाउन से बदहाल, खाने को तरसने वाली, बैक्टीरिया-वायरस के बारे में बेसिक जानकारी भी नहीं रखने वाली इस निहत्थी जनता को अकेला छोड़ दिया गया है. अब या तो इसे वे अपने शरीर से गुजार कर, उसे हराकर बाहर आएं या तो फिर पंचतत्व में विलीन हो जाएं.
गौर करें कि अभी भी बड़े पैमाने पर रैंडम टेस्टिंग शुरू नहीं हुई है. आज दिन में एक चैनल समाचार चला रहा था कि महामारी ने हमारे महामहिम को महामानव बना दिया है.
अब ऐसे हालात पर अफसोस के अलावा और क्या करें...
(नोटः संक्रमित लोगों और मौत के आंकड़े पल-पल बदल रहे हैं। इसलिए इनके एकदम निश्चित होने पर बहस न करें. जो पोस्ट का मूल है, उस पर अपनी राय रखें.)