कोरोना से भी ख़तरनाक एक बीमारी है और आप उसका नाम जानते हैं!
लेकिन, एक बात को निश्चित होकर कहा जा सकता है कि यमुना को साफ करने की नहीं बल्कि उसे गंदा नहीं करने की जरूरत है। फिलहाल औद्योगिक गतिविधियों पर रोक लगी है। उसका गंदा पानी यमुना में नहीं जा रहा है और नदी इतना साफ हो गई है।
- कबीर संजय

हालांकि, कुछ लोग मानते हैं कि नीम का पेड़ दिल्ली का नेटिव नहीं है। तीन-चार सौ साल पहले उसे दिल्ली लाया गया था। लेकिन, हम इस बहस में नहीं पड़ेंगे। फिलहाल तो दिल्ली की सैकड़ों सड़कों पर नीम के लाखों पेड़ लगे हुए हैं और खास बात यह है कि ये सभी पेड़ इस समय फूलों से लदे हुए हैं।
नीम के पेड़ों के नीचे से निकलो तो उनके फूल हल्के-हल्के झरते हुए दिखाई पड़ते हैं। वे हल्के से आकर बालों में अटक जाते हैं। कल किसी काम से पटेलनगर तक बाइक से जाना हुआ। रास्ते भर में खासतौर पर जनकपुरी से लेकर तिलकनगर, सुभाष नगर, राजौरी, सभी जगह सड़क के किनारे नीम के पेड़ खड़े दिखे।
चूंकि, सड़कें खाली हैं, वाहनों की तादाद में भारी कमी आई है, तो सड़कों पर नीम के फूलों की परत बिखरी पड़ी है। हवाएं अपने साथ बहुत सारी धूल और इन फूलों को उड़ाती है, इकट्ठा करती है और फिर बिखेर देती है। समेटने और बिखरने का खेल सा चलता रहता है।
लॉकडाउन के बाद देश भर से ही पर्यावरण को राहत देने वाली खबरें आ रही हैं। यमुना के पानी में आक्सीजन की मात्रा में तीस फीसदी तक का इजाफा हुआ है। हालांकि, यह पानी अभी भी नहाने और पीने के क्राईटीरिया से बहुत दूर है।
लेकिन, एक बात को निश्चित होकर कहा जा सकता है कि यमुना को साफ करने की नहीं बल्कि उसे गंदा नहीं करने की जरूरत है। फिलहाल औद्योगिक गतिविधियों पर रोक लगी है। उसका गंदा पानी यमुना में नहीं जा रहा है और नदी इतना साफ हो गई है। जबकि, अभी भी घरों का सारा कचरा, गंदा पानी यमुना में ही जा रहा है।
सिर्फ कल्पना ही की जा सकती है कि अगर यह सारा पानी भी यमुना में जाने से रोक दिया जाता तब उसकी स्थिति कैसी होती। दिल्ली के लोग ऐतिहासिक तौर पर सबसे साफ-सुथरी हवा में सांस ले रहे हैं। इससे पहले इतनी साफ-सुथरी हवा पहले कभी रिकार्ड नहीं की गई।
लेकिन, सवाल वही है कि यह सब कुछ जो खरीदा गया है, उसकी कीमत कितनी ज्यादा चुकाई गई है। ये साफ हवा, ये नीला आसमान, ये नदियों का साफ पानी, सिर्फ चंद दिनों में फिर से पहले जैसे गंदे हो जाएंगे। लेकिन, जिन लोगों की रोजी-रोटी तबाह हो गई, जो लोग अपने घरों तक पहुंचने के लिए हजारों किलोमीटर की पैदल दूरी पार करने के प्रयास में जान गंवा चुके हैं, ऐसे तमाम लोगों के नुकसान की भरपाई कभी नहीं होने वाली।
कई बार लगता है कि पर्यावरण में होने वाले इस छोटे-मोटे सुधार की खबरें भी इसीलिए फैलाई जाती है ताकि करोड़ों लोगों के जीवन और जीविका पर आए संकट पर परदा डाला जा सके।
कोविड-19 से भी ज्यादा खतरनाक एक बीमारी है, जिसकी जकड़ में ये पूरी दुनिया है। उस बीमारी को दूर किए बिना, उसका इलाज किए बिना किसी स्वस्थ समाज की कल्पना निश्चित तौर पर नहीं की जा सकती है। मुझे पता है कि आप सभी उस बीमारी का नाम जानते हैं।