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कविता: तुम्हारी ज़िन्दगी में मैं कहाँ पर हूँ ?

परवीन शाकिर उर्दू शायरी का एक अहम नाम है. उन्होंने कम उम्र में ही लिखना शुरू कर दिया थ और गद्य, और पद्य दोनों ही अंदाज़ में लिखा. उनकी शायरी/कविताएं हिंदुस्तान में भी काफी पसंद की जाती रही है. यहां पेश है एक नज़ीर..

-परवीन शाकिर




हवा-ए-सुबह में

या शाम के पहले सितारे में

झिझकती बूँदा-बाँदी में

कि बेहद तेज़ बारिश में

रुपहली चाँदनी में

या कि फिर तपती दुपहरी में

बहुत गहरे ख़यालों में

कि बेहद सरसरी धुन में


तुम्हारी ज़िन्दगी में

मैं कहाँ पर हूँ ?


हुजूमे-कार से घबरा के

साहिल के किनारे पर

किसी वीक-ऐण्ड का वक़्फ़ा

कि सिगरेट के तसलसुल में

तुम्हारी उँगलियों के बीच

आने वाली कोई बेइरादा रेशमी फ़ुरसत

कि जामे-सुर्ख़ में

यकसर तही

और फिर से

भर जाने का ख़ुश-आदाब लम्हा

कि इक ख़्वाबे-मुहब्बत टूटने

और दूसरा आग़ाज़ होने के

कहीं माबैन इक बेनाम लम्हे की फ़रागत ?


तुम्हारी ज़िन्दगी में

मैं कहाँ पर हूँ ?

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