ब्राजील क्यों न जलाए अपने जंगल ?
पूरी दुनिया के पर्यावरण को उपनिवेशवाद ने बर्बाद कर दिया. उसने कभी इस बारे में नहीं सोचा कि आगे क्या होगा. उन्हें बस अपने मुनाफे की हवस थी. इंसान की कई हवस घातक है. लेकिन, मुनाफे की हवस सबसे घातक है. वह पूरी दुनिया को सिर्फ अपने मुनाफे के लिए संचालित करना चाहती है.
- कबीर संजय

ब्राजील अपने जंगल क्यों न जलाए। क्यों न वो अपने जंगल साफ करके वहां पर व्यावसायिक गतिविधियां शुरू करे। डॉलर कमाए। क्यों वो एमेजॉन के पूरे ईकोसिस्टम को बचा रहने दे। क्यों एमेजॉन में रहने वाले पशु-पक्षियों की शानदार प्रजातियों का अस्तित्व बनाए रखे। क्यों वह एमेजॉन की नदियों से सूखने से बचाए।
ब्राजील अपने एमेजॉन के जंगलों का सफाया कर रहा है। यह रफ्तार इतनी ज्यादा है कि कहा जा रहा है कि हर मिनट तीन फुटबाल के मैदानों जितना जंगल साफ हो रहा है। जंगलों के पेड़ काटने के बाद बचे-खुचे झाड़-झंखाड़ को आग लगा दी जा रही है। यह आग इतनी व्यापक है कि सेटेलाइट से भी इसका धुआं उठते हुए देखा जा रहा है। पूरी दुनिया में हाय-तौबा मची हुई है। कल के दिन ट्विटर पर भी यह ट्रेंड कर रहा था। लोग प्रे फॉर एमेजॉन या ऐसे ही अलग-अलग हैशटैग के जरिए ट्वीट कर रहे थे। लोगों की सोच में पृथ्वी बचाने की चिंता दिख रही है।
लेकिन, सवाल वही है, आखिर ब्राजील अपने जंगल क्यों बचाए। ब्राजील के जंगलों को बचाने के लिए यूरोप और अमेरिका हाय-तौबा मचा रहे हैं। लेकिन, पूरी दुनिया से जंगलों को साफ करने में यूरोपीयों का योगदान सबसे बड़ा है। पूंजीवाद के उदय और औद्योगिक क्रांति के साथ ही सबसे पहले तो यूरोपीयों ने अपने जंगल साफ किए। फिर दूसरे देशों को गुलाम बनाने या अपना माल बेचने निकल पड़े। वहां पर उन्होंने जंगलों की अंधाधुंध कटाई की। वहां की जैवविविथता को नष्ट कर दिया। पूरे के पूरे जंगल साफ करके वहां पर कपास और गन्ने के लाखों हेक्टेयर के फार्म बना दिए। खेती में मोनोकल्चर वहीं से पैदा हुआ है।
जंगलों पर कब्जा करके इमारती लकड़ियों के लिए म्यांमार जैसे देश पर कब्जा कर लिया गया। न जाने कितने देशों पर जबरदस्ती मसालों की खेती कराई गई। रबड़ के लाखों एकड़ के बागान बनाए गए। हमारे खुद के देश में भूख से मरते लोग अपने लिए दाल और चाल उगाने की बजाय अफीम की खेती करने के लिए बाध्य हुए। हमारे देश के न जाने के कितने जंगल अंग्रेजों ने साफ दिया। चीता तो उनके समय में विलुप्त ही हो गया। बाघों की उन्होंने जमकर हत्या की। एक-एक शिकार पार्टियों में पांच-पांच बाघ मारे जाते रहे हैं। बाघ और शेरों की खाल और सिर को वे अपने दीवानखानों में सजाते रहे हैं।
पूरी दुनिया के पर्यावरण को उपनिवेशवाद ने बर्बाद कर दिया। उन्होंने कभी इस बारे में नहीं सोचा कि आगे क्या होगा। उन्हें बस अपने मुनाफे की हवस थी। इंसान की कई हवस घातक है। लेकिन, मुनाफे की हवस सबसे घातक है। वह पूरी दुनिया को सिर्फ अपने मुनाफे के लिए संचालित करना चाहती है।
ब्राजील जैसे देश अब विकास का वही रास्ता पकड़ना चाहते हैं, जो पहले यूरोपीय देशों ने पकड़ा हुआ था। वह भी मुनाफे की उसी हवस को पूरी करने में लगे हुए हैं, जिस हवस ने दुनिया को तबाह करके रख दिया।
उसे इस बात से कोई मतलब नहीं है कि एमेजॉन के जंगल बीस फीसदी आक्सीजन पैदा करते हैं। उसे तो यह देखना है कि यह जमीन डॉलर कितना पैदा करती है। उसे ऑक्सीजन नहीं डॉलर चाहिए। फिर वो दूसरों के लिए सांस क्यों ले। दुनिया सांस ले सके इसकी उसे कहां परवाह है।
दरअसल, अब समस्या देशों की सीमाओं से बाहर निकल चुकी है। पूरी पृथ्वी एक शरीर है। कांटा अगर पैर में भी चुभेगा तो दर्द पूरे शरीर को झेलना पड़ेगा। दवा मुंह को खानी पड़ेगी। अलग-अलग देशों की सीमाओं में उलझकर इन समस्याओं का समाधान नहीं किया जा सकता।
पूरी पृथ्वी को ही प्रकृति, पर्यावरण, पशु-पक्षियों और मानवता के हिसाब से चलाया जाना चाहिए। न कि चंद कंपनियों के मुनाफे की हवस पूरी करने के हिसाब से। लेकिन, मानव और प्रकृति द्रोही व्यवस्था में फिलहाल तो यही हो रहा है।
डिस्क्लेमरः इस लेख से यह न समझा जाए कि मैं ब्राजील की कारगुजारियों का समर्थक हूं। समस्या को समग्रता में समझने के लिए हमेशा सिक्के के दूसरे पहलू को भी देखना चाहिए। इसी की यह एक कोशिश है।