प्लास्टिक होगा इंसानी सभ्यता की कब्रगाह?
वर्ष 1950 से लेकर अभी तक हम मोटा-मोटी 8.3 अरब मीट्रिक टन प्लास्टिक का उत्पादन कर चुके हैं. फिलहाल इसमें से तीस फीसदी ही इस्तेमाल में है. बाकी का सत्तर फीसदी पूरी मानवता का गला घोंटने में लगा हुआ है. प्लास्टिक को लेकर अगर अगले दस-पंद्रह सालों में बड़े क्रांतिकारी बदलाव नहीं किए गए तो यह निश्चित है कि हम आने वाली पीढ़ियों को प्लास्टिक कचरे के पहाड़ों के नीचे दबा कर रख देने वाले हैं.
-कबीर संजय

एक इंसान औसतन 80 से 100 सालों में इस पृथ्वी पर जनम लेकर उसमें विलीन भी हो जाता है. लेकिन, जो प्लास्टिक हम पैदा कर रहे हैं, उसे इस धरती में विलीन होने में 400 से 1000 साल से भी ज्यादा का समय लगने वाला है. एक अनुमान के मुताबिक अभी तक जितने प्लास्टिक का उत्पादन किया जा चुका है, उसका केवल तीस फीसदी ही इस्तेमाल हो रहा है. बाकी बेकार यानी कचरा हो चुका है. इस बेकार या कचरा हो चुके प्लास्टिक का केवल नौ फीसदी हिस्सा ही रीसाइकिल हो रहा है जबकि 12 फीसदी हिस्सा मशीनों में जलाया जा रहा है. जबकि, बाकी का 79 फीसदी हिस्सा लैंडफिल साइट में जमा है या फिर पूरे पर्यावरण में फैला हुआ है.
यह कचरा समुद्रों में फैला है. नदियों और तालाबों में फैला है. पहाड़ों में फैला हुआ है. हर कहीं जहां हम जाते हैं, वहां पर हम अपना प्लास्टिक कचरा छोड़ आते है. यह कचरा माउंट एवरेस्ट से लेकर अमरनाथ की पवित्र गुफाओं तक मौजूद है. आमतौर पर यह हमारी निगाह से दूर होता है तो हमारे दिमाग से भी दूर हो जाता है. हम बस यह सोचते हैं कि यह हमें न दिखे. बाकी चाहे जहां पड़ा रहे.
अमीर देश इस प्लास्टिक कचरे को गरीब देशों में भेज देते हैं. गरीब देशों में गरीब लोग अपने यहां की आबोहवा को खराब करके इस प्लास्टिक कचरे को जलाते या गलाते हैं. हालांकि, हवा में घुलने वाला प्रदूषण का जहर किसी एक देश में नहीं रहता. मौसम, बादल, हवा जैसी तमाम चीजें दुनिया के तमाम देश एक दूसरे के साथ साझा करते हैं. प्लास्टिक के कण पानी और धूप के साथ प्रतिक्रिया करके टूटने लगते हैं और बेहद बारीक कणों में तब्दील हो जाते हैं. जो बाद में पानी, हवा, खाना आदि के जरिए हमारे शरीर में प्रवेश कर जाते हैं.
प्लास्टिक को लेकर अगर अगले दस-पंद्रह सालों में बड़े क्रांतिकारी बदलाव नहीं किए गए तो यह निश्चित है कि हम आने वाली पीढ़ियों को प्लास्टिक कचरे के पहाड़ों के नीचे दबा कर रख देने वाले हैं.
मानवता का भविष्य प्लास्टिक कचरे के नीचे कहीं दबा है. जिसे खोदकर मानवता के निशान ढूंढने पड़ेंगे.
(तस्वीर इंटरनेट से साभार ली गई है। चाहें तो यह समझ सकते हैं कि मानवता भी इसी तरह प्लास्टिक के फंदे में फंस चुकी है।)